नयी दिल्ली : क्रिकेट के भगवान के नाम से मशहूर सचिन तेंदुलकर की आत्मकथा ‘प्लेइंग इट माई वे’ के बाद भारतीय टीम में ‘दादा’ और ‘बंगाल टाइगर’ के नाम से मशहूर सौरव गांगुली की आत्मकथा बाजार में आने जा रही है. उनकी आत्मकथा ‘ए सेंचुरी इज नॉट इनफ’ बहुत जल्द लॉन्च होने वाली है.
सौरव गांगुली की आत्मकथा में कई बड़े खुलासे हुए हैं. अपनी आत्मकथा में गांगुली ने खुलासा किया है कि जब तत्कालीन कोच ग्रेग चैपल ने उन्हें भारतीय टीम से बाहर कर दिया था और वह वापसी के लिये संघर्ष कर रहे थे तब उनके पिताजी को यह संघर्ष बर्दाश्त नहीं हो रहा था और चाहते थे कि यह स्टार क्रिकेटर खेल से संन्यास ले ले.
जब चैपल भारतीय टीम के कोच थे तब गांगुली को कप्तानी से हटा दिया गया था और यहां तक कि उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया था. गांगुली ने इसके साथ ही कहा कि जब उन्हें 2008 में ईरानी ट्राफी के लिये शेष भारत की टीम में नहीं चुना गया तो वह ‘गुस्सा’ और ‘मायूस’ थे. इसके कुछ महीने बाद उन्होंने संन्यास की घोषणा कर दी थी. उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उन्हें टीम से क्यों बाहर किया गया. उन्होंने बाद में टीम के कप्तान अनिल कुंबले को फोन किया और कारण जानने की कोशिश की.
गांगुली ने किताब में लिखा है, ‘मैंने उनसे सपाट शब्दों में पूछा क्या वह समझते हैं कि अंतिम एकादश के लिये मैं स्वत: पसंद नहीं रह गया हूं. हमेशा की तरह भद्रजन कुंबले लगता था कि मेरे फोन से परेशान थे. उन्होंने मुझसे कहा कि इस फैसले से पहले दिलीप वेंगसरकर की अध्यक्षता वाली चयनसमिति ने उनसे मशविरा नहीं किया.’ इस किताब के सह लेखक गौतम भट्टाचार्य हैं.
गांगुली ने कुंबले से अगला सवाल किया कि क्या वह मानते हैं कि उनकी टीम को उनकी सेवाएं चाहिए? ‘कुंबले के जवाब से मैं संतुष्ट हुआ. उन्होंने कहा कि अगर उन्हें फैसला करना होगा तो वह उन्हें फिर से आगामी टेस्ट मैच के लिये चुनेंगे. इससे मुझे काफी राहत मिली.’ चयनकर्ताओं को कड़ा संदेश देने के लिये गांगुली घरेलू क्रिकेट में खेले. यहां तक कि उन्होंने चंडीगढ़ में जेपी अत्रे मेमोरियल ट्राफी में भी हिस्सा लिया.
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पहले दो टेस्ट मैचों के लिये जल्द ही टीम घोषित की गयी और गांगुली उसमें शामिल थे. इसके साथ ही बोर्ड अध्यक्ष टीम भी घोषित की गयी. यह दूसरे दर्जे की टीम थी जो चेन्नई में ऑस्ट्रेलिया से भिड़ती. गांगुली ने लिखा है, ‘बोर्ड अध्यक्ष एकादश में युवा खिलाड़ियों या उन्हें रखा जाता था जिनका टेस्ट करियर अनिश्चित हो. मुझे इसमें भी शामिल किया गया. यह टीम कृष्णमाचारी श्रीकांत की अगुवाई वाली नयी चयनसमिति ने चुनी थी लेकिन लगता था कि उसकी सोच भी पहली वाली समिति की तरह ही थी. संदेश साफ था कि 100 से अधिक टेस्ट मैच खेल चुका सौरव गांगुली का फिर से ट्रायल था.’
उन्होंने कहा, ‘मैं बहुत गुस्से में था. तब मैंने अपने पिताजी से कहा कि मुझे अभी संन्यास ले लेना चाहिए. अब बहुत हो चुका. मेरे पिताजी थोड़ा हैरान थे. इससे पहले जब ग्रेग चैपल ने मुझे टीम से बाहर रखा और मैं वापसी के लिये संघर्ष कर रहा था तब वह चाहते कि मैं संन्यास ले लूं क्योंकि उनसे अपने बेटे का संघर्ष नहीं देखा जा रहा था.’ गांगुली ने कहा, ‘तब मैंने उनका विरोध किया था. मैंने कहा बापी (पिताजी) आप इंतजार करो. मैं वापसी करूंगा. मुझमें अब भी क्रिकेट बची हुई है. इसलिए तीन साल बाद जब उन्होंने उसी व्यक्ति से संन्यास की बात सुनी तो वह हैरान थे.’
गांगुली ने कहा कि उन्होंने कुंबले से बात की और उन्होंने जल्दबाजी में फैसला नहीं करने के लिये कहा. उन्होंने कहा, ‘मैंने उसे आश्वस्त किया लेकिन अंदर से मुझे लग गया था कि अब समय आ गया है. मैंने मन बना लिया था कि मैं इस श्रृंखला में कोई कसर नहीं छोड़ूंगा. क्रिकेट इतिहास गवाह है कि मेरी अंतिम श्रृंखला शानदार रही. मैंने मोहाली में शतक जमाया और नागपुर में करीबी अंतर से चूक गया था.