नयी दिल्ली : दो बार के ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार ने जोरदार वापसी की लेकिन इससे खेल के रुप में कुश्ती की प्रगति पर सवालिया निशान लग गया जो तीन साल पहले इस दिग्गज पहलवान के अचानक हटने के बाद से काफी आगे नहीं बढ़ पाया.
बीजिंग ओलंपिक 2008 से भारत को कुश्ती में पदक मिल रहे हैं लेकिन कुल मिलाकर यह खेल उस स्तर को बनाए रखने में नाकाम रहा है जो एक समय बना था और 2017 के दौरान यह जाहिर भी हो गया. कई मौकों पर पदक जीतने के बावजूद भारतीय पहलवान कई मौकों पर उम्मीद पर खरे नहीं उतरे और कोई भी सुशील या योगेश्वर दत्त के स्तर के करीब नहीं पहुंच पाया. रियो ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता साक्षी मलिक के प्रदर्शन में भी निरंतरता की कमी दिखी.
वापसी करना आसान नहीं था लेकिन 34 साल के सुशील को राष्ट्रमंडल कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक के दौरान किसी तरह की मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा. सुशील के दिखा दिया कि उनके स्तर में कोई कमी नहीं आई है और युवाओं को अभी लंबा रास्ता तय करना होगा विशेषकर उनके पुरष 74 किग्रा फ्रीस्टाइल वजन वर्ग में.
ग्लास्गो में 2014 राष्ट्रमंडल खेलों के बाद से बाहर सुशील की वापसी की उम्मीद काफी लोगों ने नहीं की थी विशेषकर उन हालात को देखते हुए जिनके कारण उन्हें बाहर रहना पड़ा. इस सब की शुरुआत चोट से हुई जिसके कारण वह 2015 में विश्व चैंपियनशिप के चयन ट्रायल में हिस्सा नहीं ले पाए जो रियो ओलंपिक का क्वालीफायर भी था. इसके बाद हालात ने अजीब मोड़ लिया.
भारतीय कुश्ती महासंघ और दिल्ली उच्च न्यायालय ने उन्हें पिछले साल ओलंपिक में हिस्सा लेने का मौका देने से रोक दिया जबकि उन पर अपने वजन वर्ग में रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाले पहलवान के पीने की चीज में अवैध पदार्थ मिलाने के आरोप भी लगे.
इसके अलावा प्रशासनिक जिम्मेदारी और राष्ट्रीय पर्यवेक्षक के रुप में नियुक्ति ने खिलाडी के रुप में सुशील का भाग्य लगभग तय कर दिया था. सुशील ने हालांकि इसके बाद इंदौर में पिछले महीने राष्ट्रीय चैंपियनशिप के साथ मैट पर वापसी करने का फैसला किया. उन्होंने बाद में राष्ट्रीय पर्यवेक्षक के रुप में इस्तीफा देते हुए खिलाड़ी के रुप में प्रतिस्पर्धा जारी रखने के अपने इरादे जाहिर किए.
सुशील की परिकथा जैसी वापसी हालांकि विवादों से दूर नहीं रही जब उनके पांच में से तीन प्रतिद्वंद्वियों ने सम्मान में उनके खिलाफ नहीं उतरने का फैसला किया और स्वर्ण पदक उनकी झोली में डाल दिया. उनके प्रतिद्वंद्वियों ने इस तरह सुशील से खुद को साबित करने का मौका भी छीन लिया.
सुशील को हालांकि अपनी क्षमता साबित करने के लिए अधिक इंतजार नहीं करना पडा और उन्होंने जोहानिसबर्ग में हाल में संपन्न राष्ट्रमंडल कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता. सुशील को हालांकि राष्ट्रमंडल चैंपियनशिप में सिर्फ पांच प्रतिद्वंद्वियों का सामना करना पड़ा जिन्हें उन्होंने हरा दिया. इनमें से एक हमवतन प्रवीण राणा भी थे जिन्होंने इंदौर में खिताबी मुकाबले में उन्हें वाकओवर दिया था. दोनों के बीच राष्ट्रमंडल चैंपियनशिप में हुए मुकाबले को सुशील ने 5-4 से जीता.
इस जीत के साथ सुशील ने खुद को साबित तो किया लेकिन इससे भारतीय कुश्ती की काफी उज्जवल तस्वीर नहीं दिखी. सुशील और नरसिंह के जाने के बाद 74 किग्रा वर्ग में राणा भारत के शीर्ष पहलवान रहे लेकिन उनकी हार से साबित हो गया कि इस खेल ने देश में काफी प्रगति नहीं की.
सिर्फ 74 किग्रा वर्ग में ही नहीं बल्कि अगस्त में विश्व चैंपियनशिप में भारतीय पहलवान तीनों वर्गों- पुरुष और महिला फ्रीस्टाइल तथा ग्रीकोरोमन में खाली हाथ लौटे. साक्षी और एशियाई चैंपियन बजरंग पूनिया की मौजूदगी के बावजूद कोई भारतीय पहलवान पदक दौर में भी जगह नहीं बना सका.
भारत ने इससे पहले मई में अपनी मेजबानी में नयी दिल्ली में एशियाई चैंपियनशिप में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए एक स्वर्ण पदक सहित 10 पदक जीते थे. पोलैंड के बिदगोज में हालांकि अंडर 23 विश्व चैंपियनशिप में बजरंग, विनोद ओमप्रकाश और रितु फोगाट ने पहली बार भारत के लिए तीन रजत पदक जीते.
भारत ने राष्ट्रमंडल कुश्ती में सभी तीन वर्गों में पदक जीते लेकिन वहां प्रतिस्पर्धा के स्तर को देखते हुए यह विश्व मंच पर उसके रतबे को स्थापित करने के लिए काफी नहीं है. भारतीय पहलवानों ने हालांकि अपनी क्षमता दिखाई और अनुभवी सुशील की मौजूदगी में अगले साल राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में उनसे बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है.