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झारखंड में सियासी हलचल : सत्ता पक्ष के नाराज ये नौ विधायक मिले सरयू व मुंडा से, जा सकते हैं दिल्ली

पहले सरयू के आवास पर जुटे विधायक, फिर अर्जुन मुंडा के पास गये, दिल्ली जा सकते हैं सभी रांची : स्थानीय व नियोजन नीति में संशोधन की मांग कर रहे सत्ता पक्ष के 26 विधायकों की ओर से मुख्यमंत्री रघुवर दास को पत्र लिखे जाने के बाद सियासी हलचल तेज हो गयी. सत्ता पक्ष के […]

पहले सरयू के आवास पर जुटे विधायक, फिर अर्जुन मुंडा के पास गये, दिल्ली जा सकते हैं सभी
रांची : स्थानीय व नियोजन नीति में संशोधन की मांग कर रहे सत्ता पक्ष के 26 विधायकों की ओर से मुख्यमंत्री रघुवर दास को पत्र लिखे जाने के बाद सियासी हलचल तेज हो गयी. सत्ता पक्ष के नौ विधायक बुधवार को अचानक मंत्री सरयू राय से मिलने उनके आवास पहुंच गये. इनमें तीन भाजपा की महिला विधायक भी थी. इसके बाद विधायक पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के आवास पर जुटे.
विधायकों ने पार्टी के दोनों नेताओं से मिल कर स्थानीय व नियोजन नीति में विसंगतियां और सरकार की कार्यशैली पर चर्चा की. विधायकों का कहना था कि स्थानीय व नियोजन नीति को लेकर क्षेत्र मेें आक्रोश है. जनता को जवाब देना मुश्किल हो रहा है. राज्य में अनुसूचित और गैर अनुसूचित क्षेत्र में अलग-अलग नीतियां बनायी गयी हैं.
सरकार के अंदर इसको लेकर चर्चा होनी चाहिए. समिति बना कर इसका हल निकाला जाना चाहिए़ सूत्रों के अनुसार, विधायकों ने मंत्री सरयू राय और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा से कहा है कि पदाधिकारी जनप्रतिनिधियों की नहीं सुन रहे है़ विधायकों की बात गंभीरता से नहीं लेते हैं. क्षेत्र के काम में परेशानीहोती है.
मिली सूचना के अनुसार, नाराज विधायक दिल्ली में भी आला नेताओं से मुलाकात कर सकते हैं.सरयू ने संगठन महामंत्री धर्मपाल से की मुलाकात : राजनीतिक हलचल के बीच मंत्री सरयू राय ने प्रदेश संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह से मुलाकात की. धर्मपाल सिंह ने पार्टी कार्यालय में सरयू राय ने मुलाकात कर राजनीतिक घटनाक्रम और विधानसभा में चली कार्यवाही पर चर्चा की. इस दौरान सरयू राय ने संसदीय कार्यमंत्री के रूप में काम करने को लेकर अपनी असमर्थता जतायी.
कौन-कौन विधायक पहुंचे थे मिलने
– शिवशंकर उरांव – लक्ष्मण टुडू – योगेश्वर प्रसाद बाटुल – जयप्रकाश वर्मा – साधु चरण महतो – ताला मरांडी – गंगोत्री कुजूर – मेनका सरदार – विमला प्रधान
कोई राजनीति अर्थ नहीं आना-जाना लगा रहता
विधायकों से सामान्य शिष्टाचार मुलाकात थी. इसका कोई राजनीति अर्थ नहीं है. पार्टी के विधायक हैं, तो आना-जाना लगा ही रहता है. अलग-अलग क्षेत्र है, उनकी अपनी समस्या है. चाय-पानी हुआ, फिर सभी चले गये. कोई विशेष बात नहीं है.
– सरयू राय, मंत्री
दूसरे राज्य नौकरी नहीं दे रहे, फिर यहां क्यों
जो व्यवस्था 13 जिलों में है, वही 11 जिलों में भी होनी चाहिए. गढ़वा व पलामू संपन्न जिले नहीं हैं. यहां के लोगों को भी नौकरी चाहिए. सरकार को यह समझना चाहिए कि जब वर्ग तीनऔर चार में दूसरे राज्य युवकों को नौकरी नहीं दे रहे हैं, तो फिर यहां कैसे हो रहा है.
– सत्येंद्र तिवारी, विधायक
झारखंड के िनवासी को ही िमलनी चाहिए नौकरी
11 जिलों में दूसरे राज्य के लोगों को भी नौकरी मिल रही है. इन 11 जिलों में कई खनन वाले जिले हैं. यहां रोजगार की संभावना ज्यादा है. वर्तमान व्यवस्था में इन जिलों में दूसरे राज्यों के लोग भी आ रहे हैं. सरकार को चाहिए जो झारखंड के निवासी हैं, केवल उन्हीं लोगों को नौकरी दे.
