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असाधारण गुणों के मालिक अटल बिहारी वाजपेयी

सुधींद्र कुलकर्णी लेखक अटल बिहारी वाजपेयी का यह 93वां जन्मदिन है. उनका सार्वजनिक जीवन में आना राजनीति के जरिये नहीं हुआ था, बल्कि साहित्य के जरिये हुआ था. मैं मानता हूं कि राजनीति से पहले उनका सबसे पहला पदार्पण कविता के क्षेत्र में ही हुआ था. वे बचपन में ही अपने पिताजी के साथ कवि […]

सुधींद्र कुलकर्णी
लेखक
अटल बिहारी वाजपेयी का यह 93वां जन्मदिन है. उनका सार्वजनिक जीवन में आना राजनीति के जरिये नहीं हुआ था, बल्कि साहित्य के जरिये हुआ था. मैं मानता हूं कि राजनीति से पहले उनका सबसे पहला पदार्पण कविता के क्षेत्र में ही हुआ था. वे बचपन में ही अपने पिताजी के साथ कवि सम्मेलनों में जाया करते थे और बड़े कवियों के साथ कविताएं पढ़ते थे.
उनकी कविताओं में राष्ट्रभक्ति के साथ समाज की समस्याओं और अवस्थाओं को देखा जा सकता है. इसलिए मैं मानता हूं कि राजनीति में आने की बुनियाद में उनका साहित्य ही रहा है. कवि की संवेदनशीलता, दूरदृष्टि और समग्र दृष्टि होती है. इसी समग्र दृष्टि का प्रतिबिंब हमें उनकी राजनीति में दिखायी देता है. आज वे किसी को पहचान नहीं पा रहे हैं, लेकिन उनकी कविताएं सभी मानवीय सरोकारों को पहचान जाती हैं.
अटल बिहारी वाजपेयी एक ऐसे वक्ता थे, जिनके वक्तृत्व में तीन तरह की शक्तियां थीं- विचारों की शक्ति थी, वाणी की शक्ति थी और ईमानदारी की शक्ति. उनके वक्तृत्व में जैसी गहराई हुआ करती थी, आज किसी और नेता में ऐसा देखने को नहीं मिलता है.
अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक व्यक्तित्व में कई असाधारण गुण हैं. सबसे बड़ा गुण तो यह है कि भारतीय राजनीति में उनका कोई दुश्मन नहीं है. भारतीय राजनीति में आज किसी का कोई शत्रु न हो, यह बहुत बड़ी बात मानी जायेगी. भारत के सभी सामाजिक वर्गों के साथ, सभी राजनीतिक दलों के साथ उनका बहुत अच्छा संबंध था. उनके लिए राष्ट्र ही सर्वोपरि था.
पार्टी और राजनीति तो उनके लिए राष्ट्र के बाद की चीजें थीं. यही वजह है कि उनके 1996 में भारत का प्रधानमंत्री बनने से बहुत पहले से ही लोगों काे यह लगता था कि देश का प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को ही बनना चाहिए. सत्तर-अस्सी के दशकों में ही लोगों में यह धारणा थी कि अटल बिहारी वाजपेयी ही भारत के सबसे अच्छे प्रधानमंत्री हैं, जो अभी तक प्रधानमंत्री नहीं बने हैं. जब वे प्रधानमंत्री बने और जिस नेतृत्व क्षमता से उन्होंने देश को दिशा दी, उससे सत्तर-अस्सी की वह धारणा सही साबित हुई. आप कह सकते हैं कि भारत का प्रधानमंत्री बनकर उन्हाेंने प्रधानमंत्री पद की गरिमा काे सुशोभित किया है.
फरवरी, 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी ने जो ‘दिल्ली-लाहौर बस’ चलायी थी, उसमें मैं भी था. इसलिए एक प्रत्यक्षदर्शी होने के नाते मैं बता सकता हूं कि तब पाकिस्तान की जनता में यह उम्मीद गहरे तक बैठ गयी थी कि अटल बिहारी वाजपेयी की बस-नीति के चलते भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती और शांति स्थापित हो सकती है. उस वक्त लाहौर के गवर्नर हाउस में रिसेप्शन के दौरान दिया गया अटलजी का भाषण एक ऐतिहासिक भाषण है.
उसमें उन्होंने एक कविता भी सुनायी थी- जंग न होने देंगे. उस कविता को सुनने के बाद पाकिस्तान के लोगों की आंखों में आंसू आ गये थे. यह अटलजी ही थे, जिन्होंने यह साबित किया कि एक नेता अपनी ईमानदार और प्रभावी राजनीति से दूसरे देशाें के आम लोगों का दिल जीत सकता है. उनके शासन काल में उनके नेतृत्व की कई चीजें बहुत ही अहम हैं.
भारत का विकास और दूसरा, सभी पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को सुधारना, विशेषकर पाकिस्तान के साथ जिस ईमानदारी से संबंधों को सुधारने का उन्होंने प्रयास किया, वह भारत के राजनीतिक इतिहास में एक आयाम है. भारतीय राजनीति को ऐसे आयामों की आज ज्यादा जरूरत है.
भारत जैसे बड़े और विविधताओं से भरे देश को एकसूत्र में बांधे रखने की कला जाते थे अटलजी. उन्होंने संसद में संवाद को बनाये रखने का जो स्तर स्थापित किया था, आज वह नहीं दिख रहा है.
संसद में संवादहीनता व्याप्त है और संसद का समय और पैसा दोनों बरबाद हो रहा है. एक-दूसरे की बात सुनना, एक-दूसरे का सम्मान करना और संवाद के स्तर को ऊंचा बनाये रखना संसद की गरिमा के लिए जरूरी होती है. अटल जी ने इस गरिमा को बनाये रखा था. सबको समान दृष्टि से देखना उनकी राजनीति का मजबूत पहलू था.
जब वे प्रधानमंत्री थे, तब न केवल एनडीए के सबसे छोटे दल के भी लोगों को वे बराबर का सम्मान देते थे, बल्कि साथ ही कांग्रेस जैसे विपक्ष के लोगों को भी वे वैसा ही सम्मान देते थे.

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