राजकोट : भाजपा का गढ़ और सबसे सुरक्षित राजकोट-पश्चिम सीट पर गुजरात के मौजूदा मुख्यमंत्री विजय रुपाणी को कड़े और रोमांचक मुकाबले का सामना करना पड़ सकता है. इस सीट पर रुपाणी को आरक्षण को लेकर पाटीदारों और जीएसटी व नोटबंदी जैसे मुद्दों पर व्यापारियों की नाराजगी से निपटने की चुनौती है.
सीएम को इस सीट पर कांग्रेस के इंद्रनील राज्यगुरु से भी चुनौती मिल रही है. यहां चर्चा कर दें कि इस सीट पर 1985 से भाजपा का कब्जा है. राजकोट पश्चिम सीट पर सबसे ज्यादा पाटीदारों की संख्या है. पार्टीदारों के बीच भाजपा का आधार कोटा आंदोलन और हार्दिक पटेल के कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने की वजह से प्रभावित हो सकता है.
कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला वर्ष 1985 से 2012 तक भाजपा के लिए सात बार इस सीट पर परचम फहरा चुके हैं. वर्ष 1985 में उन्होंने हर्षदबा चूड़ासमा को पराजित किया था. नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री के तौर पर नामांकित किये जाने के बाद वजुभाई वाला ने वर्ष 2002 में मोदी के लिए यह सीट छोड़ दी थी लेकिन बाद में नरेंद्र मोदी के मणिनगर विधानसभा क्षेत्र का रुख करने के बाद उन्होंने वर्ष 2012 तक अपनी जीत का सिलसिला जारी रखा.
गौर हो कि वजुभाई वाला को कर्नाटक भेजे जाने के बाद वर्ष 2014 में विजय रूपाणी ने उपचुनाव में इस सीट पर जीत हासिल की. हालांकि राजकोट-पश्चिम को आरएसएस का मजबूत गढ़ माना जाता है लेकिन कांग्रेस ने राज्यगुरू को इस सीट पर उतार कर एक कड़ी चुनौती पेश कर दी है.
इस सीट पर जीत हासिल करने के लिए रूपाणी को आक्रोशित पाटीदारों और व्यापारी समुदाय का विश्वास जीतना है. उन्हें नोटबंदी और जीएसटी लागू किये जाने के प्रभाव का सामना करना पड़ रहा है. यही नहीं, भाजपा के शासन में शिक्षा और सरकारी नौकरी में आरक्षण के अभाव को लेकर पाटीदारों के गुस्से को कांग्रेस रूपाणी के खिलाफ भुनाना चाह रही है.
राजनीतिक जानकारों की मानें तो पार्टीदारों के बीच भाजपा का आधार कोटा आंदोलन और हार्दिक पटेल के कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने की वजह से भाजपा को यहां नुकसान उठाना पड़ सकता है.