बिहारशरीफ : राजगीर स्थित रत्नागिरि पर्वत शिखर बुधवार को बौद्ध भिक्षुओं के प्रार्थना तथा ताईको की आवाजों से सजीव हो उठा. मौका था रत्नागिरि पर्वत के शिखर पर खड़ा विश्वशांति स्तूप का 48 वां वार्षिक समारोह. जापान, श्रीलंका आदि कई देशों से पधारे बौद्धभिक्षु तथा पर्यटक पूरी तरह से तथागत के प्रति गहरी आस्था में डूबे पालि भाषा के पवित्र ग्रंथ त्रिपिटक में डूबे थे. बीच-बीच में ताईको की आवाज पहाड़ों में दूर-दूर तक भगवान बुद्ध की नैसर्गिक शांति को बीच-बीच में सजीवता का एहसास करा रहे थे.
प्रसिद्ध विश्वशांति स्तूप के नीचे लगभग दर्जन भर बौद्ध संत प्रमुख गुरू फिजुई तथा भगवान बुद्ध के गुणगान कर रहे थे. दर्शक सभी धार्मिक अनुष्ठानों को कुछ आश्चर्य तो कुछ भक्ति भाव से निहार रहे थे. बुद्ध बिहार सोसाइटी की सचिव श्वेता महारथी बीच-बीच में पालि तथा जापानी भाषा के ग्रंथों की व्याख्या अंग्रेजी में करते हुए मंच संचालन कर रही थीं. सारे श्रोता तथा दर्शक भगवान बुद्ध के शरण में अपने-आपको महसूस कर रहे थे. मुख्य अतिथि के रूप में समारोह में शिरकत कर रहे सूबे के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने इस मौके पर कहा कि भगवान बुद्ध भक्ति मार्ग को एक नई दिशा देकर इसे कर्ममार्ग में बदल दिया.
कर्म के अनुसार ही मनुष्य अपने जीवन में शांति, खुशियां तथा विकास ला सकता है. इसके लिए तथागत के सत्य, अहिंसा, प्रेम, श्रद्धा आदि गुणों को आत्मसात करना होगा. भगवान बुद्ध दया और मंत्री के पोषक थे. हालांकि कई बार लोगों ने इन्हें भी प्रताड़ित करने का प्रयास किया, लेकिन उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोपों का मजबूती से खंडन कर आरोप लगाने वालों को भी अपना शिष्य बना लिया. आज विश्व को बुद्ध के शांति और प्रेम के संदेशों की सर्वाधिक जरूरत है. इसी आदर्श पर चलकर विश्व का कल्याण हो सकता है.