नयी दिल्ली : संजय लीला भंसाली की ‘पद्मावत’ में अलाउद्दीन खिलजी के चरित्र को जिस तरह फिल्माया गया है, वह खिलजी वंश के इस सुल्तान के बारे में इतिहास में उपलब्ध वर्णन से बिल्कुल अलग लगता है. गुरुवार को रिलीज हुई फिल्म में खिलजी को एक तरह से खूंखार शासक की तरह दिखाया गया है. फिल्म को लेकर सड़कों पर कोहराम भी मचा है.
राजपूत संगठन अब भी फिल्म के रिलीज के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन कर रहे हैं, जहां कुछ इतिहासकार कहते हैं कि भंसाली ने दीपिका पादुकोण अभिनीत रानी पद्मावती के किरदार को प्रदर्शित करने में नहीं बल्कि खिलजी को खूंखार सुल्तान की तरह दिखाने में चूक की है. फिल्म में खिलजी का किरदार अभिनेता रणवीर सिंह ने अदा किया है और उनकी अदाकारी की तारीफ भी हो रही है.
इतिहासकार राणा सफवी का मानना है कि खिलजी खूंखार तो बिल्कुल नहीं था. उन्होंने पीटीआई से कहा, ‘शासकों ने वो ही आचार संहिता और शिष्टाचार का पालन किया जो फारस में थे. खानपान और पहनावे को लेकर पसंद बहुत औपचारिक रही होंगी.’
भंसाली के अनुसार उनकी यह फिल्म सूफी कवि मलिक मोहम्मद जायसी की 16वीं सदी में लिखी ‘पद्मावत’ पर आधारित है. खिलजी की मौत की दो शताब्दी बाद पुस्तक लिखी गयी थी.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में महिला अध्ययन की सहायक प्रोफेसर अरुणिमा गोपीनाथ ने कहा, ‘इस बात की अनदेखी नहीं की जा सकती कि महाकाव्य ‘पद्मावत’ खिलजी के हमले के कई सदी बाद लिखी गयी थी. जायसी ने इसे अवधी में लिखा था, किसी राजस्थानी बोली में नहीं.’
उन्होंने कहा कि खिलजी के समसामयिक अमीर खुसरो ने 13वीं सदी में खिलजी की जीत और उनके शासन का विस्तृत ब्योरा दिया था. कवि ने उन्हें खूंखार सुल्तान की तरह पेश नहीं किया था. राणा सफवी ने कहा कि खिलजी में जो हैवानियत फिल्म में दिखाई गयी है वो उसे खलनायक की तरह पेश करती है.