व्यक्ति के पहचान के सत्यापन के लिए बारह अंकों की आधार-संख्या हर स्थिति में जरूरी है या नहीं, इस पर बहस अभी जारी है. इसमें नया मोड़ तब आया, जब सरकार ने आधार की अनिवार्यता के लिए कानून बना दिया. इस कानून की संवैधानिक कसौटी पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई चल रही है. चूंकि मामला न्यायिक प्रक्रिया के अधीन है, सो इससे जुड़े तमाम पक्षों के लिए फिलहाल सब्र करना ही एकमात्र रास्ता है.
लेकिन, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से यह सब्र न सध सका. आधार को मोबाइल फोन सेवा के लिए जरूरी बनाने को लेकर उन्होंने अदालत का रास्ता चुना. अदालत ने उन्हें फटकार सुनाते हुए एक बुनियादी बात याद दिलायी है कि आधार को अनिवार्य बनानेवाला कानून संसद ने बनाया है, ऐसे में संघीय ढांचे के भीतर एक सूबे के मुख्यमंत्री के रूप में उसे चुनौती नहीं दी जा सकती. सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, ममता बनर्जी को किसी आम नागरिक की तरह अपनी अर्जी दाखिल करनी होगी, न कि एक मुख्यमंत्री के रूप में. देखा यह जाना चाहिए कि सरकार ने मामले में अंतिम फैसला आने तक संवेदनशीलता का परिचय दिया है या नहीं.
बेशक सरकार ने आधार को अनिवार्य करने के लिए पहले संसद में कानून बनाया और उसकी कोशिश रही कि जल्दी-से-जल्दी तमाम सरकारी योजनाओं का लाभ लेनेवाले व्यक्तियों या फिर बैकिंग सेवा से जुड़ाव के कारण मोबाइल या इंटरनेट का उपयोग करनेवाले लोग आधार-संख्या के जरिये सत्यापन करवा लें, लेकिन वक्त गुजरने के साथ अमल में सख्ती बरतने के सरकारी रुख में बदलाव भी आया है.
एक तो आधार-संख्या से किसी सेवा को लिंक करने की तारीख सरकार ने आगे खिसकायी है, दूसरे कुछ सेवाओं जैसे पीडीएस (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) से मिलनेवाले राशन के लिए फिलहाल आधार-संख्या से राशन-कार्ड को लिंक करने की बाध्यता हटा ली गयी है. विभिन्न सेवाओं के लिए आधार-संख्या को अनिवार्य करने के कानून के साथ एक बुनियादी बात ढांचागत तैयारी की है. आधार-संख्या की प्रकृति डिजिटल है और डिजिटल-व्यवस्था के भीतर व्यक्ति की पहचान बतानेवाली सूचनाओं का निजी क्षेत्र बगैर अनुमति के व्यावसायिक इस्तेमाल न कर सकें, या फिर ये सूचनाएं किन्हीं आपराधिक तत्वों के हाथ न लग जायें, यह आशंका आधार-डेटा में ऑनलाइन सेंधमारी की खबरों के बीच बलवती हुई है.
सूचनाओं की ऑनलाइन सेंधमारी की आशंका के निवारण के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम अमल में लाये जाने चाहिए. उम्मीद की जानी चाहिए कि आधार-संख्या की अनिवार्यता से संबंधित मामलों पर अदालत के फैसले के आने से सरकार को नियामक दिशा-निर्देश बनाने में मदद मिलेगी और क्रियान्वयन के सिलसिले में होनेवाले लगातार बदलाव की हालत से उबरकर कुछ ठोस तथा स्थायी इंतजाम करना संभव होगा.