यह आस्था एवं विश्वास का नतीजा है कि इस देश में बाबाओं एवं स्वामियों की दुकानदारी फल-फूल रही है. इतना पर्दाफाश होने के बावजूद लोग बाबाओं के बहकावे में आकर अपना सबकुछ लुटा रहे हैं. निर्मल बाबा, आशाराम बापू, संत रामपाल और गुरमीत राम रहीम के काले चिट्ठे खुलने के बाद भी भारतीय लोग आस्था के आगे मजबूर बने बैठे हैं.
अगर ऐसा नहीं होता, तो दिल्ली के रोहिणी इलाके में आध्यात्मिक विश्वविद्यालय चलाने वाले वीरेंद्र देव दीक्षित के फेरे में लोग न फंसते. हजारों बाबा एवं स्वामी देशभर में लोगों की परेशानियों का नाजायज फायदा उठा रहे है. लोगों को एक बात की गांठ बांध लेनी चाहिए कि जन्म, विवाह एवं मृत्यु का निर्धारण हो चुका है. कोई संत महात्मा इसमें कोई बदलाव नहीं कर सकता है.
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी.