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बिना चश्मा देखेंगे मोतियाबिंद के मरीज
इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने वाले मरीजों के लिए राहत भरी खबर है. अब मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद मरीजों को चश्मा की बजाय लेंस लगाया जायेगा. यह जानकारी पटना ऑप्थोमोजिकल सोसाइटी की ओर से 55वीं एनुअल कॉन्फ्रेंस के दौरान आईजीआईएमएस क्षेत्रीय चक्षु संस्थान के विभागाध्यक्ष डॉ विभूति प्रसाद सिन्हा ने […]
इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने वाले मरीजों के लिए राहत भरी खबर है. अब मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद मरीजों को चश्मा की बजाय लेंस लगाया जायेगा. यह जानकारी पटना ऑप्थोमोजिकल सोसाइटी की ओर से 55वीं एनुअल कॉन्फ्रेंस के दौरान आईजीआईएमएस क्षेत्रीय चक्षु संस्थान के विभागाध्यक्ष डॉ विभूति प्रसाद सिन्हा ने दी. इसमें मोतियाबिंद के आधुनिक पद्धति के बारे में चर्चा की गयी. तीन दिनों तक आयोजित इस कॉन्फ्रेंस के पहले दिन आईजीआईएमएस में सात मरीजों की लाइव सर्जरी हुई.
चश्मे की नहीं पड़ेगी जरूरत : नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ सुनील सिंह ने कहा कि मल्टी फोकल लेंस मोतियाबिंद के मरीजों के लिए काफी वरदान साबित हो रहा है.
डॉ सुनील ने बताया कि मोतियाबिंद के मरीज के आंख से लेंस निकाल कर मल्टी फोकल लेंस लगा दिया जाता है. इस आधुनिक लेंस को लगाने के बाद आंख की पुतली जरूरत के अनुसार सिकुड़ती व फैलती है. ऐसे में मरीज बगैर चश्मा के दूर और नजदीक की चीज को आसानी से देख सकते हैं. डॉ सिंह का कहना है कि इसे लगाने के बाद वाहन की लाइट भी रिफ्लेक्ट नहीं करेंगी. कंप्यूटर पर बैठ कर ब्रेक देकर काम किया जा सकता है. छोटे शब्द को भी आसानी से देखा पढ़ा जा सकता है. साथ ही डॉ सिंह ने बिहार में बाढ़ पीड़ित और उनकी मदद के बारे में बताया.
सीधे आंख में खुलती है लेंस : दिल्ली एम्स से आये नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ राजेश सिन्हा ने ब्लू डिवाइस के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि कई बार मोतियाबिंद के ऑपरेशन के दौरान लेंस नहीं लग पाते हैं, लेकिन अब आधुनिक तकनीक से वह भी संभव हो गया है.
वहीं कटक से आये डॉ अनुराग मिश्रा ने कहा कि मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद मरीज की आंख में लेंस लगाने के लिए उसे हाथ से छूने की जरूरत नहीं है. अब लेंस सीधे ही आंख में इंजेक्ट कर दिया जाता है. इससे इंफेक्शन की संभावना पूरी तरह से कम हो जाती है. कुछ मरीजों का सिलेंड्रिकल पावर (तिरछा पावर) होता है. ऐसे मामलों के लिए अब टोरिक लेंस आंख में इंप्लांट कर दिया जाता है जिससे मरीज का सिलेंड्रिकल पावर करेक्ट हो जाता है.
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