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महिलाओं ने गांव को साफ रखने का उठाया बीड़ा
भूई मॉडल कचरा प्रबंधन शुरू करने की तैयारी बिहारशरीफ. बिहारशरीफ. कूड़े-कचरे अब बेकार की वस्तु नहीं है, ये भी संसाधन है, इसे नालंदा के सिलाव प्रखंड अंतर्गत भूई गांव की महिलाओं ने साबित कर दिखाया है. गांव की करीब एक दर्जन महिलाओं ने सॉलिड लिक्विड मैनेजमेंट (एसएलआरएम) सेंटर स्थापित कर कूड़े-कचरे का वैज्ञानिक तरीके से […]
भूई मॉडल कचरा प्रबंधन शुरू करने की तैयारी
बिहारशरीफ. बिहारशरीफ. कूड़े-कचरे अब बेकार की वस्तु नहीं है, ये भी संसाधन है, इसे नालंदा के सिलाव प्रखंड अंतर्गत भूई गांव की महिलाओं ने साबित कर दिखाया है. गांव की करीब एक दर्जन महिलाओं ने सॉलिड लिक्विड मैनेजमेंट (एसएलआरएम) सेंटर स्थापित कर कूड़े-कचरे का वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन किया जा रहा है.
राज्य में इस तरह का यह पहला सेंटर है. अपने निश्चय यात्रा के क्रम मेंमुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस सेंटर का निरीक्षण किया था और वे गांव की महिलाओं के इस काम को देखकर काफी प्रभावित हुए थे. उन्होंने इस तरह की व्यवस्था को समय की मांग बताया था. राज्य के अन्य स्थानों पर भूई मॉडल कचरा प्रबंधन शुरू करने की तैयारी चल रही है.
सेंटर ऐसे करता है कार्य :
जीविका से जुड़ी करीब एक दर्जन महिलाएं रोज सुबह में ट्राइसाइकिल लेकर गांव के घर-घर जाकर कचरा एकत्र करती हैं. इसके लिए प्रत्येक घर को दो-दो प्लास्टिक के डिब्बे पहले से ही दे दिये गये हैं.
गांव के लोगों को बताया हुआ कि लाल डिब्बे में अजैव कचरा जैसे प्लास्टिक,लोहा, कागज आदि जबकि हरे कचरे डब्बे में जैव कचरा जैसे सब्जी के पत्ते, बचे हुए अन्न आदि डाल कर रखना है. ट्राइसाइकिल में इन कचरा को एकत्र कर इसे एसएलआरएम सेंटर लाया जाता है, जहां इन कचरों को 40 कैटेगरी में बांटा जाता है. जैव कचरे में जो जानवरों के खाने योग्य होता है. उसे जीविका की दीदियां घर ले जाती हैं . बाकी बचे जैव कचरे को कंपोस्ट बनाने में प्रयोग होता है.
अजैव कचरे को अलग-अलग छांटकर स्टोर किया जाता है, जिसे बाद में बेच दिया जाता है. इससे पूरा गांव साफ -सुथरा दिखता है. प्रत्येक घर को प्रतिदिन इसके लिए एक रुपया देना पड़ता है.भूई गांवों में जीविका की दीदियों ने पहले सर्वे किया फिर इस एसएलआरएम सिस्टम को लागू किया है. फिलहाल भूई गांव के तीन वार्डों में यह काम शुरू किया गया है. इन तीन वार्डों के 450 घरों से डोर टू डोर जाकर कचरा उठाया जा रहा है.
कंपोस्ट उत्पादन के साथ ही बतख पालन भी :गांव से कूड़े कचरे कलेक्ट कर सेंटर लाने के बाद वहां इन कचरों से बर्मी कंपोस्ट तैयार किया जाता है.
इन बर्मी कंपोस्ट के माध्यम से सेंटर को आमदनी हो रही है. कचरे बेचने से ही सेंटर को आमदनी हो रही है. वहीं सेंटर में बतख पालन किया जा रहा है. अभी फिलहाल सेंटर में 27 बतख हैं. इन बतखों के अंडों की बिक्री करने से भी सेंटर को आय हो रही है.
किचेन गार्डेनिंग का भी हो रहा काम :सेंटर की महिलाओं ने किचेन गार्डेनिंग का भी कार्य शुरू किया है. छोटे-छोटे टोकरियों में मिट्टी डालकर और उसे छत्त पर रखकर सब्जियां उगा रही हैं. सेंटर के आस-पास भी इस तरह के कार्य किये जा रहे हैं. इन सब्जी की फसलों में सेंटर में उत्पादित के पोस्ट का प्रयोग किया जा रहा है.
प्रोजेक्ट हेड के अनुसार
”जिन कचरों के कारण गांव में बीमारियां फैल रही थी, नाली-गली भर जा रहे थे उसी कचरे को एकत्र कर पैसा कमा रहे हैं. गांव- घर आज साफ -सुथरा दिखता है. लोगों में सफाई के प्रति तेजी से जागरूकता पैदा हो रही है. अब हर कोई अपने आस-पास साफ -सुथरा देखना चाहता है”.
-ममता कुमारी, प्रोजेक्ट हेड, एसएलआरएम भूई
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