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बिहार : प्राइवेट अस्पताल नहीं बताते कैसे हुई मौत
इलाज का खेल : बिहार में डेथ ऑडिट कमेटी नहीं, विभाग को चिंता भी नहीं आनंद तिवारी पटना : राजधानी के निजी अस्पतालों में मरीजों की मौत की जिम्मेदारी तय करने के लिए किसी भी नियम कानून का पालन नहीं हो रहा है. निजी अस्पतालों में मरीजों की मौत के बाद परिजनों को सिर्फ सर्टिफिकेट […]
इलाज का खेल : बिहार में डेथ ऑडिट कमेटी नहीं, विभाग को चिंता भी नहीं
आनंद तिवारी
पटना : राजधानी के निजी अस्पतालों में मरीजों की मौत की जिम्मेदारी तय करने के लिए किसी भी नियम कानून का पालन नहीं हो रहा है. निजी अस्पतालों में मरीजों की मौत के बाद परिजनों को सिर्फ सर्टिफिकेट देकर पल्ला झाड़ लिया जाता है. लेकिन मरीज की मौत क्यों हुई और जिम्मेदार कौन है, इस दिशा में कोई भी कारगर पहल नहीं की जा रही है. जबकि नियमानुसार किसी भी अस्पताल में मरीज की मौत के बाद डेथ ऑडिट कमेटी का गठन कर इसके लिए बैठक की जाती है.
यह कमेटी मरीज की मौत के बिंदुओं पर नजर रखती है और मौत की सही वजह जानने के बाद उस दिशा में सुधार या फिर दंडात्मक कार्रवाई करती है. मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों के अनुसार सभी सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों में मरीज की मौत के बाद संबंधित अस्पताल की ऑडिट टीम से जांच कराना व बैठक करना अनिवार्य है. सभी अस्पतालों को अपने स्तर पर टीम का गठन करना चाहिए. रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग सेंट्रल ऑडिट कमेटी को भेजनी चाहिए.
गठन से क्या होगा फायदा
अस्पताल में मरीज की मौत के बाद परिजन हंगामा व तोड़फोड़ करते हैं. इससेचिकित्सा सेवा पर सवाल खड़े होने के साथ ही इलाज व्यवस्था पर भी असर पड़ता है. ऐसे में डेथ ऑडिट कमेटी की टीम मरीज की मौत के कारणों के साथ ही इलाज में होने वाली कथित लापरवाही के मामलों की जांच करती है. इससे हर मरीज की शिकायतें दूर हो जाती हैं. इस तरह की स्थितियां कमोबेश पूरे बिहार में है. जांच टीम की रिपोर्ट के बाद मरीज व डॉक्टर दोनों संतुष्ट हो जाते हैं.
पटना में रोजाना 50 से अधिक मौतें
राजधानी में सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों को मिला कर रोजाना 50 से अधिक मरीजों की मौत हो जाती है. इसमें अकेले पीएमसीएच में 10 से 12 व आईजीआईएमएस में पांच व एनएमसीएच में पांच से सात मरीजों की मौत हो जाती है.
इसके अलावा न्यू बाइपास एरिया के निजी अस्पतालों में मरीजों की मौत की संख्या अधिक है. लेकिन इन सभी मरीजों को अस्पताल प्रशासन सिर्फ डेथ सर्टिफिकेट देता है. आज तक न तो डेथ ऑडिट कमेटी का गठन हुआ और न ही टीम की बैठक. वहीं अगर ऑडिट टीम का गठन किया जाता है, तो मरीज के अलावा डॉक्टरों को भी काफी राहत मिलेगी.
डॉक्टर पर हो सकती है कार्रवाई
ऑडिट कमेटी मरीजों के उपचार, उसके रोग के लिए होने वाली जांचों, मरीजों को अस्पताल में मिलने वाली सुविधाओं का भी आकलन करती है. कमेटी की रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग के अलावा सेंट्रल ऑडिट कमेटी को भी भेजी जाती है.
इस रिपोर्ट की दोबारा जांच होती है और यदि कहीं किसी भी डॉक्टर की लापरवाही उजागर होती है, तो उसके खिलाफ रिपोर्ट प्रशासन को भेजी जायेगी. इस संबंध में बताया जाता है कि इलाज और डायग्नोसिस में मामूली लापरवाही मिलने पर डॉक्टर को चेतावनी दी जाती है. वहीं मरीज की मौत डॉक्टर की लापरवाही से हुई मिली, तो डॉक्टर को निलंबित किया जाता है. इसके साथ ही इलाज की गाइडलाइन भी तैयार की जाती है. ताकि इससे गंभीर मरीजों का बेहतर तरीके से इलाज हो सके.
इन राज्यों में गठित है टीम
अभी हाल ही में गोरखपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में बच्चों की मौत के बाद चिकित्सा शिक्षा महानिदेशालय (डीजीएमई) ने इसे गंभीरता से लेते हुए डेथ ऑडिट टीम का गठन किया है.
इसके अलावा मध्य प्रदेश, दिल्ली, मुंबई, गुजरात, हरियाणा आदि कई राज्यों ने डेथ ऑडिट टीम का गठन किया है. किसी भी प्राइवेट व सरकारी अस्पताल में मौत के बाद टीम के सदस्य जाते हैं और जांच के बाद बैठक करते हैं. अगर डॉक्टर की लापरवाही मिलती है, तो डॉक्टर पर कार्रवाई या फिर इलाज में सुधार आदि के बारे में निर्देश जारी करते हैं.
क्या कहती है बिहार एथिक्स कमेटी
सभी निजी अस्पतालों में डेथ ऑडिट टीम का गठन होना चाहिए. इससे मरीज व डॉक्टर दोनों को काफी फायदा होगा. स्वास्थ्य विभाग को चाहिए कि वह सिविल सर्जन के माध्यम से सभी निजी अस्पतालों को चिट्ठी भेजें और टीम का गठन कराएं. ताकि मौत के कारणों का पता लगे. -डॉ सुनील सिंह, मेंबर बिहार मेडिकल एथिक्स कमेटी
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