श्रीनगर : जम्मू और कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाएं लॉ ऐंड ऑर्डर से जुड़ी समस्या नहीं हैं बल्कि एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा हैं. यह दावा नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी यानी एनआइए ने किया है. एजेंसी का कहना है यह पाकिस्तान के समर्थन और फंडिंग के माध्यम से सैयद अली शाह गिलानी जैसे हुर्रियत नेताओं और हाफिज सईद और सैयद सलाहुद्दीन जैसे आतंकियों की साजिश हैं.
अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसको लेकर शनिवार को खबर दी है. अखबार के पास एनआइए की चार्जशीट की कॉपी है जिसके अनुसार, ‘कश्मीर में पत्थरबाजी एक उद्योग का रूप ले चुकी है. घाटी में हुर्रियत और उससे जुड़े समूहों के काडर जिला, तहसील, वॉर्ड और मोहल्ला स्तर पर इसे अंजाम देते हैं. विभिन्न स्तरों पर अलगाववादी नेताओं ने पत्थरबाजी के लिए हथियारबंद समूह बनाया है. ये हथियारबंद खुद का चेहरा ढककर रखते हैं. हथियारबंद समूह में मुख्य तौर पर कश्मीर घाटी के नौजवानों को शामिल किया गया है.
पत्थरबाजी एक ‘उद्योग’
अलगाववादियों को ‘कश्मीर में आतंकवाद का राजनीतिक चेहरा’ करार देते हुए एनआइए ने कहा है कि जम्मू और कश्मीर को भारत से अलग करने की अपनी बड़ी साजिश के हिस्से के तौर पर ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस और आतंकियों ने पत्थरबाजी की रणनीति बनाने का काम किया है. पत्थरबाजी एक ‘उद्योग’ का रूप ले चुका है जिसमें योजना बनाने वाले हैं तो रणनीति तैयार करने वाले भी हैं. पत्थरबाजी के ‘उद्योग’ में फंड इकट्ठा करने वाले, कैश कूरियर और इसे अंजाम देने वालों के नेटवर्क भी हैं. यही नहीं इस ‘उद्योग’ में पब्लिसिटी मैनेजरों से लेकर राजनीतिक प्रॉपेगैंडा फैलाने वालों का तंत्र भी काम में जुटा हुआ है जिसका काम बंद, सड़कों पर जबरन जाम, सरकारी और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने, आगजनी करने, स्कूलों को जलाने, बैंकों को लूटने और मुठभेड़स्थलों पर सुरक्षाबलों के ऊपर भीड़ के हमलों को अंजाम देना है.
‘रुकुन’ का मतलब आप भी जानें
हुर्रियत के काडर दुकानदारों, कारोबारियों और कश्मीर के बाशिंदों से फंड इकट्ठा करने का काम करते हैं जिन्हें ‘रुकुन’ कहा जाता है. ये सेब उत्पादकों से उगाही करते हैं और 5 से 10 लाख रुपये देने के लिए धमकाते हैं. पेशेवर पत्थरबाज कश्मीर के तमाम शहरी, अर्ध-शहरी और ग्रामीण इलाकों में निर्दोष व भोलेभाले लोगों को बरगलाने का काम करते हैं और उनसे सेना, सीआरपीएफ या जम्मू-कश्मीर पुलिस पर हिंसा की शुरुआत करवाते हैं. ये पेशेवर पत्थरबाज इतने शतिर हैं कि हिंसा के समय मासूम लोगों को अपनी ढाल के तौर पर इस्तेमाल करते हैं.
मजबूर हो जाते हैं सुरक्षा बल
एनआईए ने कहा है कि अक्सर सुरक्षा बल हिंसा कर रहे पेशेवर पत्थरबाजों से निपटने के लिए बल का प्रयोग मजबूरी में करते हैं. आगे एजेंसी ने कहा है कि पत्थरबाजी के समय जो युवा पेलेट गन से जख्मी होते हैं उन्हें अलगाववादी अपने एजेंडे को हाइलाइट करने के लिए ‘ट्रोफी’ के तौर पर इस्तेमाल करते हैं.