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गौरी लंकेश बनी पत्रकारों के संघर्ष की प्रतीक, भारत में इस साल 9 पत्रकारों को गंवानी पड़ी जान

नयी दिल्ली : वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की दिनदहाड़े हत्या ने पूरे देश को हिला कर रख दिया और लगभग पूरे साल यह मामला सुर्खियों में छाया रहा. इस मामले ने भारत में पत्रकारों की सुरक्षा को एक बड़े मुद्दे के रूप में रेखांकित किया. मुद्दे की गंभीरता को इसी बात से समझा जा सकता […]

नयी दिल्ली : वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की दिनदहाड़े हत्या ने पूरे देश को हिला कर रख दिया और लगभग पूरे साल यह मामला सुर्खियों में छाया रहा. इस मामले ने भारत में पत्रकारों की सुरक्षा को एक बड़े मुद्दे के रूप में रेखांकित किया. मुद्दे की गंभीरता को इसी बात से समझा जा सकता है कि साल 2017 में मीडियाकर्मियों पर हमलों की विभिन्न घटनाओं में नौ पत्रकार जान गवां बैठे.

पत्रकारों की हत्याओं से चिंतित केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को परामर्श जारी किया और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के निर्देश दिये. इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स (आईएफजे) ने भी भारत में पत्रकारों की हत्याओं पर चिंता जतायी और ऐसी घटनाओं की निंदा की. इस साल किसी पत्रकार की हत्या की पहली घटना 15 मई को तब हुई जब इंदौर में स्थानीय अखबार अग्निबाण के 45 वर्षीय पत्रकार श्याम शर्मा की हत्या कर दी गयी.

मोटरसाइकिल सवार दो हमलावरों ने उनकी कार को रुकवाकर उनका गला रेत दिया. इसके 15 दिन बाद 31 मई को एक हिन्दी दैनिक के पत्रकार कमलेश जैन की मध्य प्रदेश के पिपलिया मंडी क्षेत्र में गोली मारकर हत्या कर दी गयी. पांच सितंबर को बेंगलूरु में 55 वर्षीय पत्रकार गौरी लंकेश की गोली मारकर हत्या कर दी गयी.

वह कन्नड़ भाषा के साप्ताहिक पत्र लंकेश पत्रिका की संपादक थीं. हमलावरों ने उनके घर के पास उन्हें कई गोलियां मारीं. अभी इस घटना को 15 दिन ही हुए थे कि एक और पत्रकार की हत्या हो गयी. 20 सितंबर को त्रिपुरा में स्थानीय टेलीविजन पत्रकार शांतनु भौमिक की तब हत्या कर दी गयी, जब वह इंडीजीनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) तथा त्रिपुरा राजाएर उपजाति गणमुक्ति परिषद (टीआरयूजीपी) के बीच संघर्ष की कवरेज कर रहे थे.

भौमिक की हत्या के महज तीन दिन बाद 23 सितंबर को पंजाब के मोहाली में 64 वर्षीय वरिष्ठ पत्रकार केजे सिंह और उनकी 94 वर्षीय मां की हत्या कर दी गयी. सिंह के पेट में चाकू से कई वार किये गये थे और उनका गला रेत दिया गया था. उनकी मां की हत्या गला घोंटकर की गयी थी. इसके बाद 21 अक्तूबर को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में पत्रकार राजेश मिश्र की गोली मारकर हत्या कर दी गयी.

इस हमले में उनके भाई बुरी तरह घायल हुए थे. हमलावरों ने उन पर कई गोलियां चलायी थीं. गत 20 नवंबर को बंगाली अखबार स्यांदन पत्रिका के पत्रकार सुदीप दत्ता भौमिक की अगरतला से 20 किलोमीटर दूर आरके नगर में 2-त्रिपुरा राइफल्स के एक कांस्टेबल ने गोली मारकर हत्या कर दी. इसके 10 दिन बाद 30 नवंबर को उत्तर प्रदेश में कानपुर के बिल्हौर क्षेत्र में एक अखबार से जुड़े पत्रकार नवीन गुप्ता की गोली मारकर हत्या कर दी गयी.

गुजरते साल के साथ हरियाणा में भी एक पत्रकार की हत्या का मामला सामने आया. कई अखबारों के साथ अंशकालिक पत्रकार के रूप में जुड़े रहे राजेश श्योराण का क्षत-विक्षत शव 21 दिसंबर की सुबह चरखी दादरी जिले में कलियाणा रोड के किनारे पड़ा मिला. पत्रकार संगठन एनयूजे-आई के अध्यक्ष रासबिहारी ने कहा कि भारत जैसे देश में पत्रकारों की हत्या चिंता का विषय है. उन्होंने कहा कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिए केंद्र को अलग से पत्रकार सुरक्षा कानून बनाना चाहिए.

रासबिहारी ने कहा कि उन्होंने इस संबंध में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह को ज्ञापन सौंपा है. वहीं, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के महासचिव विनय कुमार ने कहा कि पत्रकारों की हत्या अत्यंत निंदनीय है और प्रेस क्लब तथा अन्य संगठनों के पदाधिकारियों ने इस संबंध में केंद्रीय गृहमंत्री से मुलाकात की थी. इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्य सरकारों को पत्रकारों की सुरक्षा के लिए परामर्श जारी किया था, लेकिन फिर भी ऐसी घटनाओं का न रुक पाना चिंताजनक है.

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