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छुआछूत व अज्ञानता के खिलाफ संत रविदास ने किया था संघर्ष

कई जगहों पर आयोजित किये गये कार्यक्रम जहानाबाद नगर : शहर के रामगढ़ स्थित रैदास आश्रम में संत शिरोमणि रैदास की 641वीं जयंती समारोहपूर्वक मनायी गयी. इस अवसर पर आश्रम के पुजारी महंत सुगन दास द्वारा पूजा-अर्चना की गयी. इसके बाद संत रैदास के जीवन पर गोष्ठी आयोजित हुई. कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वजीर […]

कई जगहों पर आयोजित किये गये कार्यक्रम
जहानाबाद नगर : शहर के रामगढ़ स्थित रैदास आश्रम में संत शिरोमणि रैदास की 641वीं जयंती समारोहपूर्वक मनायी गयी. इस अवसर पर आश्रम के पुजारी महंत सुगन दास द्वारा पूजा-अर्चना की गयी. इसके बाद संत रैदास के जीवन पर गोष्ठी आयोजित हुई. कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वजीर दास ने संत रैदास के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे एक महान पुरुष थे, जो मानवता के लिए छुआछूत और अज्ञानता के खिलाफ जीवन भर संघर्ष करते रहे. उनका मानना था कि मन चंगा रहेगा, तो कठौती में गंगा मिलेगी. उन्होंने कहा कि संत रैदास कहते थे कि मेरी पूजा मत करना, मैं कोई चमत्कार नहीं करूंगा.
मैं सिर्फ मार्ग बताऊंगा जिस पर चलकर आगे बढ़ सकते हैं. इस अवसर पर संत रैदास समिति द्वारा आश्रम परिसर में उनके नाम पर एक पुस्तकालय की नींव रखी गयी. साथ ही वर्तमान समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ अभियान चलाने का निर्णय लिया गया. इस मौके पर महिलाओं द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम व भजन-कीर्तन आयोजित हुआ जिसका संचालन अशोक कुमार प्रियदर्शी ने किया. कार्यक्रम में जगेश्वर दास, बैजनाथ दास, रामाश्रय प्रसाद, सुशीला देवी सहित कई लोग उपस्थित थे.
वहीं जन अधिकार पार्टी के नवयुवक संघ द्वारा संत रैदास की जयंती मनायी गयी. कार्यक्रम में अध्यक्ष सत्येंद्र यादव ने संत रैदास से प्रेरणा लेने तथा उनके बताये रास्ते पर चलने को कहा. कार्यक्रम की अध्यक्षता श्याम दास ने की. कार्यक्रम में कुंदन कुमार, सुनील कुमार, शिवजी दास, प्रेम कुमार सहित कई लोग शामिल थे.
काको प्रतिनिधि के अनुसार क्षेत्र की बढ़ौना पंचायत अंतर्गत बारा-जलालपुर गांव में संत रैदास के जयंती समारोह का आयोजन किया गया. समारोह की अध्यक्षता नवयुवक संघ के द्वारा की गयी. समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचे प्रखंड प्रमुख जितेश कुमार ने संत रैदास की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उनके विचारों से लोगों को अवगत कराया. साथ ही उन्होंने कहा कि संत रैदास के विचारों को आत्मसात करके ही समतामूलक समाज का निर्माण कराया जा सकता है. इस मौके पर कमलेश प्रसाद, राकेश दास, दिलीप दास, रमेश दास समेत कई लोग मौजूद थे.
धूमधाम से मनी जयंती
किंजर. संत रैदास की जयंती पर रविदास टोली में बुधवार को प्रतिमा की प्राणप्रतिष्ठा कर विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की गयी. समिति के अध्यक्ष अयोध्या कुमार प्रभाकर ने बताया कि रात्रि में सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया, जिसमें भक्ति संगीत की प्रस्तुति की गयी.
