मधुबनी /झंझारपुर : परसा में स्थित सूर्य मंदिर राज्य भर में प्रसिद्ध है. झंझारपुर एवं फुलपरास अनुमंडल सीमा पर स्थित परसा धाम मंदिर में स्थापित भगवान सूर्य के दर्शन को यूं तो सालों भर श्रद्धालु आते रहते हैं पर दीपावली से लेकर छठ पर्व तक इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ जाती है.
सूर्य की दुर्लभ प्रतिमा के बारे में पुरातत्वविदों का कहना है कि यह दसवीं से ग्यारहवी सदी की निर्मित प्रतिमा है. जिले का एक मात्र परसा सूर्य मंदिर में आने मात्र से ही अलौकिक वातावरण की अनुभूति होने लगती है. झंझारपुर की धरती धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से कितना महत्व रखता है़ यह परसा गांव स्थित सूर्य प्रतिमा को दर्शन मात्र से ही हो जाता है़ यहां की पौराणिकता की गाथा मूर्ति के गुण रूप देखने से ही पता चल जाता है़ पुरातत्वविदों की माने तो यह प्रतिमा दसवीं और ग्यारवीं शताब्दी के मध्य काल की है़ काले ब्लास्ट पत्थर से निर्मित इस दुर्लभ प्रतिमा की कारीगरी बेहद कुशलता से की गयी है़
खुदाई के दौरान मिली थी प्रतिमा
लोगों का कहना है कि परसा के एक किसान को 1980 ई़ में खुदाई के दौरान यह अद्भूत मूर्ति मिला था़ कुछ दिनों तक इसे छोटे से मंदिर में रखा गया. बाद में इसकी जानकारी तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र को हुई तो उन्होंने व्यक्तिगत रूप से इस प्रतिमा के स्थापना के लिये पहल किया मूर्ति को ग्रामीण व प्रशासनिक अधिकारियों के सहयोग से आमजनो के दर्शनार्थ और पूजनार्थ लाया गया़ स्थल के विकास के लिए पूर्व मुख्यमंत्री ने तत्कालीन पूरा प्रयास किया है़ मूर्ति के महत्व को देखते हुए एहतियातन यहां पुलिस फोर्स की भी नियुक्ति की गयी़
1.22 मीटर उंची है प्रतिमा . परसा धाम स्थित सूर्य प्रतिमा 1.22 मीटर उंची और 65 सेंटीमीटर चौड़ी है़ इसका दस्ता काफी सुसस्जित है़ जिसके मध्य भाग में कृति मुख के बारे में उलेखित है़ हाथों में माला लिये हुए प्रतिमा इस तरह बनाये गये हैं जैसे वो उड़ रहे हों. भगवान सूर्य की मुख्य प्रतिमा में मुकुट माला और उपवित्त पहनाया हुआ है और दोनो हाथों से पूरी तरह खिले हुए कमल का पुष्प पकड़ हुए हैं. मूर्ति को आकर्षक बनाता सात घोड़े वाला रथ है़ रथ के निचले हिंस्से में सूर्य देव के पैर के समीप शिलालेख मौजूद है़ जिस पर सूर्य देव खड़े हैं. आसन के निचले हिस्से में उषा, प्रत्यूषा, दंडा, पिंगला को दर्शाया गया है़ जानकारों के अनुसार यह प्रतिमा हजारो साल पुराना है़ कहते हैं कि यहां भगवान सूर्य लोगों की हर मनोकामना पूरा करते हैं.
2008 में हुआ था सर्वेक्षण . साल 1988 से परसा धाम में स्थापित इस प्रतिमा व परसा मंदिर की चर्चा उस वक्त राज्य स्तर पर होने लगी जब 2008 में पुरातात्वतिक सर्वेक्षण की पटना इकाई की टीम द्वारा जब झंझारपुर और अंधराठाढ़ी प्रखंड में सर्वेक्षण किया गया़ सर्वेक्षण के दौरान पुरातत्वविदों की नजर भगवान सूर्य की इस दुर्लभ प्रतिमा पर पड़ी. अद्भुत रूप से बने इस यह प्रतिमा ऐतिहासिक और अदभुत बताया गया था़ हजारों साल पुराने इस प्रतिमा के दर्शन को दूर दूर से लोग आते हैं. खास कर छठ पर्व के दौरान एवं मार्तंड महोत्सव के दौरान इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ लग जाती है.
मंदिर परिसर स्थित तालाब में होती है छठ पूजा
मंदिर परिसर में ही तालाब है. जहां पर छठ पूजा मे ब्रतियों के द्वारा सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है. लोग आस्था श्रद्धा के साथ छठ पूजा कर भगवान सूर्य की उपासना करते है. छठ पूजा के दिन मंदिर परिसर को आकर्षक रूप से सजाया जाता है. कहा जाता है कि इस मंदिर में आकर पूजा अर्चना करने से लोगों को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. कई सूनी गोद भगवान सूर्य की पूजा अर्चना से पुत्र रत्न की प्राप्ति से भरी है. परसा धाम सूर्य मंदिर में साल में एक बार राज्य स्तरीय महोत्सव का भी आयोजन होता है. कला संस्कृति एवं युवा विभाग के द्वारा मार्तंड महोत्सव का आयोजन किया जाता है. इस महोत्सव में राज्य सरकार के कई मंत्री, सांसद, विधायक व अधिकारी शामिल होते हैं. पूर्व में ग्रामीणों के द्वारा छोटे पैमाने पर यहां पूजा अर्चना की जाती थी. पर साल 2011 से सूर्य महोत्सव का आयोजन शुरू किया गया. बाद में इसे मार्तंड महोत्सव की संज्ञा दी गयी.