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कहीं रोटी कमाने, तो कहीं सेहत बनाने की चिंता

ये है जिंदा रहने का जज्बा . हाड़ कंपाने वाली ठंड भी नहीं रोक पा रही लोगों की दिनचर्या संभ्रांत लोगों के लिए यह ठंड आरामतलबी का सबब हो सकती है, लेकिन वे बेचारे क्या करें जिन्हें रोटी के लिए ठंड से हर हाल में जीतना ही पड़ता है. या फिर वे लोग जिन्हें अपनी […]

ये है जिंदा रहने का जज्बा . हाड़ कंपाने वाली ठंड भी नहीं रोक पा रही लोगों की दिनचर्या

संभ्रांत लोगों के लिए यह ठंड आरामतलबी का सबब हो सकती है, लेकिन वे बेचारे क्या करें जिन्हें रोटी के लिए ठंड से हर हाल में जीतना ही पड़ता है. या फिर वे लोग जिन्हें अपनी सेहत की चिंता है. हमने कुछ ऐसे ही लोगों की दिनचर्या देखी.
सारठ : शनिवार की सुबह 5:40 बजे. घने कोहरे बावजूद महेशलेटी गांव के 55 वर्षीय जोधा कापड़ी 120 रुपये कमाने के लिए अजय नदी की ओर से जा रहे हैं. पूछने पर कहा कि कोहरा व ठंड को देखते रहेंगे तो पेट कहां से भरेगा. परिवार की रोटी का जुगाड़ कहां से होगा. कहा कि वे रोज सुबह छह बजे से नौ बजे तक नदी में छोटी मछली पकड़ते हैं. उसे वे बाजार या गांव में जा कर बेच आते हैं. इसमे‍ं उन्हें 120 से डेढ़ सौ रुपये हर दिन कमाई होती है. इससे उसका परिवार चलता है. इसी तरह मकर संक्रांति के पर्व पर ठंड व कोहरा की चिंता किये बिना महिलाएं सारवां व देवघर जा रही हैं. ये महिलाएं महेशलेटी व बेलवरना गांव की हैं. रोज मुढ़ी तैयार कर बेचती हैं.
स्वस्थ रहने के लिए मॉर्निंग वाक जरूरी
गर्मी, बरसात हो या सर्दी, सुबह की सैर नहीं हो तो, जीवन बेकार. मॉर्निंग वाक के वावत दिलीप झा व उत्तम शर्मा ने कहा कि सुबह की सैर हो जाये तो दिन सही रहता है. अब तो सुबह की सैर की आदत से हो गयी है, कोहरा हो या ठंड , सैर तो होगी ही.

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