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मीर बाकी ने रामकोट में बनी मस्जिद का नाम रखा बाबरी, तो मस्जिद-ए-जन्मस्थान क्या है?

मनोज सिन्हा, मिथिलेश झा, राजीव चौबे आज बुधवार है. बुधवार यानी छह दिसंबर. छह दिसंबर भारत आैर खासकर अयोध्या के लिए बेहद खास है, क्योंकि आज ही के दिन फैजाबाद जिले के अयोध्या में बाबरी मस्जिद को ढाह दिया गया था. आज बाबरी मस्जिद के ढहाये जाने की 25वीं बरसी है. हालांकि, आधुनिक भारत की […]

मनोज सिन्हा, मिथिलेश झा, राजीव चौबे

आज बुधवार है. बुधवार यानी छह दिसंबर. छह दिसंबर भारत आैर खासकर अयोध्या के लिए बेहद खास है, क्योंकि आज ही के दिन फैजाबाद जिले के अयोध्या में बाबरी मस्जिद को ढाह दिया गया था. आज बाबरी मस्जिद के ढहाये जाने की 25वीं बरसी है. हालांकि, आधुनिक भारत की युवा पीढ़ी अयोध्या की रामजन्मभूमि आैर बाबरी मस्जिद विवाद से तो भली-भांति परिचित होगी, लेकिन इस बात से बहुत कम लोगों ही को इत्तेफाक होगा कि आखिर मुगल बादशाह बाबर के द्वारा बनायी गयी मस्जिद को बाबरी नाम किसने दिया आैर मस्जिद-ए-जन्मस्थान किसे कहा जाता था.

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ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर मीडिया में इस बात का बार-बार जिक्र किया जा रहा है कि भारत के पहले मुगल सम्राट बाबर के निर्देश पर अयोध्या के राम कोर्ट क्षेत्र में सन 1527 ईस्वी में एक मस्जिद के निर्माण का दावा कराया गया था. इसके निर्माण के बाद बाबर के सेनापति मीर बाकी ने इसका नाम बाबरी रखा था. वर्ष 1940 के दशक के पहले इस मस्जिद को मस्जिद-ए-जन्म स्थान के नाम से भी जाना जाता था.

मीडिया में कहा जा रहा है कि हिंदू धर्म से जुड़े हुए लोग इसे भगवान राम की जन्म भूमि के रूप में भी स्वीकार करते थे. धार्मिक नगरी अयोध्या में इस मस्जिद के अलावा सैकड़ों की संख्या में अन्य मस्जिदें भी मौजूद हैं, जहां पर मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज और इबादत करते हैं, लेकिन बाबरी मस्जिद को लेकर इस समाज के लोगों में उस दौर में उतनी संजीदगी नही थी और इस स्थान पर आम मस्जिदों की तरह नमाज नहीं पढ़ी जाती थी.

1853 में शुरू हुआ विवाद

राम मंदिर और बाबरी मस्जिद का विवाद पहली बार वर्ष 1853 में शुरू हुआ. उस समय हिंदुअों ने आरोप लगाया कि भगवान राम के मंदिर को तोड़कर यहां मस्जिद का निर्माण कराया गया. इसके बाद पहली बार हिंदुअों और मुस्लिमों के बीच हिंसा हुई. विवाद को शांत करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1859 में तारों की एक बाड़ खड़ी कर दी. विवादित भूमि के अंदर मुस्लिमों को और बाहर हिंदुअों को प्रार्थना करने की इजाजत दी.

1857 के विद्रोह के बाद मस्जिद में डाली गयी दीवार

फैजाबाद जिला गजट 1905 के अनुसार, वर्ष 1855 तक हिंदू और मुसलमान दोनों एक ही इमारत में इबादत या पूजा करते थे, लेकिन 1857 की क्रांति के बाद मस्जिद के सामने एक बाहरी दीवार डाल दी गयी और हिंदुओं को अंदरूनी प्रांगण में जाने, वेदिका (चबूतरा), जिसे उन लोगों ने बाहरी दीवार पर खड़ा किया था, पर चढ़ावा देने से मना कर दिया गया.

