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प्राथमिक शिक्षा-व्यवस्था की दुर्दशा

यह सच्चाई है कि प्रायः सभी स्कूलों में सत्र की अंतिम तिमाही में विद्यार्थी एवं शिक्षक, दोनों अध्ययन-अध्यापन के प्रति काफी गंभीर रहते हैं, परंतु यह कैसी विडंबना है कि जब से सर्व शिक्षा अभियान के तहत शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार का आडंबर चल रहा है, प्रत्येक वर्ष सत्र के अंतिम महीनों में सिर्फ […]

यह सच्चाई है कि प्रायः सभी स्कूलों में सत्र की अंतिम तिमाही में विद्यार्थी एवं शिक्षक, दोनों अध्ययन-अध्यापन के प्रति काफी गंभीर रहते हैं, परंतु यह कैसी विडंबना है कि जब से सर्व शिक्षा अभियान के तहत शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार का आडंबर चल रहा है, प्रत्येक वर्ष सत्र के अंतिम महीनों में सिर्फ शेष बजट की बंदरबांट करने के लिए शिक्षकों को प्रखंड एवं जिला स्तर पर निरर्थक प्रशिक्षणों में भेजकर स्कूलों में गरीब बच्चों की पढ़ाई बाधित करा दी जाती है.
शिक्षकों की कार्य क्षमता में समयानुकूल अभिवृद्धि हेतु प्रशिक्षण आवश्यक है, परंतु इसका आयोजन सत्रारंभ के समय होना चाहिए तथा यह सैद्धांतिक न होकर व्यावहारिक होना चाहिए अर्थात बच्चों के समक्ष होना चाहिए.
सुनील कुमार झा, इमेल से

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