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खुले आसमान के नीचे रात भर ठिठुरने को मजबूर रहते हैं मरीज और परिजन

पटना. राज्य के सबसे बड़े अस्पताल पीएमसीएच को बेहतर बनाने और मरीजों को सुविधाएं देने की बड़ी-बड़ी बातें होती रहती हैं. लेकिन तल्ख हकीकत यही है कि यहां इलाज कराना वाकई में जंग लड़ने के बराबर है. खास कर ठंड के मौसम में समस्या और अधिक बढ़ जाती है. यहां के हालातों का जायजा लेने […]

पटना. राज्य के सबसे बड़े अस्पताल पीएमसीएच को बेहतर बनाने और मरीजों को सुविधाएं देने की बड़ी-बड़ी बातें होती रहती हैं. लेकिन तल्ख हकीकत यही है कि यहां इलाज कराना वाकई में जंग लड़ने के बराबर है. खास कर ठंड के मौसम में समस्या और अधिक बढ़ जाती है. यहां के हालातों का जायजा लेने के लिए जब हम देर रात यहां पहुंचे, तो हमें जो दृश्य दिखाई दिया, उससे यह साफ होता है कि दावे एक ओर हैं और उनसे जुड़ी हकीकत दूसरी ओर. रात साढ़े 10 से साढ़े 11 बजे का हाल.

पीएमसीएच की इमरजेंसी के आगे औरंगाबाद के गोह से आयी 80 साल की गुलबदन देवी अपने गुड़गुड़ी हुक्के की अाग से गर्मी ले रही थीं. पास में ही उनकी बहू और बेटा सोये हुए थे. गुलबदन देवी कहती हैं कि उनके पति लक्ष्मण शर्मा का जख्म दिन पर दिन नासूर हुआ जा रहा था. गया से जब रेफर कर दिया, तो यहां आये हैं. लेकिन हमें क्या पता था कि यहां हमें इस ठंड में ठिठुरना पड़ेगा? अब कल यदि डॉक्टर छुट्टी दे देंगे, तब हम यहां से चले जायेंगे. यहां रहने की कोई व्यवस्था नहीं है.
सीतामढ़ी के परिहार थाना के गामही से आये रामचंद्र साह दोपहर में आये थे. उनके पिता जानकी साह के मुंह से खून आता है. एक साल पहले भी उन्होंने दिखाया था. पीएमसीएच की व्यवस्था पता थी. इसलिए घर से गैस सिलिंडर व अनाज भी लेते आये हैं. इमरजेंसी में भर्ती कराते और जांच से गुजरते हुए रात के 10 बज गये तो वहीं जगह देख खाना बनाने लगे. उनके साथ भाई और भतीजे भी हैं. उनका कहना है कि यहां डाॅक्टर की फीस नहीं लगेगी, बाकी सारी व्यवस्था खुद करनी पड़ती है.
पीएमसीएच की इमरजेंसी के एसी का एक्जाॅस्ट फैन के नीचे लोग ठिठुरते हुए बैठे हैं. लोग अपने साथ कंबल से लेकर बिछावन भी लेकर पहुंचे हैं. उम्मीद थी कि कहीं पर ठिकाना मिल जायेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अंतत: इसी पंखे के नीचे खुले आसमान के नीचे ही आशियाना बना लिया. कोई कंबल ओढ़े है, तो कोई ऊंघ रहा है. कोई अपनों की पुकार अंदर से आने का इंतजार कर रहा है और इन सबके बीच सरकारी व्यवस्था का सर्द रंग भी झेल रहा है .
रजिस्ट्रेशन काउंटर के ठीक नीचे पूर्वी चंपारण के मोतिहारी से आये संदीप कुमार और उनकी पत्नी थके-मांदे इंतजार कर रहे हैं. अपनी दादी के हार्ट के इलाज के लिए यहां पहुंचे हैं. मोतिहारी के एक हाॅस्पिटल ने रेफर कर दिया कि अब पीएमसीएच जाइए. लेकिन यहां इमरजेंसी में केवल एक आदमी को जाने की इजाजत है. संदीप कहते हैं कि यहां पर सोने की कोई व्यवस्था नहीं है. धर्मशाला भी रहती, तो रात गुजर जाती.

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