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मधुपुर के कुदरती सौंदर्य और स्वच्छता से प्रभावित थे महात्मा गांधी

-डॉ उत्तम पीयूष- देवघर का सबडिवीजन है मधुपुर . यह अपने कस्बाई काॅटेजनुमा खोल से नगरीय स्काई स्क्रैपर के रूप में बढ़ने को एक छटपटाता शहर है ! किसे अच्छा नहीं लगता है हमारा शहर आगे बढ़े ,तरक्की करे. वक्त के साथ कदम मिलाकर चलना किसे अच्छा नहीं लगता. फिर मधुपुर जैसा शहर जो भले […]

-डॉ उत्तम पीयूष-

देवघर का सबडिवीजन है मधुपुर . यह अपने कस्बाई काॅटेजनुमा खोल से नगरीय स्काई स्क्रैपर के रूप में बढ़ने को एक छटपटाता शहर है !
किसे अच्छा नहीं लगता है हमारा शहर आगे बढ़े ,तरक्की करे. वक्त के साथ कदम मिलाकर चलना किसे अच्छा नहीं लगता. फिर मधुपुर जैसा शहर जो भले ही कस्बाई स्वरूप में विकसित हुआ हो पर अब वह भी ‘मूव फास्ट ‘ के मूड में है. और इसमें गलत भी क्या है?
पर कहते हैं न कि सपनों और हकीकत में फासले कम हों तो मंजिल की ओर हमारे कदम भी सही रूप में बढते हैं. अब देखिए कि हमारे शहर के कल्पनाकारों ने जो इसे विकसित किया था और हम आज जो उसे कैरी कर रहे उसमें कुछ गड़बड़ी तो नहीं? या अगर सब ठीक ठाक है तो जाहिरन मधुपुर एक बेहतर शहर और हम एक बेहतर शहरी के रूप में विकसित हो रहे हैं ?

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पर इसकी परीक्षा कभी कभी अतीत के उन ‘टिप्स’ से मालूम हो सकता है जो हमारे महान लोगों ने दिया था. खासकर जो लोग शहर का ‘मास्टर प्लान ‘बनाते हैं,बनाना चाहते हैं या बना रहे हैं. अब देखिए कि एक कस्बेनुमा शहर में कितनी विशिष्टता थी कि -1925 में जब महात्मा गांधी मधुपुर पधारे और उन्होंने तब एक ‘राष्ट्रीय शाला ‘(नेशनल स्कूल ) तिलक विद्यालय और नगरपालिका का उद्घाटन किया था. यह बड़ी और ऐतिहासिक घटना है मधुपुर के संदर्भ में. एक ज्ञान और राष्ट्रीयता का अलख जगाने वाले केंद्र और एक शहरी जीवन को सिस्टम देने वाला केंद्र. जैसे उन्होंने मन और शरीर दोनों के दरवाजे मधुपुर आकर खोल दिए हों. यह बड़ी बात थी. बड़ा संयोग.
तिलक विद्यालय संदर्भ फिर कभी पर यहां से जाकर उन्होंने मधुपुर ,मधुपुर के कुदरती सौंदर्य और नगरपालिका पर जो कुछ लिखा वह आज भी ‘संपूर्ण गांधी वांङमय ‘,खंड -28(अगस्त नवंबर 1925) में सुरक्षित है. और आप और हम समझें कि कोई महानायक कैसे छोटी से छोटी लगती बातों पर गौर करते हैं, उसे समझते और लिखकर या बोलकर समझाते हैं. और उसके निहितार्थ आप भी समझें कि आखिर इस छटपटाते से शहर को कैसे विकसित करें. गांधीजी ने मधुपुर के संदर्भ में, नगरपालिका के दायित्व से जुड़ी बातें लिखी थी. क्या ये बातें जो मधुपुर के नेचुरल ब्यूटी और स्थानीय स्वशासन से जुड़ी हैं क्या आज भी प्रासंगिक हैं?

उन्होंने कहा था -"हमलोग मधुपुर गये. वहां मुझे एक छोटे से सुंदर नये टाउन हाल का उद्घाटन करने को कहा गया था. मैंने उसका उद्घाटन करते हुए और नगरपालिका को उसका अपना मकान तैयार हो जाने पर मुबारकबाद देते हुए यह आशा व्यक्त की कि वह नगरपालिका मधुपुर को उसकी आबोहवा और उसके आसपास के कुदरती दृश्यों के अनुरूप ही एक सुंदर जगह बना देगी. मुंबई व कलकत्ता जैसे बड़े शहरों को सुधार करने में बडी मुश्किलें पेश आती हैं मगर मधुपुर जैसी छोटी जगहों में भी नगरपालिका की आमदनी बहुत ही थोड़ी होते हुए भी उन्हें अपनी अपनी हद में आने वाले क्षेत्र को साफ सुथरा रखने में मुश्किलों का सामना भी नहीं करना पड़ता. "

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1925 के बाद शहर, साधन और सुविधाएं काफी बदल गयी है. जनसंख्या का दबाब और शहरीकरण की दिक्कतें भी बढ़ी हैं. पर असली बात है हमारी प्लानिंग और हमारा पैशन. हमें महात्मा गांधी के मधुपुर के संदर्भ में कहे गए विचारों को न केवल वर्तमान ‘नगर पर्षद ‘पर कहीं शिलालेख पर उत्कीर्ण कराना (लिखाना) चाहिए बल्कि उनके विचारों को समझने और अनुकरण करने का भी प्रयास करना चाहिए.
कभी कभी जो जवाब मौजूदा वक्त नहीं दे सकता उसके हल माजी या इतिहास में होते हैं और अपनी बेहतरी के लिए छटपटाते इस शहर के लिए जैसे किसी शायर ने कहा था –
"बहुत खूबसूरत लिबास ए शजर थे
ये पत्ते हवा में बिखरने से पहले. "

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