1885 में कोर्ट पहुंचा विवाद

रामजन्मभूमि आैर बाबरी मस्जिद का विवाद आज कोर्इ नया नहीं है. इन दोनों धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद काफी पुराना है. इतिहासकार बताते हैं कि 1885 में ही महंत रघुवर दास ने फैजाबाद की अदालत में बाबरी मस्जिद से सटे एक राम मंदिर के निर्माण की मांग करते हुए एक याचिका दायर की थी. हालांकि, इस समय भारत में अंग्रेजों का शासन था, लेकिन महंत रघुवरदास की आेर से राम मंदिर निर्माण को लेकर पहली दफा याचिका दायर की गयी थी.

हिंदुअों ने पूजा शुरू कर दी और मुस्लिमों ने बंद कर दी इबादत

वर्ष 1949 में मस्जिद के केंद्रीय स्थल पर कथित तौर पर 50 हिंदुअों ने भगवान राम की मूर्ति रखकर नियमित रूप से यहां पूजा करने लगे. दूसरी तरफ, मुस्लिमों ने यहां इबादत करनी बंद कर दी. 1950 में गोपाल सिंह विशारद फैजाबाद कोर्ट पहुंचे. एक अपील दायर कर उन्होंने कोर्ट से रामलला की विशेष पूजा-अर्चना की विशेष इजाजत देने की मांग की. इसी साल महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदुअों की प्रार्थना जारी रखने और बाबरी मस्जिद में भगवान राम की मूर्ति रखने के लिए मुकदमा किया. उन्होंने मस्जिद को ‘ढांचा’ करार दिया. इसके 9 साल बाद 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांतरित करने के लिए कोर्ट की शरण ली. 1961 में उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने खुद को एक पक्ष के रूप में पेश करते हुए बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर कर दिया.

दिसंबर 1949 को पंडित नेहरू ने फैजाबाद के मुख्यमंत्री जेबी पंत को लिखा था पत्र

23 दिसंबर 1949 को जब अवैध रूप से मस्जिद में राम की मूर्तियों को रखा गया, तब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने यूपी के मुख्यमंत्री जेबी पंत को पत्र लिखकर उस गड़बड़ी को सुधारने की मांग की, क्योंकि इससे वहां एक खतरनाक मिसाल स्थापित होती है. फैजाबाद के जिलाधिकारी केके नायर ने इन चिंताओं को खारिज कर दिया. हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि मूर्तियों की स्थापना एक अवैध कार्य थी. नायर ने मस्जिद से उन्हें हटाने से मना करते हुए यह दावा किया कि इस गतिविधि के पीछे जो गहरी भावना है, उसे कम करके नहीं आंका जाना चाहिए. यही नायर बाद में जनसंघ से लोकसभा सदस्य चुने गये थे.

मंदिर और पुुजारी पद पर दावेदारी की जंग

मंदिर के लिए मस्जिद वालों से लड़ने वाले अब प्रस्तावित मंदिर और पुजारी के पद के लिए आपस में लड़ रहे हैं. जानकारों की मानें, तो मंदिर एक बड़ा पावर सेंटर होगा. यहां बेशुमार चढ़ावा आने की भी उम्‍मीद है. इसलिए मंदिर पर पुजारी पद पर दावेदारी की लड़ाई है. बाबरी मस्जिद में वर्ष 1949 में मूर्तियां रखने वाले बाबा अभिराम दास के शिष्‍य महंत धर्म दास का कहना है कि राम जन्‍मभूमि के पहले पुजारी अभिराम दास थे. फिर वहां सरकारी रिसीवर बैठ गया और मौजूदा पुजारी रिसीवर के लोग हैं. अब मंदिर बनने पर अभिराम दास के शिष्‍य की हैसियत से सिर्फ वही पुजारी बन सकते हैं, लेकिन राम जन्‍मभूमि ट्रस्‍ट के अध्‍यक्ष नृत्‍यगोपाल दास, धर्म दास को पुजारी बनाने के खिलाफ हैं.

महंत धर्म दास तो उनकी सुनने तक को तैयार नहीं हैं. महंत धर्म दास का मंदिर की मिल्कियत पर भी दावा है. उनका कहना है कि मंदिर पर न विहिप का दावा सही है, न ही निर्मोही अखाड़े का. हालांकि, विहिप के लोग रामलला की तरफ से पक्षकार हैं, लेकिन निर्मोही अखाड़ा उन्हें दंगाई कहता है. ज्ञात हो कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित जमीन का 33 फीसदी हिस्‍सा निर्मोही अखाड़े को और 33 फीसदी रामलला को दिया है. लेकिन, वीएचपी पूरी जमीन पर मंदिर बनाने की तैयारी कर रही है.

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