अजग-गजब कारनामा. कागज पर चल रहा है विद्यालय
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गुरुजी उठाते रहे वेतन
अजग-गजब कारनामा. कागज पर चल रहा है विद्यालय सुपौल : जिले में शिक्षा व्यवस्था का हाल-बेहाल है. ताज्जुब की बात यह है कि यहां एक ऐसा भी विद्यालय है जो कागज पर चल रहा है और गुरुजी वेतन भी उठाते हैं. हालांकि मामले का खुलासा होने के बाद विभाग सजग हुआ है. बता दें कि […]
सुपौल : जिले में शिक्षा व्यवस्था का हाल-बेहाल है. ताज्जुब की बात यह है कि यहां एक ऐसा भी विद्यालय है जो कागज पर चल रहा है और गुरुजी वेतन भी उठाते हैं. हालांकि मामले का खुलासा होने के बाद विभाग सजग हुआ है. बता दें कि मुख्यालय में बिना मांगे विद्यालय मिलने के बाद न केवल छात्राओं का नामांकन हुआ, बल्कि शिक्षकों की भी नियुक्ति हो गयी. चूंकि धरातल पर विद्यालय का अस्तित्व नहीं है. मामला वर्ष 2015 में बिना विद्यालय के ही नया नाम देकर अपग्रेड करने सहित कोड जारी किये जाने से जुड़ा है. यहां तक कि उक्त विद्यालय में तीन शिक्षकों की बहाली व दर्जनों छात्राओं का नामांकन भी लिया गया.
वित्तीय वर्ष 2014-16 में जिले के दर्जनों मध्य विद्यालयों को उच्च माध्यमिक विद्यालयों में उत्क्रमित कर दिया गया. इन स्कूलों के उत्क्रमण की कार्रवाई बीइओ द्वारा उपलब्ध शिक्षकों और आधारभूत संरचना की रिपोर्ट देने के बाद की गयी थी, लेकिन अपग्रेड किये गये बालिका उच्च मध्य विद्यालय का कहीं अता-पता नहीं है. 2015 सत्र की छात्रा नौवीं कक्षा भी पास कर गए. साथ ही उसके बाद बोर्ड की परीक्षा में भी शामिल कराया जाता रहा. इधर दो वर्ष बाद वर्ष 2017 में जब मामला सार्वजनिक हुआ तब विभाग की नींद खुली. इसके बाद विभाग ने आनन-फानन में मुख्यालय स्थित टीसी उच्च माध्यमिक विद्यालय से सभी नामांकित छात्राओं का बोर्ड परीक्षा के लिए पंजीयन करवाया. नहीं तो छात्राओं का भविष्य खराब हो जाता.
बिना प्रस्ताव मिली विद्यालय की स्वीकृति
मालूम हो कि जिला पदाधिकारी के हस्ताक्षर युक्त सूची जो राज्य को भेजी गयी, उसमें बालिका मध्य विद्यालय सुपौल का नाम कहीं भी अंकित नहीं है. खास बात यह है कि इस नाम का विद्यालय सुपौल जिला में स्थित भी नहीं है. दूसरी बात यह है कि यह योजना शहरी क्षेत्र के लिये नहीं है. बावजूद निदेशक माध्यमिक शिक्षा ने अपने ज्ञापांक 281 दिनांक चार मार्च 2014 द्वारा 131 विद्यालय को उत्क्रमित करने की स्वीकृति प्रदान की, जिसमें सूची के क्रमांक 83 पर बालिका मध्य विद्यालय सुपौल का नाम दर्ज है. जबकि इस विद्यालय के लिये न तो प्रस्ताव भेजा गया था और न ही इस विद्यालय का अस्तित्व है.
छात्राओं का नामांकन, शिक्षक की भी हुई नियुक्ति
हैरानी की बात यह है कि स्कूल का धरातल पर भले ही अस्तित्व नहीं है, लेकिन बिना मांगें जब विद्यालय मिला तो विभाग अचानक सक्रिय हो गया. आनन-फानन में छात्राओं का नामांकन भी आरंभ हो गया. एक कदम आगे बढ़ते हुए शिक्षकों की नियुक्ति भी कर डाली गयी. अब तक तीन शिक्षकों की नियुक्ति हो चुकी है और विद्यालय में दर्जनों छात्राएं नामांकित हैं. बहरहाल, विभाग को अपनी गलती का एहसास तो हो गया है, लेकिन हर जिम्मेवार अधिकारी खामोश हैं, क्योंकि कोई अपनी गलती स्वीकार नहीं करना चाहता है.
कोचिंग और ट्यूशन के भरोसे छात्र
जिलेभर के अधिकांश उत्क्रमित उच्च विद्यालयों में विषयवार शिक्षक नहीं हैं. गणित, विज्ञान, अंग्रेजी आदि विषय के शिक्षक नहीं हैं. ऐसे में जाहिर है कि इन विषयों की पढ़ाई नहीं होती होगी. अगर होती भी होगी तो केवल कोरम पूरा किया जाता होगा. स्कूलों में सही से पढ़ाई नहीं होने के कारण छात्र-छात्राओं को कोचिंग या ट्यूशन का सहारा लेना पड़ता है. इसके लिए उन्हें शुल्क के रूप में मोटी राशि खर्च करनी पड़ती है. शहर व आसपास के क्षेत्रों के विद्यार्थी तो कोचिंग कर लेते हैं,
लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के छात्र-छात्राओं को अधिक परेशानी होती है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र में अच्छी कोचिंग की भी कमी है. हैरानी की बात यह है कि सूची में जो विद्यालय प्रस्तावित नहीं था, उसे भी प्रस्ताव में शामिल कर लिया गया और स्कूल निर्माण का भी आदेश भेज दिया गया.
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