एनएफएचएस की रिपोर्ट ने खोली स्वास्थ्य विभाग की पोल
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जिले के 100 बच्चों में 67 का जन्म घरों में, 3% गर्भवती की जांच
एनएफएचएस की रिपोर्ट ने खोली स्वास्थ्य विभाग की पोल स्वास्थ्य विभाग ने गलत आंकड़े पेश कर अपनी पीठ थपथपायी जिले के डीसी व सिविल सर्जन को भेजी गयी रिपोर्ट चाईबासा : नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-4 ) 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार गर्भवती की प्रसव से पूर्व व बाद मेडिकल केयर मामले में पश्चिमी सिंहभूम […]
स्वास्थ्य विभाग ने गलत आंकड़े पेश कर अपनी पीठ थपथपायी
जिले के डीसी व सिविल सर्जन को भेजी गयी रिपोर्ट
चाईबासा : नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-4 ) 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार गर्भवती की प्रसव से पूर्व व बाद मेडिकल केयर मामले में पश्चिमी सिंहभूम फिसड्डी है. वर्ष 2015-16 में पश्चिमी सिंहभूम में सिर्फ 33 फीसदी संस्थागत प्रसव हुआ. इस अर्थ हुआ कि 67 फीसदी बच्चों का जन्म घर में होता है. गर्भावस्था में ग्रामीण क्षेत्र में सिर्फ 16 फीसदी गर्भवती की प्राथमिक जांच (प्रथम एएनसी) हुई. 16 फीसदी गर्भवती की खून, पेशाब, ब्लड, ब्लड प्रेशर की जांच हुई. वहीं गर्भावस्था के दौरान चार बार होने वाली स्वास्थ्य जांच सिर्फ 3.1 फीसदी महिलाओं की हुई.
जननी सुरक्षा का लाभ सिर्फ 62 फीसदी को
स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट में वर्ष 2015-16 में 65 फीसदी संस्थागत प्रसव, 80 से 90 फीसदी गर्भवती के स्वास्थ्य की प्राथमिक जांच का आंकड़ा दर्ज है. रिपोर्ट में बताया गया कि 90 फीसदी गर्भवती महिलाओं का रजिस्ट्रेशन कराया गया था. इसके बावजूद जननी सुरक्षा योजना का लाभ 61.7 फीसदी महिलाओं को ही मिला.
क्या है एनएफएचएस
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) एक संस्था है. इसके माध्यम से केंद्र सरकार अपना सर्वे कराती है. केंद्र की योजनाएं इसी सर्वे के आधार पर बनती है. चौथी बार एनएफएचएस ने अपनी रिपोर्ट जारी की है.
जिले की 35 फीसदी से कम महिलाओं को मिला स्वास्थ्य योजना का लाभ
गर्भवती की स्वास्थ्य जांच, संस्थागत प्रसव और प्रसव के 24 व 48 घंटे के बीच मां व बच्चे की मेडिकल केयर का 35 फीसदी से कम गर्भवती को लाभ मिला. दूसरी ओर स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट में वर्ष 2015-16 में संस्थागत प्रसव से स्वास्थ्य जांच और अन्य सुविधा में 65 फीसदी से गर्भवती को लाभ मिला है. एनएफएचएस और स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ें में दोगुना का अंतर है. इस रिपोर्ट को उपायुक्त व सिविल सर्जन के समक्ष पेश किया गया है.
होम डिलिवरी में सिर्फ एक फीसदी बच्चों को मेडिकल केयर
रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्रामीण इलाके में होम डिलिवरी में सिर्फ 1.11 फीसदी बच्चे को 24 घंटे तक मेडिकल केयर यानी डॉक्टर, नर्स, एएनएनएम की देखरेख में रहे. कुल होम डिलिवरी के दौरान सिर्फ 4 फीसदी ही प्रसव की जानकार, नर्स, एएनएम की उपस्थिति में हुई. जन्म के अगले दो दिन तक सिर्फ 9 फीसदी बच्चों को मेडिकल केयर मिला. होम डिलेवरी में सिर्फ 21 फीसदी महिलाएं को चिकित्सकीय सुविधाएं मिल सकीं.
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