राजीव रंजन
छपरा (सदर) : महिला सशक्तीकरण के उद्देश्य से सरकार ने त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के तहत महिलाओं को पंचायतों एवं नगर निकायों के विभिन्न पदों पर चुनाव में आरक्षण दिया. यह आरक्षण वर्ष 2005 से लागू है. इसके कारण महिलाओं के लिए आरक्षित 50 फीसदी पदों के अलावा अनारक्षित पदों पर भी महिलाएं निर्वाचित होकर आ रही हैं. जिससे ग्राम पंचायतों में मुखिया, वार्ड सदस्य, सरपंच, पंच, जिला परिषद सदस्य, पंचायत समिति सदस्य के अलावा नगर निकायों में भी 55 से 60 फीसदी तक महिलाएं निर्वाचित होकर आ रही हैं.
परंतु, पंचायत की विकास योजनाओं या अन्य निर्णय लेने में महिलाओं की उदासीनता एवं अपने अधिकारों का उपयोग करने के लिए अपने परिजनों को खुली छूट देना महिला को मिले आरक्षण के लाभ का फायदा नहीं दिख रहा है. वहीं स्थिति यह है कि ‘पंचायत प्रतिनिधियों का ताज भले महिलाओं के माथे है परंतु, राज उनके पति या परिजन का ही है’ जिसे लेकर पदाधिकारियों एवं आमजनों में भी समय-समय पर चर्चाएं होती हैं. पिछले सप्ताह भारत सरकार की महिला एवं बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने अपने संबोधन में महिला जनप्रतिनिधियों को स्पष्ट तौर पर कहा था कि सरकार से महिला सशक्तीकरण के उद्देश्य से मिले अधिकारों को अपने परिजनों को सौंपने के बदले महिला प्रतिनिधि उसका उपयोग खुद करें. परंतु, आज भी 90 फीसदी महिला जनप्रतिनिधियों की कमान उनके परिजनों के हाथ में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से है. जो महिलाओं को मिले अधिकार व कर्तव्य को ठेंगा दिखा रहा है.
जिले में 323 मुखिया, 323 सरपंच, 47 जिला पार्षद, 467 बीडीसी समेत 11 हजार जनप्रतिनिधि हैं. पंचायती राज व्यवस्था के तहत एक ओर जहां 323 पंचायतों में 323 मुखिया उतने ही सरपंच, 467 बीडीसी, 4467 वार्ड सदस्य तथा उतने ही ग्राम कचहरी के पंच के पद हैं. इसके अलावा छपरा नगर निगम के 44 वार्ड आयुक्त के अलावा रिविलगंज, एकमा, दिघवारा, सोनपुर, मढ़ौरा, परसा बाजार नगर पंचायत में भी कुल 221 वार्ड आयुक्त निर्वाचित होकर आये हैं जिनमें लगभग छह हजार महिला जनप्रतिनिधि हैं.
परंतु, जिला में भी पूर्व में एक बैठक के दौरान जिला प्रशासन द्वारा कुछ महिला जनप्रतिनिधियों के बदले उनके परिजनों को बैठने पर आपत्ति जताते हुए उन्हें बैठक से बाहर किया गया था. बावजूद प्रखंड स्तर पर अभी भी ये कारगुजारियां ज्यादा हैं.
पिछले सप्ताह मशरक तथा पानापुर आदि प्रखंडों में बिहार सरकार के सात निश्चय या वार्ड सदस्यों के अधिकार देने का विरोध करते हुए धरना प्रदर्शन के दौरान एक भी महिला मुखिया उपस्थित नहीं थी.
बल्कि उनके परिजनों ने धरना में भाग लेकर तस्वीर भी खिचवाई जो समाचार पत्र में सुर्खियां भी बनी है. यहीं नहीं महिला जनप्रतिनिधियों के परिजन उनके बदले हस्ताक्षर करने या कागजी कार्रवाई करने में भी परहेज नहीं करते. ऐसी स्थिति में महिलाओं के मिले अधिकार की धज्जियां अधिकतर महिला प्रतिनिधियों की उदासीनता एवं कथित मिली भगत के कारण उड़ रही है.