इस मौके पर सुरेश राम, रवींद्र दास, रामधन राम, कमलेश राम आदि सक्रिय रूप से भूमिका निभा रहे हैं.
महान संत थे रविदास जी : डीएम
कुर्था (अरवल) : रविदास एक महान संत थे, जिन्हें संत शिरोमणि की उपाधि मिली. न तो इससे पहले किसी संत को यह उपाधि मिली और न ही उसके बाद. उक्त बातें बुधवार को संत रविदास जयंती के मौके पर आयोजित कार्यक्रम के उद्घाटन के दौरान अरवल के डीएम सतीश कुमार सिंह ने कहीं. उन्होंने बताया किह संत रविदास विभिन्न धर्मों के शास्त्रों, धार्मिक पुस्तकों, महापुरुषों की पुस्तकों का अध्ययन किया था और उसी अध्ययन, ज्ञान के बलबूते सन 1416 में राजा बनारस नागर मल के समय काशी में गंगा नदी के किनारे ब्राह्मण समाज से शास्त्रार्थ हुआ. यह शास्त्रार्थ अद्वितीय था.
एक तरफ अकेले शिरोमणि गुरु रविदास जी थे तथा दूसरी तरफ हजारों पंडा-पुजारी. पंडितों ने धर्म शास्त्र के अनुसार अपनी बात कही तथा संत रविदास जी ने उनके इस पाखंड के विरुद्ध अनेक तर्क दिये थे. उस शास्त्रार्थ में गुरु रविदास जी ने अपनी विजय पताका लहरायी थी. इसी विजय पताका को शिला का तैरना कहते हैं और ब्राह्मणों की हार को पोथी-पत्रा डूबने की संज्ञा दी गयी थी.
इस विजय पर बनारस नरेश नागर मल ने अपना निर्णय दिया था कि ब्राह्मण समाज संत शिरोमणि गुरु रविदास जी को सोने की पालकी में बैठा कर अपने कंधों पर पूरे काशी शहर में चंवर झुलाते हुए घुमायेंगे. साथ ही साथ गुरु जी महाराज संत रविदास जी को संत शिरोमणि की उपाधि भी दी गयी थी. संत शिरोमणि गुरु रविदास जी को राजा नागरमल द्वारा अपना गुरु बनाते हुए बनारस राज्य का राजगुरु भी घोषित किया तथा पालकी को स्वयं कंधा दिया.
1494 में बादशाह सिकंदर लोधी ने संत रविदास जी को मुस्लिम धर्म स्वीकार नहीं करने के कारण जेल की काल कोठरी में डाल दिया लेकिन कालांतर उनके ज्ञान से प्रभावित होकर ससम्मान छोड़ दिया और उनका शिष्य बन गये. संत शिरोमणि गुरु रविदास जी मीराबाई के भी गुरु थे. वह केवल मीराबाई के ही गुरु नहीं थे, बल्कि मीराबाई के ससुर महाराजा चित्तौरगढ़ राणा सांगा, उनकी पत्नी झाला रानी तथा उनके पुत्र राजाभोज के भी गुरु थे एवं चित्तौरगढ़ राज्य के राजगुरु भी थे.
इसके अलावा राजा संग्राम सिंह, राजा चंद्र प्रताप, बादशाह अलाबदी, बिजली खान, राणा रतन सिंह, महाराजा कुंभा सिंह, राजा चंद्रहास एवं गुरु गोरखनाथ सहित उनके लाखों की संख्या में शिष्य थे. सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी द्वारा 1604 में कंपोजीशन कराते समय गुरु ग्रंथ साहब में गुरु रविदास जी द्वारा रचित 40 वाणियां भी शामिल की गयीं. गुरु महाराज जी के द्वारा लाखों दलित बेरोजगार युवकों को अपने शिष्य राजाओं के राज्य में, हरम में, दरबार व सेना में नौकरियां दिलवायी गयीं. वहीं कार्यक्रम की अध्यक्षता मधुरेंद्र नारायण सिंह ने की. इस मौके पर भाजपा नेत्री इंदु कश्यप, सुरेंद्र सिंह, तिलेश्वर कौशिक, नरेंद्र तिवारी, राहुल वत्स, जदयू नेता ओमप्रकाश वर्मा, धर्मेंद्र तिवारी, खालिक अंसारी, अजीत कुमार समेत कई गण्यमान्य लोग उपस्थित थे.

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