भुवनेश्वर : तीन बरस पहले राष्ट्रमंडल खेलों से ठीक पहले भारतीय टीम से बाहर किये जाने के बाद लंबी लड़ाई लड़कर ट्रैक पर लौटी फर्राटा धाविका दुती चंद का लक्ष्य अगले साल गोल्ड कोस्ट में होने वाले इन खेलों में पदक जीतकर कड़वी यादों को भुलाना है.
दुती को 2014 राष्ट्रमंडल खेलों से ठीक पहले ऐन मौके पर हाइपरएंड्रोजेनिज्म (लिंग संबंधी कारणों) का हवाला देकर टीम से बाहर किया गया था. इसके बाद खेल पंचाट में अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स महासंघ से लंबी लड़ाई जीतकर उसने ट्रैक पर वापसी की और इस साल भुवनेश्वर में हुई एशियाई एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में 100 मीटर र्फाटा तथा चार गुणा सौ मीटर रिले में कांस्य जीता.
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दुती ने कहा, अगले साल राष्ट्रमंडल खेल मेरा सबसे बड़ा लक्ष्य है क्योंकि यह सम्मान का मुकाबला भी है. इसी खेलों में पिछली बार मुझे बाहर कर दिया गया था. इसमें पदक जीतकर मुझे उन यादों को मिटाना है. ओडिशा की रहने वाली इस धाविका ने कहा , इसके अलावा एशियाई इंडोर खेल फरवरी में होने है जिसके जरिये बर्मिंघम में होने वाले विश्व इंडोर खेलों के लिये क्वालीफाई करना है.
हैदराबाद में गोपीचंद अकादमी में अभ्यास कर रही दुती ने बताया कि जर्मन कोच राफ एकार्ट से मिले टिप्स से उनके खेल में काफी निखार आया है और उन्हें अगले साल होने वाले राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में पदक की पूरी उम्मीद है. दुती के लिये जर्मन अकादमी से करार करने में राष्ट्रीय बैडमिंटन कोच पुलेला गोपीचंद ने अहम भूमिका निभाई थी और उनके साथ 2024 तक का करार है.
दुती ने कहा, एशियाई चैम्पियनशिप से पहले वह आये थे और उन्होंने मेरे खेल का विश्लेषण करके कोच को बताया था कि कमी कहां रह गई है.वह अगले साल होने वाले अहम खेलों से पहले भी आयेंगे. उन्होंने वादा किया है कि अगर उनके बताये रास्ते पर चले तो राष्ट्रमंडल खेल और एशियाई खेलों में पदक पक्का है. हैदराबाद में नागापुरी रमेश के मार्गदर्शन में अभ्यास कर रही दुती का विदेश में अभ्यास बेस बनाने का कोई इरादा नहीं है. उसने कहा , मैं साल में एक या दो महीने के लिये अपनी तकनीक को मांजने विदेश जा सकती हूं पर अभ्यास बेस मेरा हैदराबाद ही रहेगा.
भुवनेश्वर में भी सुविधायें अच्छी है लेकिन एथलेटिक्स में ग्रुप में अभ्यास होता है और मेरे लिये यहां अच्छा ग्रुप नहीं है. विश्व स्तरीय टूर्नामेंटों में भारत के ट्रैक और फील्ड में पिछड़ने के कारणों के बारे में पूछने पर दुती ने कहा, ऐसा नहीं है कि हमारी तैयारी खराब होती है या खेल में कमी रहती है लेकिन कई बार हालात बस में नहीं होते. जैसे अनुकूलन , मौसम वगैर लेकिन अच्छी बात यह है कि अब हम किसी भी टूर्नामेंट में काफी पहले जाने लगे हैं ताकि खुद को वहां के मौसम के अनुकूल ढाल सकें.