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जहरीली हवा में सांस लेने से स्पर्म काउंट में आ रही कमी, जानिए कैसे करें रोकथाम

पिछले दिनों दिल्ली-एनसीआर के आसमान पर छाया स्मॉग देशभर में गंभीर चर्चा का विषय रहा. ठंड के कोहरे से पहले अचानक आसमान में छाये इस धुंध ने दिन में लोगों का सड़कों पर निकलना मुहाल कर दिया. बढ़ते प्रदूषण को लेकर देश की उच्चतम न्यायालय भी चिंता जाहिर कर चुकी है. जानकार मानते हैं कि […]

पिछले दिनों दिल्ली-एनसीआर के आसमान पर छाया स्मॉग देशभर में गंभीर चर्चा का विषय रहा. ठंड के कोहरे से पहले अचानक आसमान में छाये इस धुंध ने दिन में लोगों का सड़कों पर निकलना मुहाल कर दिया.

बढ़ते प्रदूषण को लेकर देश की उच्चतम न्यायालय भी चिंता जाहिर कर चुकी है. जानकार मानते हैं कि जाहिर तौर पर यही हाल रहा, तो जल्द ही राजधानी दिल्ली की तरह पटना, रांची जैसे सेमी मेट्रो शहर भी इस भयानक प्रदूषण की चपेट में होंगे.

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की रिपोर्ट कहती है कि भारत में समयपूर्व होनेवाली मौतों में से 30 फीसदी की वजह वायु प्रदूषण है. इसके मुताबिक वर्ष 2016 में साढ़े तीन करोड़ लोगों को देश भर में अस्थमा की बीमारी थी. इसी रिपोर्ट में दावा किया गया कि पर्यावरण और स्वास्थ्य के बीच अहम संबंध है, जिनमें से वायु प्रदूषण और मानसिक स्वास्थ्य में संबंध जैसे कई पहलू अब तक अनछुए थे.

जहां प्रदूषण की वजह से वयस्क व बुजुर्ग लोग श्वसन संबंधी समस्याओं से ग्रसित हो रहे हैं और साइनसाइटिस, चेस्ट कंजेशन, और दमा जैसी शिकायतें लेकर डॉक्टरों के पास पहुंच रहे हैं, वहीं नयी जानकारी कहती है कि वैवाहिक व पारिवारिक जिंदगी पर भी इसका बुरा असर देखने को मिल रहा है. लोगों की शिकायत आ रही है कि सेक्स के प्रति उनकी रुचि घटती जा रही है और संतान को जन्म देने के लिए न्यूनतम स्पर्म काउंट में कमी आ रही है.हारमोन्स का असंतुलन : कई कपल्स की जांच में पाया गया है कि प्रदूषण पुरुषों की फर्टिलिटी पर गहरा असर डाल रहा है.

दिल्ली में महिलाओं के मुकाबले फर्टिलिटी की समस्या से ग्रसित पुरुषों की तादाद 15 प्रतिशत ज्यादा है. दिल्ली-एनसीआर में हर तीन में से एक पुरुष इनफर्टिलिटी की समस्या से पीड़ित हैं. महिलाओं में प्रेग्नेंसी के दौरान ही गर्भपात हो जाने के पीछे भी यह एक प्रमुख कारण बनकर सामने आ रहा है, क्योंकि जहरीली हवा में सांस लेने की वजह से पुरुषों में शुक्राणुओं के खराब होने और स्पर्म काउंट में कमी आने जैसी समस्याएं भी सामने आ रही हैं. कई लोगों के वीर्य में तो शुक्राणुओं की संख्या इतनी कम पायी गयी कि गर्भधारण के लिए जरूरी न्यूनतम मात्रा जितने शुक्राणु भी उनमें नहीं पाये गये.

स्पर्म काउंट में इतनी ज्यादा कमी आने की वजह से गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है. शुक्राणुओं के एक जगह इकट्ठा हो जाने की वजह से वे फेलोपाइन ट्यूब में भी सही तरीके से नहीं जा पाते हैं, जिससे गर्भधारण नहीं हो पाता. पुरुषों में स्पर्म सेल्स के खाली रह जाने और उसकी क्वालिटी खराब होने के पीछे जो मैकेनिज्म मुख्य कारण के रूप में सामने आता है, उसे एंडोक्राइन डिसरप्टर एक्टिविटी कहा जाता है, जो एक तरह से हारमोन्स का असंतुलन है.

कैसे करें रोकथाम

हालांकि हवा में फैले प्रदूषण से पूरी तरह बच पाना मुश्किल है, लेकिन अपनी लाइफस्टाइल में कुछ बदलाव लाकर और अपनी डायट पर कंट्रोल करके इसके असर को काफी हद तक कम जरूर किया जा सकता है और स्पर्म काउंट पर पड़नेवाले इसके दुष्प्रभावों से भी बचा जा सकता है. इसके लिए ये उपाय किये जा सकते हैं –

एंटीऑक्सिडेंट का सेवन ज्यादा करें. उनमें रिच न्यूट्रिएंट्स का सही मिश्रण होता है, जो स्पर्म को हेल्दी बनाये रखने और उनकी क्वॉलिटी को सुधारने में मददगार होते हैं.

टमाटर, मीठे आलू, तरबूज, गाजर, कद्दू के बीज, मछली, अखरोट, ब्लूबेरी और अनार आदि खाने में ले सकते हैं.

विटामिन ई और सेलेनियम हमारे रक्त में मौजूद आरबीसी यानी रेड ब्लड सेल्स को ऑक्सिडेटिव डैमेज से बचाते हैं, जिससे आइवीएफ ट्रीटमेंट शुरू करने से पहले स्पर्म मोबिलिटी में बढ़ोतरी होती है.

जिंक भी शरीर के लिए बेहद महत्वपूर्ण मिनरल है, जो स्पर्म सेल्स के लिए एक तरह से बिल्डिंग ब्लॉक का काम करता है और अच्छी क्वॉलिटी के शुक्राणुओं के निर्माण में काफी मददगार होता है.

फर्टिलिटी पर दुष्प्रभाव

डॉ रूही श्रीवास्तव

आइवीएफ एक्सपर्ट, इंदिरा आइवीएफ हास्पिटल, रांची

वातावरण में पीएम 2.5 व पीएम 10 जैसे जहरीले कण हमारे बालों से भी 30 गुना ज्यादा बारीक होते हैं, उनसे युक्त हवा जब फेफड़ों में जाती है, तो उसमें घुले कॉपर, जिंक, लेड जैसे घातक तत्व भी शरीर में चले जाते हैं, जो नेचर में एंटीएंड्रोजेनिक होते हैं.

लंबे समय तक ऐसे जहरीले कणों से युक्त हवा में सांस लेने से सेक्स की इच्छा के लिए जरूरी टेस्टोस्टेरॉन और स्पर्म सेल के प्रोडक्शन में कमी आती है. स्पर्म सेल की लाइफ साइकिल 72 दिनों की होती है और स्पर्म पर पॉल्यूशन का घातक प्रभाव 90 दिनों तक दूषित वातावरण में रहने के बाद नजर आने लगता है.

सल्फर डायऑक्साइड की मात्रा में जब भी 10 माइक्रोग्राम की बढ़ोतरी होती है, तो स्पर्म कॉन्संट्रेशन में 8% की कमी आ जाती है, जबकि स्पर्म काउंट 12% तक कम हो जाता है. पुरुषों में ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस अचानक बढ़ जाता है और डीएनए डैमेज होने से उनकी उर्वर क्षमता कमजोर हो जाती है.

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