नयी दिल्ली : दिल्ली विधानसभा की सदस्य रही आम आदमी पार्टी की नेता अलका लांबा आज अपनी सदस्यता रद्द हाेने पर बिफर पड़ीं. अलका लांबा चांदनी चौक से विधायक थीं. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति को इस संबंध में फैसला लेने से पहले एक मौका हमलोगों को देना चाहिए था. उन्होंने कहा कि यह एक देश में दो कानून का मामला है. उन्होंने इस संबंध में हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश का उल्लेख किया और कहा कि अन्य राज्यों के संसदीय सचिवों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती है. अलका लांबा सहित आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता लाभ के पद के मामले में रद्द किये जाने की आज केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी की है. इस संबंध में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने चुनाव आयोग की सिफारिश पर फैसला लिया है.
अलका लांबा ने कहा कि कल से हमलोगों लगातार राष्ट्रपति भवन में फोन कर समय मांग रहे हैं. लेकिन, राष्ट्रपति ने बिना हमें समय दिये फैसला कर लिया. अलका लांबा ने कहा कि हमें पता नहीं कि राष्ट्रपति ने यह निर्णय स्वयं लिया या दबाव में. उन्होंने कहा कि यह फैसला मुख्य चुनाव आयुक्त अचल कुमार जोति ने अपनी रिटायरमेंट से पहले हड़बड़ी में दिया और इसमें उन चुनाव आयुक्तों का भी हस्ताक्षर है, जो इसकी सुनवाई प्रक्रिया में शामिल नहीं हुए थे.
Unfortunate that the President took the decision in such haste, without giving us chance to speak. It's an act of Centre using constitutional institutions. We've trust on judiciary. Doors of HC & SC is open for us.: Alka Lamba, one of the 20 disqualified AAP MLAs #OfficeOfProfit pic.twitter.com/BckXd6C11U
— ANI (@ANI) January 21, 2018
इस मामले को एक वकील प्रशांत पटेल ने उठाया था और इस संंबंध में तर्क दिये थे. शुक्रवार को चुनाव आयोग की इस पर अहम बैठक हुई, जिसके बाद राष्ट्रपति से आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की सिफारिश की गयी थी.चुनावआयोग ने अपनी रिपोर्ट में इन विधायकों को संसदीय सचिव बनाये जाने को उचित बताया था. इन विधायकों को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल नेमार्च 2015के आरंभ में संसदीय सचिव बनाया था और इस संंबंध में इसी साल के मध्य में एक पुराने कानून को संशोधित किया था, ताकि तकनीकी आधार पर इस फैसले को जायजा ठहराया जा सके. लेकिन, तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस संशोधन को स्वीकार नहीं किया था.
अलका लांबा ने कहा कि संसदीय सचिव रहते हुए उनकी तनख्वाह एक रुपये अलग से नहीं बढ़ी. उन्होंने अपने विरोधियों को यह साबित करने की चुनौती दी. अलका लांबा ने कहा कि उन लोगों के खिलाफ दिया गया फैसला एक देश दो कानून का मामला है. उन्होंने कहा कि उन्हें इस मामले में न्याय की उम्मीद है. अलका लांबा ने कहा कि इस फैसले के बावजूद भाजपा और कांग्रेस इसलिए खुश नहीं हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि अरविंद केजरीवाल की सरकार का कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं.