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रक्तदान में कोयलांचल की महिलाएं भी पीछे नहीं
धनबाद: मानव जीवन अनमोल है. इसे बचाना इंसान का फर्ज है. रक्तदान कर हम मौत के मुंह में जाते मानवीय जीवन को न सिर्फ नया जीवन देते हैं, बल्कि समाज के लिए एक संदेश भी देते हैं. हमारे जीवन का यही उद्देश्य है कि रक्त के अभाव में किसी की मौत न हो और न […]
धनबाद: मानव जीवन अनमोल है. इसे बचाना इंसान का फर्ज है. रक्तदान कर हम मौत के मुंह में जाते मानवीय जीवन को न सिर्फ नया जीवन देते हैं, बल्कि समाज के लिए एक संदेश भी देते हैं. हमारे जीवन का यही उद्देश्य है कि रक्त के अभाव में किसी की मौत न हो और न ही किसी को रक्त के लिए संघर्ष करना पड़े. ऐसा कहती हैं कोयलांचल की महिलाएं. इन महिलाओं नें यह साहसिक कदम कैसे उठाया और जब इनके रक्त से अनमोल जीवन फिर से चहक उठता है तो इन्हें कैसा लगता है-होते हैं इनसे रूबरू और जानते हैं इनके बहुमूल्य विचार.
अब तक 29 बार रक्तदान
मैं अभी तक 29 बार रक्तदान कर चुकी हूं. और जब तक स्वस्थ रहूंगी रक्तदान करती रहूंगी. मैं अपने जीवन की उस घटना को कभी नहीं भूल सकती जब रक्त के अभाव में मेरी बड़ी बहन (कैंसर पीड़ित) ने दम तोड़ दिया था. यह दस साल पहले की बात है. तब मैने ठाना था कि मैं रक्तदान करूंगी. तीन मार्च 2012 में मैने पहली बार रक्तदान किया था. मैं ऑटो से जा रही थी. जिस ऑटो में बैठी थी उसमें दो लोग बात कर रहे थे कि बी पॉजिटिव रक्त नहीं मिला तो जान बचानी मुश्किल है. मै पूछ बैठी किसे रक्त की जरूरत है. उन्होंने बताया जालान अस्पताल में गर्भवती महिला को जरूरत है. मैंने कहा आप जाओ मैं आ रही हूं. मैंने जालान पहुंचकर रक्तदान दिया. उसके बाद महिला ने लड़के को जन्म दिया. आज भी उनसे हमारे संबंध है. रक्तदान महादान ग्रुप से भी जुड़ी हूं.
नेहा सिन्हा, धैया
रक्तदान कर बचायी बच्चे की जान
26 दिसंबर 2015 की बात आज भी जेहन में तरोताजा है. जब मुझे पता चला कि घर में काम करनेवाली बाई का बेटा रक्त के अभाव में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है तो मैं फौरन रक्तदान के लिए तैयार हो गयी. लाइफ लाइन झरिया पहुंच कर बच्चे को ए पॉजिटिव ब्लड डोनेट किया. जब डॉक्टर से यह जानकारी मिली कि अब बच्चे को कोई खतरा नहीं होगा तो ऐसा लगा जैसे बच्चे को नहीं मुझे नयी जिंदगी मिल गयी हो. आज भी जैसे ही ग्रुप से पता चलता है कि किसी जरूरतमंद को रक्त की जरूरत हैं हम पहुंच जाते हैं. मई 2016 में रक्तदान महादान ग्रुप बना. इससे जुड़ गयी. रक्तदान करने से असीम सुख की अनुभूति होती है. आज इस बात की खुशी है ग्रुप से महिलाएं जुड़ रही हैं रक्तदान कर रही हैं.
नेहा साहू, झरिया
समाज के लिए कुछ करने की है इच्छा
थेलेसीमिया से पीड़ित बच्चों को जब देखती हूं तो लगता है इन बच्चों का जीवन कितना कष्टकर है. इन्हें रक्त की जरूरत हमेशा होती है. मैने पीएमसीएच में एडमिट एक साल की बच्ची को रक्त दिया था. उसकी मासूमियत नें मुझे इतनी खुशी दी कि शब्दों में बता पाना बहुत मुश्किल है. मैने पहला रक्तदान कैंप में किया था. 23 जनवरी 2016 को आरएसएस ऑफिस में रक्तदान कैंप लगा था. चूंकि मेरे भैया समाजसेवी हैं. उनकी समाज सेवा को देख मन में इच्छा होता थी मैं भी समाज के लिए कुछ करूं. बस कैंप में पहुंच गयी और रक्तदान कर दिया. फिर तो ऐसा हुआ कि जैसे ही मुझे पता चलता है मैं रक्तदान करने पहुंच जाती हूं. मेरा एबी पॉजिटिव ब्लड ग्रुप है. रक्तदान महादान ग्रुप की मेंबर भी हूं. हमारा प्रयास होता है जरूरतमंदों को समय पर रक्त मिल सके.
अर्पित अग्रवाल, जगजीवन नगर
आत्मिक शांति मिलती है
पहले मुझे रक्तदान से डर लगता था. मन में भ्रांतियां थी कि रक्तदान करने से कमजोरी आती है. कई प्रॉब्लम होते हैं. लेकिन मन में कहीं इच्छा थी की कुछ करना है तो बस रक्तदान से शुरुआत की. जनवरी 2015 में मारवाड़ी युवा मंच की ओर से झरिया मातृ सदन में कैंप लगाया गया था. थोड़ा हिचकते मैं भी पहुंच गयी. लोगों को रक्तदान करते देख मेरी भी हिम्मत बंधी और मैने रक्तदान किया. अब तक 19 बार रक्तदान कर चुकी हूं. रक्तदान करने से काफी गर्व महसूस करतीं हूं. सभी लोगों को रक्तदान करना चाहिए. रक्तदान समूह के साथ भी जुड़ी हूं. मेरा ब्लड ग्रुप ए पॉजिटिव है. थैलेसेमिया से पीड़ित बच्चों को रक्त देकर आत्मिक शांति मिलती है. मैं तो सभी से कहती हूं रक्तदान कर अनमोल जीवन बचायें.
नीलम चौहान, झरिया
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