-योगेश्वर महतो बाटुल, विधायक
विधायकों ने क्या लिखा है मुख्यमंत्री को
राज्य की स्थानीयता, नियोजन, जिला रोस्टर व आरक्षण नीति में व्याप्त विसंगतियों को दूर करने के लिए भाजपा समेत निर्दलीय विधायकों ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है. इसमें कहा गया है कि स्थानीय नीति के अभाव में राज्य के तृतीय व चतुर्थ वर्ग के पदों पर नियुक्तियां रुकी पड़ी थी. नियोजन में कठिनाई हो रही थी.
जनता की मांग लंबे समय से चली आ रही थी. इसे परिभाषित करना, विधेयक लाकर पारित करना और लागू करना समय की मांग और हमारी सरकार का परम दायित्व है. इसे सरकार ने बखूबीपूरा किया.
यह सरकार की बड़ी उपलब्धि है. पर लागू नीतियों में मौजूद विसंगतियों के कारण राज्य की जनता विशेष रूप से मूलवासी-सदान और जनजाति समुदाय, युवक-युवतियों के बीच तीव्र आक्रोश के साथ निराशा के भाव हैं.
सत्ताधारी गठबंधन के विधायक के रूप में हम सभी को अपने क्षेत्रों में आक्रोशित जनता और मतदाताओं का कोपभाजन होना पड़ रहा है. इनका आक्रोश बढ़ता जा रहा है. इसलिए नीतियों में सुधार व संशोधन लाना आवश्यक ही नहीं अपरिहार्य है. पत्र में भाजपा के 22 व एक निर्दलीय विधायक भानु प्रताप शाही ने हस्ताक्षर किये हैं.
विधायकों की मांग
-झारखंड विधानसभा के सदस्यों की एक उच्च स्तरीय समिति गठित की जाये, जो स्थानीय, नियोजन, जिला रोस्टर व आरक्षण नीति में व्याप्त त्रुटियों, खामियों, विसंगतियों को दूर करने के लिए मंथन करे. तीन माह के अंदर रिपोर्ट प्रस्तुत करे. तक तक राज्य में किसी भी प्रकार की नियुक्तियां नहीं की जाये.
-स्थानीय नीति को फिर से परिभाषित करते हुए लागू नीति में बाहर से आकर झारखंड में तीस साल या 1985 से पूर्व से निवास करनेवाले व्यक्ति द्वारा स्वघोषणा, शपथ पत्र के आधार पर स्थानीय निवासी का प्रमाण पत्र जारी करने के प्रावधान को समाप्त किया जाये. ऐसे व्यक्ति अथवा सदस्यों के लिए 1932 का सर्वे खतियान अथवा 1951 की जनगणना अथवा मतदाता सूची को आधार बनाये जाने का प्रावधान किया जाये.
-राज्य के बाहर से आये ऐसे सदस्यों के द्वारा अपने मूल राज्य के जिलाधीश द्वारा निर्गत निवास प्रमाण पत्र ( जिसमें यह स्पष्ट रूप से उद्धृत हो कि वह अपने मूल राज्य में किसी भी प्रकार के नियोजन, आरक्षण या अपने मूल राज्य में न मिलने वाली अन्य किसी भी प्रकार की सुविधा को नहीं ले सकेगा) लाना अनिवार्य शर्त के रूप में सम्मिलित किया जाये.
-राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों के रूप में संवैधानिक रूप से अधिसूचित 13 जिलों में जिस प्रकार उस जिले के जनजाति, मूलवासी सदान वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए जिला रोस्टर के आधार पर तृतीय व चतुर्थ वर्ग के पदों पर नियुक्ति के लिए अगले दस वर्षों तक आरक्षित कर दिया गया है.
उसी प्रकार राज्य के अनाधिसूचित 11 जिलों के मूलवासी-सदान एवं जनजाति अभ्यर्थियों के लिए नियोजन को फ्रीज कर दिया जाये.
-अनाधिसूचित ऐसे 11 जिलों में तृतीय एवं चतुर्थ वर्ग की नियुक्तियां पूरे भारत वर्ष के अभ्यर्थियों के लिए खुला रखा गया है, को समाप्त किया जाये.
-जिला रोस्टर के आधार पर ही आरक्षण और तृतीय व चतुर्थ वर्ग के पदों पर नियुक्तियां सुनिश्चित की जाये.
-राज्य में स्पष्ट विभागवार एवं पदवार नियोजन नीति बनायी जाये, ताकि राज्य के मूलवासी-सदान एवं जनजाति समुदाय की जनता के साथ न्याय हो सके.

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