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आर्थिक सुधारों के बाद जीडीपी में आती है सुस्ती, घबराने की जरूरत नहीं : नीति आयोग

नयी दिल्ली : केंद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़े में भारत का जीडीपी अनुमान चालू वित्त वर्ष में 6.5 रखी गयी. सरकार के लिए यह आंकड़े सिरदर्द साबित हो रही है. यह पिछले चार वर्ष का सबसे कम ग्रोथ रेट बताया जा रहा है. आंकड़े को लेकर कई अर्थशास्त्रियों व राजनेताओं ने प्रतिक्रिया व्यक्त की […]

नयी दिल्ली : केंद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़े में भारत का जीडीपी अनुमान चालू वित्त वर्ष में 6.5 रखी गयी. सरकार के लिए यह आंकड़े सिरदर्द साबित हो रही है. यह पिछले चार वर्ष का सबसे कम ग्रोथ रेट बताया जा रहा है. आंकड़े को लेकर कई अर्थशास्त्रियों व राजनेताओं ने प्रतिक्रिया व्यक्त की है.

उधर नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि मनमोहन सिंह ने 1991-92 जब आर्थिक सुधारों की घोषणा की थी, तब विकास दर 1.1 तक गिर गयी थी. राजीव कुमार ने इस बात का जिक्र किया है कि पिछली तीन तिमाही से आर्थिक गतिविधि जोर पकड़ी है और आगामी अवधि में और मजबूती आ सकती है क्योंकि मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर इंडेक्स (पीएमआई) अभी पांच साल के ऊंचे स्तर 54 फीसदी पर है और एफएमसीजी क्षेत्र में मांग तेजी से बढ़ रही है. इस तरह 2018-19 में जीडीपी विकास दर ज्यादा मजबूत हो
विकास दर को लेकर भाजपा नेता सुब्रमण्यन स्वामी ने ट्वीट कर कहा कि भारत का विकास दर 7.1 प्रतिशत थी. अब यह गिरकर 6.5 प्रतिशत हो गयी. अगर भारत से गरीबी दूर करना चाहते हैं तो देश का विकास दर कम – से – कम 10 प्रतिशत रहना चाहिए.
आर्थिक वृद्धि में सुस्ती का डर हुआ सच: चिदंबरम
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने मौजूदा वित्त वर्ष के लिए कम आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को लेकर आज सरकार पर हमला बोला. उन्होंने कहा कि आर्थिक वृद्धि में जिस सुस्ती का डर था वह सामने आ गया है. चिदंबरम ने एक बयान में कहा कि नई परियोजनाओं और नये निवेश में गिरावट आयी है. असंगठित क्षेत्र नोटबंदी के दुष्प्रभावों से जूझ रहा है. रोजगार सृजन नाम मात्र का है, निर्यात कम हो रहा है और विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि नीचे आ गयी है. कृषि क्षेत्र को भारी नुकसान हुआ है और ग्रामीण क्षेत्रों में भारी निराशा है.
उन्होंने कहा कि रोजगार सृजन भारतीय जनता पार्टी सरकार की सबसे बडी असफलता है. बैंकों की ऋण वृद्धि भी बहुत ही कम है और यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है. पूर्व वित्त मंत्री ने कहा, आसन्न आर्थिक नरमी का डर सच हो रहा है. देश के तेज गति से वृद्धि करने के मोदी सरकार के भारी-भरकम दावे हवा में उड गये हैं. चाशनी चढ़ाने, डींग हांकने तथा सुर्खियों को साध कर सच को छिपाने से सच्चाई छुपाई नहीं जा सकती है. हमारे डर व चेतावनियां सच हो गयी हैं. चिदंबरम ने कहा कि हालिया सामाजिक असंतोष इसी आर्थिक सुस्ती का प्रत्यक्ष परिणाम है जिसे सरकार छिपाना चाह रही है. अब समय आ गया है कि सरकार बड़े दावे करने के बजाय कुछ ठोस काम करे.
सरकार के आंकडों का हवाला देते हुए चिदंबरम ने कहा कि वित्त वर्ष 2015-16 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर आठ प्रतिशत थी जो 2016-17 में 7.1 प्रतिशत पर आ गयी। 2017-18 में इसके 6.5 प्रतिशत पर आ जाने का अनुमान है. इससे साबित होता है कि आर्थिक वृद्धि सुस्त पड रही है.पूर्व वित्त मंत्री ने कहा कि आर्थिक गतिविधियों और वृद्धि में गिरावट का मतलब लाखों नौकरियां जाना है. उन्होंने कहा कि जहां जीडीपी वृद्धि के 2016-17 के 7.1 प्रतिशत की तुलना में 2017-18 में 6.5 प्रतिशत पर आ जाने का अनुमान है, वहीं वास्तविक सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) के भी 2016-17 के 6.6 प्रतिशत की तुलना में 2017-18 में 6.1 प्रतिशत रहने का अग्रिम अनुमान है.
चिदंबरम ने कहा कि खुदरा महंगाई नवंबर में बढकर 15 महीने के उच्चतम स्तर 4.88 प्रतिशत पर पहुंच गयी है. औद्योगिक उत्पादन अक्तूबर में गिरकर तीन महीने के निचले स्तर 2.2 प्रतिशत पर आ गया है. उन्होंने कहा, निवेश की तस्वीर धुंधली बनी हुई है. विनिर्माण क्षेत्र में सबसे बडी गिरावट आयी है और राजकोषीय घाटा के जीडीपी का 3.2 प्रतिशत रहने के बजटीय अनुमान से आगे निकल जाने की आशंका है.

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