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गोली और गाली

मनोज श्रीवास्तव टिप्पणीकार गोली से डर नहीं लगता साहेब, गालियों से लगता है. बिल्ली के रास्ता काटने पर रास्ता बदलने और गोली से ज्यादा गालियों से डरनेवाले नये-नये वीरतापूर्ण माहौल के भी मजे ले लीजिये. गये वो जमाने जब बहादुरी के ऐसे-ऐसे जलवे पिरोये हैं लोगों ने कि बरसों उनकी कहानियां साथ-साथ चलती थीं. दादा-परदादा […]

मनोज श्रीवास्तव
टिप्पणीकार
गोली से डर नहीं लगता साहेब, गालियों से लगता है. बिल्ली के रास्ता काटने पर रास्ता बदलने और गोली से ज्यादा गालियों से डरनेवाले नये-नये वीरतापूर्ण माहौल के भी मजे ले लीजिये.
गये वो जमाने जब बहादुरी के ऐसे-ऐसे जलवे पिरोये हैं लोगों ने कि बरसों उनकी कहानियां साथ-साथ चलती थीं. दादा-परदादा की वीरता के चर्चे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुंचते-पहुंचते खंभे पर आकाश को टिका देते थे, पर अब तो वीरता का हाल यह है कि आभासी गाली भी गोली से ज्यादा घातक नजर आती है. ऐसे में सम्मुख गाली का असर कितना गहरा होगा?
यह सोचकर ही प्राण कंपकंपाने लगते हैं…
गालियों के मामले में हम सदैव आत्मनिर्भर रहे हैं. कभी किसी विदेशी का मुंह नहीं तके. हमारे समाज द्वारा क्या-क्या गालियां खोजी गयी हैं कि दुनिया सुनकर शरमा जाये. हर बुराई के लिए विदेशी दोष निकालनेवाले अफसोस में हैं कि देशी गालियों का लिंक कैसे विदेशी किया जाये, पर वे नाकामयाब रहे हैं.
जब भी सभ्यता-संस्कृति का परचम लहराने को हुजूम जमा होता है, तो किसी भी बात पर भीड़ सनातनी गाली के प्रयोग से बाज नहीं आती है और दनदनाती गालियों के बीच हमारा परचम लहराने का सपना गाली के सामने असहाय हाल में खड़ा दिखता है. काश यह गाली न होती, तो हम गर्व से कह सकते कि देखो सभ्यता किसे कहते हैं!
बड़े-बड़े सोशल मीडिया वीर, जो दुनिया जहान बदलने का जज्बा रखते हैं (थे), लेकिन इस आभासी अस्त्र के सामने नतमस्तक होकर मैदान छोड़ चुके हैं या बहाना ढूंढ रहे हैं. शायद कल को इस अस्त्र का उपयोग सीमाओं पर भी होने लगे, तो क्या नजारा होगा? तमाम सगे-संबंधियों की याद निकल पड़ेगी, तो कोई कह ही देगा, इतनी रिश्तेदारी जोड़ने के बाद क्या आपस में लड़ना? रिश्तेदारी जागते ही लड़ाई खत्म!
हथियारों का बाजार रोनी सूरत बनाकर मुई गाली की तरफ देखेगा, हाय री गाली तेरा मुंह काला, जो हमारे बाजार को धो डाला! संयुक्त राष्ट्र भी अपनी सशस्त्र सेना को खारिज कर नये-नये गालीबाजों की भर्ती से विश्व में युद्ध के निदान ढूंढ़ेगा. गालीवीर नामक नयी फौज बनेगी, जिसमें छंटे हुए गालीबाजों का अलग-अलग रैंक होगा. चहुंओर गाली की महिमा के वर्णन लिखे जायेंगे. आनेवाले कल में हिंसा से मुक्ति में गाली के योगदान को स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा और यह स्वर्णिम गाली चिरकाल तक मानवीय खोजों में सर्वोच्च स्थान पाकर हमेशा अमर रहेगी.
खैर… यह बात भी कम आश्चर्यजनक नहीं है कि एक आभासी अस्त्र ने पूरी दुनिया पर असर किया है और महान-महान देशों के शूरवीरों के शौर्य को चकनाचूर कर दिया है. वह दिन दूर नहीं जब गाली को भी सलाम किया जायेगा! ‘गाली तुझे सलाम!’

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