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या अली, या हुसैन की सदा से गूंजा शहर

हजरत इमाम हुसैन ने इसलाम को बचाने के लिए दी शहादत, याद में पैकर बने लोग भागलपुर : मुहर्रम की सातवीं तारीख गुरुवार को सराय स्थित इमामबाड़ा में फातिहा व नयाज कराने के बाद पैकर के घुघंरू की खनक से शहर गूंज उठा. लोग हजरत इमाम हुसैन की याद में पैकर बन कर शहर के […]

हजरत इमाम हुसैन ने इसलाम को बचाने के लिए दी शहादत, याद में पैकर बने लोग

भागलपुर : मुहर्रम की सातवीं तारीख गुरुवार को सराय स्थित इमामबाड़ा में फातिहा व नयाज कराने के बाद पैकर के घुघंरू की खनक से शहर गूंज उठा. लोग हजरत इमाम हुसैन की याद में पैकर बन कर शहर के इमामबाड़ों का भ्रमण करेंगे. या अली, या हुसैन की सदा लगाते रहेंगे. यह सिलसिला मुहर्रम की दसवीं तारीख तक चलता रहेगा. ऐसी मान्यता है कि जिन लोगों की मुरादें पूरी होती है, वह पैकर बनते हैं. मुहर्रम की पहली तारीख से ही पैकर बनने वाले लोग बिना चप्पल पहने खुले पैर चलने का अभ्यास करते हैं.
पैकर बनने के बाद खुले पैर से ही सभी इमामबाड़ों का भ्रमण करना होता है. मौलाना कारी नसीम अशरफी ने बताया कि मुराद पूरी हाेने के लिए लोग कबूलती करते हैं. उन लोगों में से ही कुछ पैकर भी बनते हैं. कुछ लोग दो-चार कबूलती के रूप में पूरा करते हैं, तो कुछ लोग सारी उम्र पैकर बनने का इरादा करते हैं.
करबला से लायी गयी मिट्टी : डॉ फारूक अली ने बताया कि किलाघाट सराय स्थित इमामबाड़ा 808 साल से भी पुराना है. बताया जाता है कि बगदाद स्थित करबला मैदान से मिट्टी लायी गयी थी. यह मिट्टी सराय इमामबाड़ा में दफन की गयी है. भागलपुर जिला का यह सबसे पुराना और पहला इमामबाड़ा है. लोगों की आस्था यहां से ज्यादा जुड़ी है. लोग अपनी मुरादें लिए यहां आते हैं.
मेला के लिए तैयार किये जा रहा शाहजंगी मैदान : मुहर्रम के मौके पर शाहजंगी मैदान पर ऐतिहासिक मेला लगने के लिए तैयारी शुरू कर दी गयी है. मेला मैदान में फैले कूड़ा कचरा की सफाई जोरों पर चल रही है. मैदान के उबड़-खाबड़ जमीन को मिट्टी डाल कर समतल किया जा रहा है. मेला को लेकर बच्चों के लिए ब्रेक डांस आदि झूला लगाये जा रहे हैं. लखनऊ की मुगलीय हलवे की दुकानें भी सजने लगी है. स्थानीय मो तबरेज अहमद, गुलाम शब्बीर, आफताब वारसी ने बताया कि मुहर्रम के अवसर पर वर्षों से शाहजंगी मैदान पर मेला लग रहा है.
मुरादें पूरी होने पर बनते हैं पैकर, कोतवाली ताजिया नौवीं तक होगा तैयार
नौवीं व दसवीं को रखें रोजा
मुहर्रम की दसवीं तारीख कई मायनों में ऐतिहासिक है. दसवीं तारीख को यौम-ए-आशुरा भी कहते है. मुहर्रम की एक तारीख से 10 तारीख तक लोग अपने-अपने घरों में जलसा व इबादत करते हैं. नौवीं व दसवीं तारीख को रोजा रखते हैं. इसकी बहुत फजीलत है. उक्त बातें मदरसा जामिया शहबाजिया के हेड शिक्षक मुफ्ती मौलाना फारूक आलम अशरफी ने कही.
फातिहा व नयाज
के लिए उमड़ी भीड़
मुहर्रम की सातवीं तारीख को श्रद्धालुओं की भीड़ से सराय इमामबाड़ा पटा था. सातवीं तारीख को फातिहा व नयाज करानेे के लिए लोगों की देर रात तक भीड़ जुटी रही. सुबह से ही मेला जैसा माहौल बना था. फातिहा व नयाज कराने के लिए जिले के अलग-अलग क्षेत्रों के अलावा झारखंड से भी लोग पहुंचे थे. स्थानीय लोगों ने बताया कि वर्षों से यहां सातवीं तारीख को फातिहा कराने के लिए विभिन्न मुहल्लों के लोग आते हैं.

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