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बिन दवाओं का हो रहा इलाज, मरीज झेल रहे परेशानी ओपीडी में 33 की जगह मात्र 14 प्रकार की दवाएं हैं उपलब्ध भभुआ सदर : जिले में चिकित्सा व्यवस्था का हाल बदतर हो चुका है. सरकार आमलोगों को मुफ्त में चिकित्सीय सुविधा सहित दवाएं दे रही हैं. लेकिन, उस चिकित्सीय सुविधा और दवाओं का क्या […]

बिन दवाओं का हो रहा इलाज, मरीज झेल रहे परेशानी
ओपीडी में 33 की जगह मात्र 14 प्रकार की दवाएं हैं उपलब्ध
भभुआ सदर : जिले में चिकित्सा व्यवस्था का हाल बदतर हो चुका है. सरकार आमलोगों को मुफ्त में चिकित्सीय सुविधा सहित दवाएं दे रही हैं. लेकिन, उस चिकित्सीय सुविधा और दवाओं का क्या मतलब जब उसकी जांच करने और मर्ज की दवा लिखने वाला ही न हो. सदर अस्पताल सहित पूरे जिले में चिकित्सकों व दवाओं की कमी के चलते मरीजों को काफी परेशानी झेलनी पड़ रही है.
लोग अस्वस्थ होने के बाद उम्मीद से सरकारी अस्पताल आते हैं. लेकिन, यहां चिकित्सकों व दवा की कमी के चलते उनकी उम्मीद धरी की धरी रह जा रही है.
फिलहाल, सदर अस्पताल में दवाओं की घोर किल्लत बनी हुई है. केवल ओपीडी की ही बात करें तो फिलहाल ओपीडी में 33 की जगह मात्र 14 प्रकार की दवा उपलब्ध हैं, उसमें भी जरूरी के कफ सिरप, खुजली के मलहम, कैल्शियम, कान-आंख के ड्रॉप, विटामिन आदि की दवाएं कई हफ्तों से गायब हैं. अस्पताल में फिलहाल बुखार की दवा के अलावे ओफ्लोक्सासिन सिरप, ओआरएस पावडर, एंटीबायोटिक, फोलिक एसिड टेबलेट आदि ही मुख्य रूप से मरीजों के लिए उपलब्ध है. अब जिस सरकारी अस्पताल में डॉक्टर व दवा की व्यवस्था नहीं होगी, वहां मरीजों का किस कदर इलाज किया जाता होगा, इसे समझा जा सकता है.
आयुष डॉक्टर के सहारे ओपीडी: सदर अस्पताल सहित जिले में नियमित चिकित्सकों के 114 पद सृजित है. लेकिन, यहां मात्र 44 नियमित चिकित्सक कार्यरत हैं. जबकि, 70 पद अब भी रिक्त हैं.
इसी प्रकार संविदा चिकित्सकों के 48 पद में 29 पर ही चिकित्सक कार्यरत हैं. जबकि, 19 पद रिक्त हैं. जिले में चिकित्सकों की कमी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सदर अस्पताल के ओपीडी में मंगलवार को आये सामान्य मरीजों का इलाज आयुष डॉक्टर द्वारा किया जा रहा था और उनके द्वारा दोपहर 12:40 बजे तक 200 से अधिक मरीजों का मर्ज जान उनको दवा लिख दी गयी थी. वहीं, ओपीडी में ही नेत्र चिकित्सक की जगह नेत्र सहायक से आनेवाले मरीजों की जांच अस्पताल प्रबंधन द्वारा करायी जा रही है. जबकि, नेत्र विशेषज्ञ के रूप में डॉ राजू लाल की अस्पताल में तैनाती है.
बावजूद उनसे नेत्र विकार वाले मरीजों का इलाज करवाने की जगह अस्पताल प्रबंधन द्वारा जेनरल फिजिशियन का काम सौंप दिया गया है. उसके अलावे अस्पताल में तैनात कई डॉक्टर ऐसे हैं, जो अक्सर कभी ट्रेनिंग तो कभी घरेलू जरूरतों के नाम पर अपने डयूटी से अक्सर नदारद रहते हैं. इसका खामियाजा मरीजों को तो भुगतनी पड़ती ही हैं. इन भगेडु डॉक्टरों की डयूटी भी अस्पताल में उपलब्ध डॉक्टरों को करनी पड़ती है.
सदर अस्पताल का इलाज पड़ रहा मरीजों पर भारी: गौरतलब है कि सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए ग्रामीण तबके के गरीब लोगों सहित आर्थिक रूप से कमजोर लोग ही इलाज के लिए आते हैं और उन्हें मालूम नहीं रहता कि वह जिससे इलाज करा रहे हैं, वह किस मर्ज के डॉक्टर हैं और वैसे डॉक्टर की लिखी दवा से उसका मर्ज ठीक होगा भी या नहीं. वैसे भी अस्पताल इलाज के लिए आनेवाले मरीज गरीब व ग्रामीण इलाके के होते हैं, जिन्हें केवल मुफ्त की इलाज व दवा की जरूरत है, उन्हें इसका भान नहीं रहता कि सरकार की रहनुमाई करनेवाला अस्पताल प्रशासन उनको इलाज व दवा की कैसी सुविधा प्रदान कर रहा है.

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