दस बोरियों में चावल के स्थान पर बालू भरा था
प्रशासनिक अधिकारी भी सकते में
रमेश कुमार
बिहारशरीफ : पेट भरने के लिए अनाज कितना उपयोगी है यह वही जान सकता है जो लाचार व मजबूर है. लेकिन अनाज कुछ लोगों के लिए अकूत संपत्ति बनाने का जरिया बन गया है. ऐसे लोग पैसा बनाने के लिए किस हद तक जा सकते हैं. इसका आकलन करना सहज नहीं है.
चावल के पैसे अकूत धन बनाने वाले लोगों का एक मामला प्रकाश में आया है. खुला बोरा और निकला बालू. बोरी में चावल की जगह पर बालू भेजने की शिकायतें मिली हैं. यह शिकायतें दूसरे जिलों से भी मिल रही हैं. मामला यह है कि पीडीएस के लाभुकों को अनाज दिये जाने के लिए विभाग के आदेश पर नालंदा से चावल सीवान, गोपालगंज और दरभंगा भेजा गया था. चावल की रैक वहां पहुंचने पर संबंधित विभाग के अफसरों के यहां से यह शिकायत की गयी कि जो चावल भेजा गया, उसमें से कुछ बोरियों में चावल की जगह पर बालू निकला है. शिकायत सुनकर अफसर भी दंग रह गये. कुछ इस तरह की शिकायत की कल्पना करना सहज नहीं है. बताया जाता है कि दस बोरियों में चावल के स्थान पर बालू भरा था.
डीएमएफसी प्रभारी रामबाबू का कहना है कि इस तरह के धालमेल में विभाग कही से दोषी नहीं है. गोदाम से जब चावल निकल गया तो उसकी पूरी जिम्मेदारी ट्रांसपोर्टर की होती है. बीच में इस तरह का गोरखधंधा कौन रहा है यह वही लोग बता सकते हैं. वाहन का ड्राइवर ऐसा कर रहा है या ट्रांसपोर्टर या कोई यह कहना मुश्किल है. वह बताते हैं कि शिकायत आने के बाद संबंधित सभी लोगों को सूचना दे गयी है.
खाद्य सुरक्षा की समस्या नहीं हो. इसके लिए गोदामों की क्षमता का निरीक्षण किया जा रहा है. धान की खरीद होने पर उसे रखने की समस्या नहीं हो इसके लिए पहल की गयी है. संभावना है कि 15 नवंबर से धान क्रय का डेट शुरू हो सकता है पंचायत स्तर पर अनाज गोदाम बनाये गये हैं. 95 पंचायतों में गोदामों का निर्माण कराया गया है. जिसपर करीब साढ़े पांच करोड़ रुपये व्यय किये गये हैं. गोदाम की क्षमता एक सौ से लेकर पांच सौ टन अनाज रखने की है.
घटिया चावल देने का भी है मामला
नालंदा से जो चावल दूसरे जिले में पहुंचा इसकी गुणवत्ता खराब होने की शिकायतें भी मिल रही हैं. गोदामों में रखे चावल की जांच प्रशासन द्वारा की जा रही है. साथ ही घटिया चावल देने वाले लोगों पर कार्रवाई भी की जा रही है. इस प्रकरण में साथ देने वाले कर्मियों पर भी कार्रवाई की जा रही है.
नालंदा में चावल माफिया की कमी नहीं है
चावल के धंधे से कई लोग करोड़ों से लेकर अरबों में पहुंच गये हैं. गौर करने वाली बात यह है कि सरकार द्वारा धान व गेहूं दोनों की खरीदारी का लक्ष्य दिया जाता है. लेकिन धान की खरीदारी लक्ष्य के अनुरूप तो होती है, लेकिन गेहूं की नहीं हो पाती है. अनुभवी लोग बतातें हैं कि धान व चावल में ही रुपये का खेल होता है. इस तरह के गोरखधंधे में लोकल प्रतिनिधि से लेकर मिलर तक की मिली भगत होती है.