यरुशलम : इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा यरुशलम को यहूदी देश की राजधानी के तौर पर मान्यता देने को गुरुवार को ऐतिहासिक और साहसी तथा उचित फैसला बताया तथा उन्होंने कहा कि इससे शांति कायम करने में मदद मिलेगी. उन्होंने कहा कि यहूदी देश पवित्र स्थलों पर यथास्थिति को बरकरार रखते हुए यहूदियों, ईसाईयों और मुस्लिमों के लिए प्रार्थना करने की आजादी को सुनिश्चित करेगा.
नेतन्याहू ने एक बयान में कहा, यह ऐतिहासिक दिन है. यह करीब 70 वर्षों से इस्राइल की राजधानी रहा है. यरशलम तीन सदियों से हमारी उम्मीदों, हमारे सपनों, हमारी दुआओं के केंद्र में रहा है. यह 3,000 वर्षों से यहूदी लोगों की राजधानी रही है. यहां हमारे पवित्र स्थल हैं, हमारे राजाओं ने शासन किया और हमारे पैंगबरों ने उपदेश दिए। ट्रंप की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि यह एक पुराने लेकिन स्थायी सत्य की ओर उनकी प्रतिबद्धता दिखाता है.
इस्राइली प्रधानमंत्री ने कहा, राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा आज की घोषणा एक अवसर है. हम यरशलम को इस्राइल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने तथा यहां अमेरिकी दूतावास खोलने की तैयारी करने के उनके साहस और उचित निर्णय के लिए पूरी तरह उनके आभारी हैं. नेतन्याहू ने अमेरिका के फैसले को पवित्र शहर के इतिहास में नया और मील का पत्थर बताते हुए कहा कि दुनियाभर के यहूदी लोग इसके स्वर्ण पत्थरों को छूने और इसकी पवित्र गलियों में चलने के लिए हमेशा यरशलम लौटता चाहते हैं.
उन्होंने कहा कि अमेरिका की घोषणा से शांति के सपने को साकार करने में मदद मिलेगी. उन्होंने कहा, मैं इस्राइल और फलस्तीन समेत हमारे सभी पडोसियों के बीच शांति स्थापित करने में राष्ट्रपति ट्रंप की प्रतिबद्धता साझा करता हूं. हम शांति कायम करने के सपने को सच करने में राष्ट्रपति और उनकी टीम के साथ मिलकर काम करते रहेंगे. इस्राइली प्रधानमंत्री ने सभी देशों से यरुशलम को देश की राजधानी के तौर पर मान्यता देने और अपने अपने दूतावास यहां खोलने की अपील की. मुस्लिमों और ईसाईयों की चिंताओं के बारे में नेतन्याहू ने कहा कि इस्राइल पवित्र स्थलों पर यथास्थिति बरकरार रखेगा ताकि सभी के लिए प्रार्थना की आजादी सुनिश्चित की जा सकें.
इस बीच, फलस्तीन ने ट्रंप के फैसले को अस्वीकार्य बताते हुए कहा कि इस कदम से शांति प्रक्रिया को फिर से शुरू करने की कोशिशें हमेशा के लिए बंद हो जाएंगी. फलस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास के करीबी सहायक नबील अबू रदेनेह ने घोषणा से पहले कहा, अगर यह होता है तो इससे चीजें जटिल हो जाएंगी. इससे शांति प्रक्रिया में अवरोध पैदा होगा। शायद इससे शांति प्रक्रिया बंद हो जाए. अब्बास के कूटनीतिक सलाहकार माजिदी खाल्दी ने चिंता जतायी कि यरशलम को इस्राइल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने से इस्राइल-फलस्तीन संघर्ष में मध्यस्थ के तौर पर अमेरिका की भूमिका खत्म हो जाएगी. ट्रंप की विवादित घोषणा के बाद हिंसा के मद्देनजर इस्राइल ने संवेदनशील स्थलों और कूटनीतिक रुप से महत्वपूर्ण अन्य स्थानों की सुरक्षा बढा दी है.
गाजा पट्टी में रहने वाले हजारों लोग अमेरिका के कदम के खिलाफ प्रदर्शन करने की तैयारी में हैं. फलस्तीन के आतंकवादी संगठन हमास के प्रवक्ता हजेम कास्सेम ने कहा कि यह फैसला हमास की उस बात की पुष्टि करता है कि अमेरिका हमारे लोगों से संबंधित किसी भी मामले में ईमानदार मध्यस्थ नहीं है और ना ही होगा. ट्रंप की घोषणा से पहले ही इस्लामिक और अरब देशों में असंतोष देखा गया. क्षेत्रीय नेताओं ने घोषणा को लेकर हिंसा बढने की चेतावनी दी. तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन ने इस फैसले को मुस्लिमों के लिए चिंताजनक बताया. इस्राइल के साथ कूटनीतिक संबंध रखने वाले पडोसी देश मिस्र और जॉर्डन ने भी ऐसी ही चिंताएं जतायी हैं. मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फतह अल सिसी ने चेतावनी दी कि पश्चिम एशिया में शांति कायम करने के मौकों को कम करने वाले इस कदम से क्षेत्र में हालात और खराब होंगे. जॉर्डन के शाह अब्दुल्ला ने इस फैसले की जटिलता से निपटने के लिए संयुक्त प्रयासों का आह्वान किया.
अरब लीग ने इसे खतरनाक कदम बताया जिसकी प्रतिक्रिया पूरे क्षेत्र में देखी जाएगी. साथ ही उसने शांति वार्ता में विश्वस्त मध्यस्थ के रुप में अमेरिका की भविष्य की भूमिका पर भी सवाल उठाया. क्षेत्र में इस्राइल के चिर प्रतिद्वंद्वी ईरान ने ट्रंप की योजना की आलोचना करते हुए कहा कि यह गलत, अवैध, भडकाऊ और बेहद खतरनाक है.