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थाली से गायब हो रहीं हरी सब्जियां
बांका : सामने दीपावली व छठ पर्व है. समाज में चहुंओर इसकी तैयारी चरम पर है. लोग घर की रंगायी-पोतायी के साथ पूजन सामग्री में होने वाले खर्च का हिसाब-किताब बैठाने में जुटे हुए हैं. इस बीच सब्जी की आसमान छूती महंगाई ने अतिरिक्त टेंशन बढ़ाकर रख दिया है. नतीजतन गरीब व सामान्य वर्ग का […]
बांका : सामने दीपावली व छठ पर्व है. समाज में चहुंओर इसकी तैयारी चरम पर है. लोग घर की रंगायी-पोतायी के साथ पूजन सामग्री में होने वाले खर्च का हिसाब-किताब बैठाने में जुटे हुए हैं. इस बीच सब्जी की आसमान छूती महंगाई ने अतिरिक्त टेंशन बढ़ाकर रख दिया है. नतीजतन गरीब व सामान्य वर्ग का घरेलु वित्तीय प्रबंधन असंतुलित हो गया है.
मौजूदा समय में सब्जी मंडी का तेवर सबसे अधिक गर्म है. यहां एक भी सब्जी की कीमत सामान्य नहीं है. प्रत्येक सब्जी के लिए दो अंक में कीमत अदा करनी पड़ रही है. गरीब व सामान्य परिवार के थाली से हरी सब्जी लगभग दूर हो चुकी है. आम जनता का कहना है कि एक तो सामने पर्व है इस बीच सब्जियों की आसमान छूती महंगाई से हर परिवार हैरत में है.
धनिया पत्ती से लेकर करेला तक का भाव पूछते ही दिमाग काम करना छोड़ देता है. दुकानदारों का कहना है कि यहां के ज्यादातर व्यवसायी भागलपुर मंडी से थोक मात्रा में सामग्री मंगवाते हैं. वहीं से कीमत तय रहती है.
सब्जी की कीमत (प्रति किलो की दर से)
गोभी 40
बंधा गोभी 40
बैगन गोल 50
करेला 40
कोंकड़ी 100
प्याज 35
परोल 30
भिंडी 30
आलू 10
नया आलू 30
धनिया पत्ती प्रति सौ ग्राम 25
आलू से बच रही रसोई की इज्जत
सब्जी की आसमान छूती महंगाई से रसोई की चमक भी फींकी पड़ गयी है. सामान्य परिवार में हरी सब्जी का प्रोग्राम सप्ताह में एक या दो दिन मुश्किल से फिक्स हो पाता है. इस बीच अभी रसोई की इज्जत पुराने आलू के सहारे ही बच रही है. जानकारी के मुताबिक सबसे न्यूनतम कीमत में पुराना आलू ही मिल रहा है. आलू की कीमत दस रुपया है.
पुराने आलू का स्वाद पूरी तरह मीठा हो चुका है. लोगों को न चाहते हुए भी इसे खाना पड़ रहा है. जबकि नया आलू की कीमत सुनकर ग्राहक खरीदने का तत्कालीन मूड बदल देते हैं.
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