रांची : झारखंड में तंबाकू सेवन करने वालों की तादाद घट गयी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) की ग्लोबल ऑडिट टोबैको सर्वे (जीएटीएस या गैट्स)-दो (2016-17) की रिपोर्ट के अनुसार राज्य के कुल 38.9 फीसदी लोग किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन करते हैं. जबकि गैट्स-एक (2009-10) की रिपोर्ट में 50.1 फीसदी लोगों के तंबाकू सेवन करने का जिक्र था. इस तरह तंबाकू सेवन करने वाले 11.2 फीसदी घट गये हैं. यह अच्छी खबर है.
तंबाकू सेवन का मतलब सिगरेट-बीड़ी पीना (स्मोकिंग), तंबाकू, गुटका या पान में तंबाकू मिला कर खाना (स्मोक लेस) या दोनों (स्मोकिंग या स्मोकलेस) तरीके से तंबाकू का सेवन करना है. इतना ही नहीं गैट्स-दो के आंकड़े यह भी बताते हैं कि सिर्फ धूम्रपान करने वालों की संख्या में 1.5 फीसदी की वृद्धि हुई है. जबकि केवल खैनी-गुटका या तंबाकू के साथ पान खाने वाले 12.5 फीसदी कम हुए हैं. सर्वे के दौरान तंबाकू सेवन करने वाले झारखंड के 8.6 फीसदी लोगों ने बताया कि धूम्रपान संबंधी वैधानिक चेतावनी पढ़ कर उन्होंने धूम्रपान छोड़ने का प्रयास किया.
क्या है गैट्स : गैट्स तंबाकू उपयोग व इसके नियंत्रण के प्रमुख संकेतक की मॉनिटरिंग का वैश्विक मानक है. यह एक पारिवारिक सर्वेक्षण है, जिसमें भारत के 29 राज्यों व दो केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल किया गया है. अभी सभी राज्यों की रिपोर्ट जारी नहीं हुई है. डबल्यूएचअो के लिए तथा भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के वास्ते गैट्स-दो का यह सर्वे टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस, मुंबई ने किया है. इस सर्वे में 15 वर्ष या इससे अधिक उम्र वाले वयस्क से उनके सिर्फ तंबाकू खाने (स्मोकलेस), सिर्फ बीड़ी-सिगरेट व अन्य पीने (स्मोकिंग) या दोनों तरह से तंबाकू का सेवन करने संबंधी जानकारी ली जाती है.
रिम्स में कैंसर ओपीडी सिर्फ दो दिन
राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में कैंसर सुपर स्पेशियलिटी विंग है, लेकिन यहां मरीजों काे चिकित्सीय परामर्श सिर्फ दो दिन ही मिलता है. कैंसर मरीजों को सोमवार व गुरुवार को ही डॉक्टर देखते हैं. डॉ अनूप कुमार के अलावा दो अन्य जूनियर डॉक्टर हैं, लेकिन वे रेडियोथेरेपिस्ट हैं. सुपर स्पेशियलिटी विंग में मेडिकल अंकोलॉजिस्ट व अंको सर्जन नहीं हैं. ऐसे में सर्जरी के लिए कैंसर मरीजों को निजी अस्पताल में जाना पड़ता है. वहीं रिम्स प्रबंधन कहना है कि मेडिकल अंकोलॉजिस्ट व अंको सर्जन को नियुक्त करने की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन डॉक्टर ही नहीं मिल रहे हैं. कैंसर मरीजों को किमोथेरेपी पद्धति से इलाज के लिए डे केयर यूनिट बनाया गया है, लेकिन इसका भी लाभ मरीजों को ज्यादा नहीं मिलता है. कई मरीज डॉक्टर नहीं मिलने के कारण मैदान में इंतजार करते रहते हैं. निदेशक डॉ आरके श्रीवास्तव ने बताया कि डॉक्टरों की कमी है. इसलिए दो दिन ही ओपीडी संचालित किया जाता है.
जीवनशैली में बदलाव से दूर होगा कैंसर: डॉ आफताब आलम
एससीजी क्यूरी अब्दुर्रज्जाक अंसारी कैंसर अस्पताल के रेडिएशन अंकोलॉजिस्ट डॉ आफताब आलम ने कहा कि कैंसर से बचाव के लिए जीवनशैली में सुधार जरूरी है. 60 फीसदी कैंसर मोटापा, तंबाकू के सेवन व अनियमित दिनचर्या से होता है. व्यायाम के साथ-साथ संतुलित व पौष्टिक भोजन लेने से काफी हद तक कैंसर से बचा जा सकता है.