पटना : बिहार के मुख्यमंत्री व जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष नीतीश कुमार की पहल पर आज पूरे राज्य में दहेज प्रथा व बाल विवाह के खिलाफ मानव शृंखला बनायी जा रही है. नीतीश कुमार इससे पहले शराब के खिलाफ पिछले वर्ष बिहार में दुनिया की सबसे लंबी मानव शृंखला बनवाने का इतिहास रच चुके हैं. नीतीश कुमार की ऐसी पहल ने उन्हें राष्ट्रव्यापी लोकप्रियता दी है और उनके आलोचकों के पास भी ऐसे मुद्दों पर उनके खिलाफ बोलने के लिए कुछ बचता नहीं. नीतीश कुमार कार्यकारी पद पर बैठे हुए शख्स होने के बावजूद समाज सुधार कार्यों के लिए एक राजनीतिक अपवाद के रूप में उभरे हैं. सामान्यत: ऐसी पहल, ऐसे काम समाज सुधारक या वैसे राजनीतिक शख्सियत करते रहे हैं जिन्होंने कार्यकारी पद या शासन नहीं संभाला हो.
सामान्य तौर पर समाज सुधारकरने की छवि वाले नेता भी जब शासन में शामिल होते हैं, तो व्यवहारिक मजबूरियों के कारण ऐसी पहल नहीं करते हैं और शासन में आने के बाद ऐसा तर्क भी देते हैं.आंध्र के चंद्रबाबू नायडूऔर हरियाणा के बंसीलाल ने कहा था किपूरेराज्य में शराबबंदी लागू कर पाना संभव नहीं है. लेकिन,इनराज्यों की तुलना में औद्योगिक मानदंड पर काफी पिछड़ेकृषि प्रधान बिहार के मुखिया नीतीश कुमार ने ऐसा साहस किया. नीतीश कुमार के पूरे राजनीति कैरियर व मुख्यमंत्री के रूप में उनके शासन पर गौर करें तो वे अपने कदम व मौलिक सोच के लिए न सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आते रहे हैं, बल्कि अन्य राज्यों की राजनीति के लिए भी विमर्श का विषय बनते रहे हैं.
नीतीश की शराबबंदी पहल
देश के कुछ अन्य राज्यों में भी शराबबंदी कानून लागू है और बिहार शराबबंदी कानून लागू करने वाला सबसे नया राज्य है. लेकिन, बिहार में शराबबंदी कानून इतना सख्त है कि उस पर देश में सर्वाधिक विमर्श हुआ. तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में भी बिहार की शराबबंदी काफैसला एक मुद्दा बना था, पड़ोसी झारखंड में भी इसकी चर्चा शुरू हुई. बिहार में शराबबंदी से आठ हजार करोड़ रुपये राजस्व नुकसान का आकलन की बात कही जाती है, लेकिन नीतीश कुमार ने अपने अफसरों को मानव जीवन की बेहतरी की शर्त पर आर्थिक नुकसान सहने के लिए प्रेरित किया. नीतीश कुमार, शराबबंदी के बाद सामाजिक सूचकांक में आये बदलाव का कई मंचों से प्रुमखता से उल्लेख करते रहे हैं, हाल में जब वे पहले मुफ्ती आवार्ड से सम्मानित होने के लिए जम्मू कश्मीर गये तो वहां भी उन्होंने यह बात कही और लोगों को बिहार आने का न्यौता दिया. नीतीश कहते रहे हैं कि शराबबंदीके बाद बिहार में दूध व पोषक चीजों की बिक्री बढ़ी, घरेलू कलह व विवाद के मामले घट़े. बिहार से उत्पन्न नैतिक दबाव का ही परिणाम था कि हाल के सालों में कई राज्यों में सीमित शराबबंदी या पूर्ण शराबबंदी जैसे टर्म पर व्यापक चर्चा हुई.
नीतीश कुमार ने आज से ठीक साल पहले 21 जनवरी 2017 को शराब के खिलाफ बिहार में मानव शृंखला बनवायी थी और आज एक साल बाद वे एक नये अभियान के साथ लोगों के बीच हैं. राजनीति के माहिर प्रयोगधर्मी रहे नीतीश कुमार संभव है कि भविष्य में किसी और कुप्रथा के खिलाफ ऐसा नया आइडिया लेकर लोगों के बीच आयें.
दहेज प्रथा व बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता क्यों है जरूरी?
बिहार एक ऐसा राज्य है, जहां समाज में दहेज प्रथा एक जकड़न की तरह है. संपन्न, मध्यम व निम्न वर्ग सभी में दहेज लेने-देने का चलन आम है. दहेज वर पक्ष के लिए सामाजिक स्टेट्स बताने का जरिया है और संपन्न लड़की पक्ष वाले भी ऐसा बढ़-चढ़ कर इस अभिमान में करते हैं ताकि वे समाज व लोगों को यह बता सकें कि उन्होंने अपनी लाडली की शादी में कितना खर्च किया और वह उनकी कितनी दुलारी है. दहेज प्रथा के कारण ही वहां एक समय लड़के को पकड़ कर शादी करने का खूब चलन था और हाल में भी ऐसे मामले देखने को आये.
बड़ी संख्या में दहेज के लिए विवाहिताओं की हत्या होती है और ऐसी हत्या में लड़के वाले कई बार महिला के बच्चों को भी शिकार बना लेते हैं. ऐसे मामलों में सामान्यत: आत्महत्या कर लेने या जल कर मर जाने का मामला ही सामने आता है, लेकिन वास्तविकता अधिक खौफनाक होती है.
ऐसे में दहेज को लेकर एक शर्म का भाव पैदा करने में नीतीश कुमार का यह अभियान कारगर साबित होगा. नीतीश कुमार ने आज कहा भी कि दहेज प्रथा समाज के उच्च वर्ग से मध्य व निम्न वर्ग में आया, इसके खिलाफ जागरूकता जरूरी है. नीतीश ने ऐसा कह कर मध्य व निम्न वर्ग, जिनकी बहुलता है उनके अंदर यह अहसास उत्पन्न करने की भी कोशिश की है कि यह उनकी परंपरा तो कतई नहीं है. इसी तरह बाल विवाह लड़कियों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होता है. इसके खिलाफ भी जागरूकता जरूरी है.
नीतीश कुमार भारतीय राजनीति में पहली बार तब मजबूती से नोटिस किये गये थे, जब उन्होंने ढाई दशक पूर्व भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लालू प्रसाद यादव का न सिर्फ साथ छोड़ा था, बल्कि उनके सबसे बड़े विरोधी बन कर उभरे और जार्ज फर्नांडीस व दिग्विजय सिंह के साथ समता पार्टी बनायी. तब उनकी छवि भ्रष्टाचार के तीखे विरोधी की बनी. बाद के सालों में वाजपेयी कैबिनेट में प्रभावी मंत्री व बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में उनकी छवि सुधारवादी नेता व विकास करने वाले प्रशासक की बनी. नीतीश कुमार की शख्सियत में यह चीजें आज भी समाहित है, लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में इस पारी में वे एक समाज सुधारक की छवि वाले नेता की शख्सियत बनाने में कामयाब रहे हैं. भ्रष्टाचार विरोधी और कुशल प्रशासक की छवि कई नेताओं ने पायी है, लेकिन समाज सुधारक वाली छवि हासिल करने वाले नेता अपवाद में हैं, जिसमें एक नाम नीतीश का भी है.