दीपोत्सव आज. रंगीन बल्बों की रोशनी में डूबा गांव से लेकर शहर तक
बक्सर/केसठ. दीपावली केवल एक दिन का पर्व लेकर नहीं आता है, बल्कि अपने साथ पांच पर्वों को लेकर आता है, जिसमें धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और यमद्वितीया आदि प्रमुख हैं. दीपावली की रात लक्ष्मी पूजा का विधान है, जिसमें माता लक्ष्मी के साथ गणेश जी की भी पूजा होती है. दीवाली के इस पावन पर्व पर लोग घर का कोना-कोना साफ कर माता लक्ष्मी के आगमन की कामना करते हैं.
दीवाली की रात में विधिवत पूजा-अर्चना कर माता लक्ष्मी से साल भर तक सुख-समृद्धि और धन प्राप्ति की कामना की जाती है. ऐसी मान्यता है कि दीवाली पर महालक्ष्मी की पूजा पूरे विधि-विधान से करने पर ही लक्ष्मी की कृपा बनती है. माता लक्ष्मी की पूजा के लिए इन पूजन सामग्री का होना बहुत महत्व रखता है. माता लक्ष्मी की पूजा में केसर, रोली, चावल, पान का पत्ता, सुपारी, फल, फूल, दूध, खील, बतासे, सिंदूर, सूखे मेवे, मिठाई, दही गंगाजल धूप, अगरबत्ती , दीपक रुई, कलावा, नारियल और कलश के लिए एक तांबे का पात्र होना चाहिए.
मां लक्ष्मी की पूजा करने की विधि: माता लक्ष्मी की पूजा के लिए पीतल की थाल में या भूमि को शुद्ध करके नवग्रह बनाएं या नवग्रह का यंत्र के स्थापना करें. इसके अलावा एक तांबे का कलश बनाएं. इस कलश में गंगाजल, दूध, दही, शहद, सुपारी, सिक्के और लौंग आदि डालकर उसे लाल कपड़े से ढंक दें. साथ ही एक कच्छा यानी पानी वाला नारियल को कलावा से बांधकर कलश के ऊपर रख दें.नवग्रह यंत्र के पास रुपया, सोना या चांदी का सिक्का, लक्ष्मी जी की मूर्ति या मिट्टी के बने हुए लक्ष्मी-गणेश सरस्वती जी या ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देवी देवताओं की प्रतिमाओं को सजाएं.
यदि कोई धातु की मूर्ति हो तो उस मूर्ति को भी दूध, दही और गंगाजल से स्नान कराकर अक्षत, चंदन का शृंगार करके फल-फूल आदि से सजाएं. इन प्रतिमाओं के दाहिनी ओर एक पांच मुख का दीपक अवश्य जलना चाहिए. इस दीपक में केवल तिल का तेल या घी का ही प्रयोग करना चाहिए.