नयी दिल्ली : ग्लोबल कार्बन बजट रिपोर्ट-2017 के मुताबिक, 2017 के अंत तक कार्बन उत्सर्जन की दर पिछले साल की तुलना में दो फीसदी अधिक होगी. रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने चेतावनी देते हुए कहा है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सीमित करने का समय तेजी से निकल रहा है. इसके लिए जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल व उद्योग को जिम्मेदार ठहराया गया है.
रिपोर्ट के प्रमुख शोधार्थी कॉरिने ली क्वेरे ने इसे बेहद निराशाजनक बताया है. रिपोर्ट जर्मनी के बॉन शहर में आयोजित जलवायु सम्मेलन कॉप 23 में पेश की गयी, जो नेचर क्लाइमेट चेंज जर्नल में प्रकाशित हुआ. उत्सर्जन में रिकॉर्ड बढ़त को देखते हुए ग्लोबल कार्बन बजट का अगले 20 से 30 सालों में समाप्त हो जाने का अनुमान लगाया गया है. विश्व पर्यावरण परिषद के अनुसार, 2100 तक धरती का तापमान 3.7 से 4.8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जायेगा. बढ़ते हुए तापमान को दो डिग्री पर रोकने के लिए जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल 2050 तक बंद करना होगा.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका, यूरोपीय संघ समेत दर्जनों देशों ने हाल के वर्षों में उत्सर्जन में कमी की है पर विकासशील देशों से लगातार बढ़ रहे प्रदूषण के कारण यह प्रयास निरर्थक साबित हुआ है. भारत का कार्बन उत्सर्जन इस साल दो फीसदी तक बढ़ा है, जबकि पिछले दशक में इसमें छह प्रतिशत वार्षिक वृद्धि देखी गयी थी. कोयले के बेतहाशा इस्तेमाल के कारण चीन दुनिया का सबसे बड़ा उत्सर्जक देश बना हुआ है.
पिछले एक दशक में औसत से भी कम है भारत में उत्सर्जन
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन को नियंत्रित करने में उल्लेखनीय प्रगति की है. पिछले तीन सालों में कार्बन उत्सर्जन की दर स्थिर है. 2017 में यह पिछले एक दशक के औसत छह से काफी कम है. हालांकि, रिपोर्ट में इसमें 2017 के अंत तक दो फीसदी वृद्धि की बात की गयी है. वहीं, विश्व में कुल 36.8 गीगा टन ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की बात कही गयी है.