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अध्यक्ष व बीसीओ की भूमिका की जांच शुरू
फर्जीवाड़ा : भोरे चुनाव स्थगित होने के बाद प्रशासन की कार्रवाई पर टिकी नजर भोरे : भोरे प्रखंड व्यापार मंडल के चुनाव के लिए प्रकाशित की गयी मतदाता सूची में हुए फर्जीवाड़े के खुलासे के बाद डीएम ने भोरे का चुनाव स्थगित कर दिया है. साथ ही इस पूरे मामले की जांच भी शुरू हो […]
फर्जीवाड़ा : भोरे चुनाव स्थगित होने के बाद प्रशासन की कार्रवाई पर टिकी नजर
भोरे : भोरे प्रखंड व्यापार मंडल के चुनाव के लिए प्रकाशित की गयी मतदाता सूची में हुए फर्जीवाड़े के खुलासे के बाद डीएम ने भोरे का चुनाव स्थगित कर दिया है. साथ ही इस पूरे मामले की जांच भी शुरू हो चुकी है. यह खेल कहां से और कैसे हुआ, इस रहस्य से पर्दा उठना अभी बाकी है. लेकिन जो नियम और प्रक्रिया है, उससे यह बात साफ है कि व्यापार मंडल के अध्यक्ष और डीसीओ कार्यालय की सांठ-गांठ है. हालांकि अभी तक इस कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. जबकि मामले की जांच शुरू हो चुकी है.
जांच का जिम्मा भी जिला सहकारिता पदाधिकारी को सौंपा गया है. स्थानीय स्तर पर बीडीओ भी इसकी जांच कर रिपोर्ट देंगे. अगले छह माह तक चुनाव होने के कोई आसार नहीं दिख रहे हैं. पूरे प्रकरण के सामने आने के बाद अब लोगों की निगाहें प्रशासन की कार्रवाई पर टिकी हैं.
क्या है पूरा मामला : 17 अक्तूबर को होने वाले व्यापार मंडल के चुनाव को लेकर भोरे प्रखंड में मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन 10 अगस्त को किया गया. फर्जीवाड़े का मामला तब सामने आया, जब 26 सितंबर को बनकटा जागीरदारी पैक्स अध्यक्ष ने 2012 की मतदाता सूची से 2017 की मतदाता सूची का मिलान किया.
सूची में बड़ी सफाई से कंप्यूटर की मदद से स्कैन कर 28 मतदाताओं को हटा कर उनकी जगह दूसरे नाम अंकित कर दिये गये थे. चुनाव के लिए सात अक्तूबर को नामांकन होना तय था. लेकिन इससे पूर्व चार अक्तूबर के अंक में प्रभात खबर ने फर्जीवाड़ा का खुलासा कर दिया. इसके बाद डीएम राहुल कुमार ने एक्शन लेते हुए भोरे के चुनाव को स्थगित करने का फैसला लिया. साथ मामले में जांच के आदेश दे दिये.
कैसे हुआ फर्जीवाड़ा : अब तब जांच में जो बातें सामने आयी हैं, उसमें व्यापार मंडल के अध्यक्ष और सहकारिता कार्यालय की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है. यहां बता दें कि व्यापार मंडल के निबंधक पूरे जिले में दो होते हैं, पहला अध्यक्ष और दूसरा डीसीओ. इन्हीं दोनों के पास ये हक है कि मतदाता सूची में किसी का नाम हटा सकते हैं. इस चुनाव में यह भी नियम है कि नयी मतदाता सूची पुराने मतदाता सूची के आधार पर ही तैयार होगी. नाम उसी मतदाता का हटाया जा सकता है,
जो मृत हैं या फिर विस्थापित. इसके अलावा किसी के नाम को हटाने के लिए समिति की बैठक कराना अनिवार्य है. मतदाता सूची का प्रारूप सहकारिता विभाग में भेजने की जिम्मेदारी अध्यक्ष की होती है. भोरे में जिस समय ये फर्जीवाड़ा किया गया, उस समय बीसीओ जीवान अंसारी थे. उसके बाद उनका तबादला हो गया. बीसीओ और व्यापार मंडल के अध्यक्ष की भूमिका कितनी है. यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा.
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