क्या आप नवंबर या दिसंबर में शादी-विवाह का प्लान कर रहे हैं? यदि हां, तो अलर्ट हो जायें! कारण अगले दो माह यानी नवंबर तथा दिसंबर के 61 दिनों में मात्र 15 दिन ही शादी-विवाह का मुहूर्त है. देवोत्थान एक ादशी 31 अक्तूबर को है. शास्त्रों के अनुसार देवोत्थान एकादशी के बाद ही सभी तरह के शुभ कार्य शुरू होते हैं. लेकिन इस बार भगवान विष्णु के जागने के 18 दिन बाद ही कोई शुभ कार्य किया जा सकता है. इसका कारण ग्रहों की चाल है.
विष्णु के शयनकाल में शुभ कार्य नहीं
दरअसल देवशयनी एकादशी से देवोत्थान एकादशी तक यानी चार महीने भगवान विष्णु का शयनकाल है. इस दौरान शुभ कार्य नहीं किया जाता है. दरअसल, देवोत्थान एकादशी के दिन तुलसी विवाह के साथ ही सभी शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं. लेकिन इस बार मुहूर्त देरी से शुरू होने के कारण गुरू व शुक्र ग्रहों का अस्त रहना है. दोनों ग्रह विवाह के कारक ग्रह हैं. गुरू ग्रह का 10 नवंबर को दोबारा उदय होगा.
2018 में मकर संक्रांति के बाद मुहूर्त
सूर्य के 17 नवंबर को वृश्चिक राशि में प्रवेश के बाद ही 19 नवंबर से शुरू होकर 12 दिसंबर तक वैवाहिक मुहूर्त रहेगा. दो माह (नवंबर तथा दिसंबर) में कुल 15 दिन ही शुभ मुहूर्त रहेंगे. इस साल नवंबर में 19, 22, 23, 24, 28, 29 व 30 नवंबर तथा दिसंबर में तीन, चार, 10, 11, व 12 दिसंबर को ही विवाह के मुहूर्त बन रहे हैं. इसके बाद वर्ष 2018 में मकर संक्रांति के बाद विाह मुहूर्त हैं, जो मार्च में होलाष्टक प्रारंभ होने तक रहेगा.
नवंबर महीने मिल रहे हैं खास मुहूर्त
23 नवंबर को विवाह पंचमी है. इस दिन को विवाह के लिए अति शुभ माना गया है. इसी तरह 25 नवंबर को त्रिपुष्कर योग रहेगा. जबकि 28 व 30 नवंबर के मुहूर्त भी विशेष शुभ रहेंगे. दोनों दिन सूर्यास्त से शुरू होकर रात तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा. अगर नवंबर व दिसंबर में शादी-विवाह का प्लान है तो आप स्टार्ट हो जायें. कारण, मुहूर्त कम होने के कारण मैरेज हॉल, होटल, क्लब, कार, फूल, केटेरिंग, बैंड आदि के लिए मारामारी होनेवाली है.
चार महीने बाद जागेंगे भगवान विष्णु
साल में 24 एकादशी होती है. यानी हर माह दो एकादशी. सभी एकादशी में कात्तिर्क शुक्ल एकादशी का विशेष महत्व है. इसे देवप्रबोधनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस बार यह एकादशी 31 अक्तूबर, मंगलवार को पड़ रहा है. इस दिन चार महीने के बाद भगवान विष्णु जगेंगे. शास्त्रों के अनुसार देव प्रबोधनी एकादशी के दिन देवता भी भगवान विष्णु के जगने पर उनकी पूजा करते हैं. पुराणों के अनुसार देवप्रबोधनी एकादशी करनेवालों की कई पीढ़ियां विष्णु लोक में स्थान पाने के लिए सक्षम हो जाती है.
देव प्रबोधनी एकादशी के दिन गóो का मंडप सजा कर मंडप के अंदर विधिवत भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए और तुलसी का पत्ता चढ़ाना चाहिए. व्रती को स्वयं तुलसी पत्ता नहीं तोड़ना चाहिए. ऐसा करने से मांगलिक कार्यो में आनेवाली सभी बाधाएं दूर होती हैं. पूरा साल सुखमय व्यतीत होता है.
31 अक्तूबर को देवोत्थान के बाद भी शादी-विवाह का मुहूर्त नहीं
गुरु व शुक्र ग्रहों के अस्त होने से 18 दिन बाद ही शुभ कार्य शुरू
सूर्य के 17 नवंबर को वृश्चिक राशि में प्रवेश के बाद शुभ मुहूर्त
12 दिसंबर तक वैवाहिक मुहूर्त, 23,25,28, 30 को विशेष मुहूर्त