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माओवादियों के सीमित होते विकल्प

बिहार के मसूदन रेलवे स्टेशन पर माओवादियों ने जो कुछ भी किया, उससे साफ है कि वे अपनी ही धारा से विमुख होने लगे हैं. आर्थिक संकट का सामान करने से उनकी कमर टूट गयी है. माओवाद के खिलाफ अब बिहार और झारखंड की जनता भी खुल कर सामने आने लगी है. अब माओवादी आत्मसमर्पण […]

बिहार के मसूदन रेलवे स्टेशन पर माओवादियों ने जो कुछ भी किया, उससे साफ है कि वे अपनी ही धारा से विमुख होने लगे हैं. आर्थिक संकट का सामान करने से उनकी कमर टूट गयी है. माओवाद के खिलाफ अब बिहार और झारखंड की जनता भी खुल कर सामने आने लगी है.

अब माओवादी आत्मसमर्पण करने के पक्षधर हैं, क्योंकि उनके पास न तो पैसा हैं, न ही पहले जैसा संगठन रहा. खून-खराबे से नक्सलियों के शीर्ष नेताओं को छोड़ कर बाकी किसी को कुछ नहीं मिला. न तो उनके हिसाब से समाज बदला, न सत्ता बदली, बल्कि वे खुद समाज की मुख्यधारा से अलग-थलग पड़ गये. ऊपर से नक्सलवादियों के खिलाफ सत्ता सख्त है.

ऐसे में उनका सफाया तय है. सेना और अर्द्धसैनिक बल ने ड्रोन और हेलीकॉप्टर तक का इस्तेमाल करना शुरू किया है. ऐसे में उग्रवादियों के पास विकल्प नहीं बचा है. छोटे स्टेशन पर हल्ला कर यह बताना चाहते है कि हम हारे नहीं है.

कांतिलाल मांडोत, ई-मेल से.

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