मुंबई: आमतौर पर लाेग अपनी सफलता का ढोल पीटते हैं, लेकिन देश की सबसे बड़े बैंक एसबीआइ कीपहली महिला प्रमुख अरुंधति भट्टाचार्य आज अपनी सेवानिवृत्ति केमौके परयह बात प्रमुखता से बताया कि वे इस पद पर रहते हुए क्या नहीं कर सकीं. अरुंधति को सफलतमएसबीआइ चीफ में शुमार किया जाता है, जो इस बैंक को अपने नेतृत्व में एक नयीऊंचाई पर ले गयीं. अब जब वेबैंकिंग के लंबे कैरियर से रिटायर हो रही हैं, तो इस उम्र में बैंकिंग पर ही पीएचडी करेंगी. उनके व्यक्तित्व का यहपक्षप्रभावित करता है और लोग इससे सीख सकते हैं. सार्वजनिक क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन पद से सेवानिवृत हुईं अरुंधति भट्टाचार्य ने कहा कि वह दो प्रमुख एजेंडे – डिजिटलीकरण और ऋण मांग में वृद्धि को पूरा नहीं कर पायीं.
जीवन का एजेंडा कभी पूरा नहीं होता
स्टेट बैंक के 214 वर्ष के इतिहास में वह पहली महिला चेयरमैन रहीं. चार साल का कार्यकाल समाप्त होने के बाद कल वह सेवानिवृत्त हो गयीं. बैंक की चेयरमैन के तौर पर मीडिया से अंतिम बार मुखातिब होते हुए कल भट्टाचार्य ने कहा, एक जिंदगी में ऐसा कोई पद नहीं है, जहां पहुंचकर कोई यह कह सके कि अब एजेंडा खत्म हो गया है. दरअसल, होता यह है कि आप एक एजेंडे से शुरू करते हैं और जैसे-जैसे आप आगे बढते हैं, नये एजेंडे उसमें जुड़ते चले जाते हैं. हम डिजिटल मोर्चे पर कुछ देना चाहते थे जो कि वास्तव में अलग था और जुलाई में कुछ समय केलिए ऐसा हुआ भी. अब, इसमें थोड़ी देर हो गयी है क्योंकि परियोजना का दायराबढ़ गया है. जाहिर है कि यह अधूरा एजेंडा है, लेकिन यह मायने नहीं रखता क्योंकि हमने इस दिशा में काफी प्रगति की है.
भट्टाचार्य ने आगे कहा कि महत्वपूर्ण औरबड़े कदम उठाये जाने के बावजूद बैंक की ऋण मांग वृद्धि ज्यादा बेहतर नहीं हो सकी. उन्होंने कहा, हालांकि, हमने जोखिम की निगरानी, प्रक्रियाओं में सुधार और अनुवर्ती प्रक्रियाओं को सुधारने केलिए हर सभंव प्रयास किया. लेकिन हम ऋण वृद्धि को उस स्तर पर नहीं ला सके जहां हम चाहते थे.इसलिए यह भी एक अधूरा एजेंडा है.
मुश्किल रही यात्रा
उन्होंने आगे कहा कि बैंक ने अच्छा, बुरा और उदासीन सभी दौर देंखे. यह रोचक के साथ-साथ बहुत ही मुश्किल यात्रा रही, लेकिन मझे लगता है कि हम इस यात्रा में बेहतर ढंग से आगे बढे हैं. एसबीआई की पहली महिला चेयरपर्सन रही अरुंधति भट्टाचार्य स्टेट बैंक के साथ प्रोबोशनरी ऑफिसर केरूप में जुड़ने के बाद आज 40 साल, एक महीने और दो दिन बाद सेवानिवृत्त हो गयीं. एसबीआई की उनकी यात्रा बैंक की मुख्य शाखा कलकत्ता सेशुरूहुई और क्लाउड कम्प्यूटिंग के साथ खत्म हुई.
बनना चाहती थीं पत्रकार, करेंगी पीएचडी
सेवानिवृत्त के दिन उन्होंने पीटीआई-भाषा को दिये साक्षात्कार में अपनी लंबी पारी का जिक्र करतेहुए कहा कि वह पत्रकार बनना चाहती थीं. उनके शिक्षक कहते थे कि वह संपादक-मटेरियल थी. वह बैंकिंग क्षेत्र में अपने प्रवेश को दुर्घटनावश बताती है. लेकिन यह उनकेलिए बुरा नहीं रहा है और एसबीआई के शीर्ष पद तक पहुंची. बैंक के हर विभाग में अपनी छाप छोड़ने के बाद अब वह बैंकिंग और वित्त में पीएचडी करने की योजना बना रही हैं.
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