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तेजस्वी की न्याय यात्रा के मायने को कुछ इस तरह समझा रहे हैं जदयू नेता, पढ़ें

पटना : बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राजद नेता 9 फरवरी से पूर्णिया से अपनी न्याय यात्रा शुरू करने वाले हैं. यात्रा की घोषणा के बाद से राजनीति शुरू हो गयी है. सत्ता पक्ष के नेताओं ने तेजस्वी पर यात्रा को लेकर जमकर निशाना साधा है. जदयू के प्रवक्ता और विधान पार्षद नीरज कुमार ने […]

पटना : बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राजद नेता 9 फरवरी से पूर्णिया से अपनी न्याय यात्रा शुरू करने वाले हैं. यात्रा की घोषणा के बाद से राजनीति शुरू हो गयी है. सत्ता पक्ष के नेताओं ने तेजस्वी पर यात्रा को लेकर जमकर निशाना साधा है. जदयू के प्रवक्ता और विधान पार्षद नीरज कुमार ने कहा कि जैसी सूचना मिल रही है कि बिहार के नेता लालू प्रसाद के विरासत संभालने वाले राष्ट्रीय जनता दल नेता तेजस्वी यादव न्याय यात्रा पर निकलने वाले हैं.उन्होंने कहा कि परंतु हकीकत अलग है. कबीर जी,बहुत पहले ही अपने दोहे के माध्यम से लोगों को चेताया था. नीरज ने कबीर के दोहे के माध्यम से तेजस्वी पर हमला बोलते हुए लिखते हैं- कबीर भेष अतीत का करतूति करै अपराध, बाहरी दीसै साध गति,याहैं महा असाध.

नीरज कुमार ने कहा कि तेजस्वी जी इस यात्रा के माध्यम से अपनी बेनामी संपत्ति की खोज में जा रहे हैं. उनके पिता जी लालू प्रसाद जी इन दिनों चारा घोटाले के मामले में जेल में बंद हैं,ऐसे में उन्हें सभी जमीन का पता नहीं चल रहा है.उन्होंने कहा कि इधर,बिहार में डिजिटल भारत अभियान के तहत राष्ट्रीय भूमि रिकॉर्ड आधुनिकीकरण का कार्य प्रारंभ है,जिसके तहत सभी भूखंडों के ऑनलाइन किया जा रहा है. ऐसे में तेजस्वी से इस यात्रा के माध्यम से गरीबों से नौकरी और राजनीतिक पद के नाम पर लिखवाये गये उन जमीनों की तलाश करेंगे जो इनके परिवार के नाम है.

नीरज कुमार ने कहा है कि ऐसे भी न्याय के मंदिर से न्याय मिलने का काम तो प्रारंभ है. लालू जी को तीन मामलों में न्याय के मंदिर ने सजा देकर उन बेजुबान जानवरों को न्याय मिल गया है, जिनका चारा भी इस बिहार में भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया था. ऐसे में न्याय यात्रा की बात करना ही बेमानी है. न्याय तो न्याय के मंदिर में मिलता है.

जदयू प्रवक्ता ने कहा कि वैसे,तेजस्वी जी कम पढे-लिखे हैं, परंतु अगर अपने भाई की तरह अध्यात्म की ओर भी होते हैं,तो कई तरह की बात नहीं करते. तेजस्वी जी अपने एक ट्वीट में कहते हैं कि नीतीश जी अपने विचित्र रोबोटिक प्रवक्ताओं के मुंह से विचित्र मुंह बनवाकर अपने शब्दों का बेसुरा ढोल पिटवाते. तेजस्वी जी महात्मा महान अष्टावक्र के शरीर आठ जगहां से टेढ़ा था, परंतु उनके शास्त्रार्थ के सामने कोई नहीं टिक सका था. इसलिएकम से कम अपने भाई से भी अध्यात्म की सीख लें कि किसी के अंग और सुर की नहीं उसके द्वारा उठाये गये प्रश्नों की ओर देखना चाहिए.

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