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सीबीआइ कर रही तलाश : बीओबी व इंडियन बैंक ही सरकारी फंड का डंपिंग ग्राउंड क्यों

नजारत, भू अर्जन, कल्याण जिला परिषद सहित प्रखंड के दोनों बैंक में खुले खाते समाहरणालय परिसर में स्थित केनरा बैंक में भी विभाग ने नहीं ली दिलचस्पी भागलपुर : करीब 13 वर्षों से सरकारी राशि के वारे-न्यारे करनेवाले सबसे बड़े घोटाले के रूप में उजागर सृजन घोटाला में घोटालेबाजों ने मुख्य रूप से दो बैंक […]

नजारत, भू अर्जन, कल्याण जिला परिषद सहित प्रखंड के दोनों बैंक में खुले खाते

समाहरणालय परिसर में स्थित केनरा बैंक में भी विभाग ने नहीं ली दिलचस्पी
भागलपुर : करीब 13 वर्षों से सरकारी राशि के वारे-न्यारे करनेवाले सबसे बड़े घोटाले के रूप में उजागर सृजन घोटाला में घोटालेबाजों ने मुख्य रूप से दो बैंक को अपना ग्राउंड बनाया. इनमें बैंक ऑफ बड़ौदा का मुख्य शाखा व इंडियन बैंक की भागलपुर शाखा शामिल हैं. बड़े-बड़े सरकारी फंड पानेवाले विभाग का उक्त दोनों ही बैंक में खाता रहा. अब सीबीआइ यह तलाश रही है कि अन्य सरकारी बैंक को छोड़ उक्त दोनों बैंक को ही घोटालेबाजों ने क्यों चुना. नतीजतन यह बैंक विभिन्न सरकारी फंड का डंपिंग ग्राउंड बन गया. सूत्रों के मुताबिक, बैंक ऑफ बड़ौदा व इंडियन बैंक में खाता खोलने के पीछे सरकारी पदाधिकारी की दिलचस्पी की वजह को भी ढूंढ़ा जा रहा है.
इनमें खाता खोलने को लेकर सरकारी पदाधिकारी के पत्र और संबंधित बैंक में ही खाता खोलने के पीछे नफा-नुकसान का उल्लेख आदि का भी अध्ययन हो रहा है. बैंक में खाता खोलने से पहले संबंधित विभाग के पदाधिकारी ने कोई कोटेशन (विभिन्न बैंक से ब्याज आदि को लेकर) मंगाया. क्या कोटेशन में सबसे अधिक ब्याज दर देने वाले बैंक के रूप में बैंक ऑफ बड़ौदा या इंडियन बैंक का चयन हुआ. अगर सरकारी फंड को जमा करने से पूर्व विभिन्न बैंक से कोटेशन नहीं लिया गया तो उसी बैंक में फंड डायवर्ट करने के पीछे किस पदाधिकारी की रुचि थी और क्यों. बता दें कि भू-अर्जन, नजारत, कल्याण, जिला परिषद के विभाग के फंड लंबे समय तक राशि नहीं खर्च होनेवाले विभाग हैं. इन विभागों के सरकारी फंड के खर्च करने का समय लंबा होता है. इस कारण विभिन्न बैंकों की भी नजर उन फंड पर होती है, जो देरी से खर्च हो और बड़ी राशि अधिक दिनों तक बैंक में जमा रहे.
मर्जी के बैंक में होते हैं फंड डायवर्ट
सरकारी फंड को बैंक में जमा कराने को लेकर विभिन्न बैंक के प्रतिनिधियों में होड़ रहती है. इसको लेकर संबंधित विभाग के पदाधिकारी के दफ्तर से लेकर घर तक प्रतिनिधि चक्कर लगाते हैं. किसी तरह से फंड को पाने के लिए अनौपचारिक रूप से लाभ भी प्रदान किया जाता है. फंड को जमा करने में पदाधिकारी की ही मनमानी रहती है. क्योंकि वित्त विभाग की तरफ से यह छूट है कि किसी भी राष्ट्रीयकृत बैंक में फंड जमा किया जाये. पदाधिकारी वित्त विभाग के नियम को अपने फायदे के लिए प्रयोग में लाते हैं और मर्जी के बैंक में फंड ट्रांसफर करवा देते हैं.
केनरा बैंक पर नहीं पड़ी विभागों की नजर
रोचक बात है कि समाहरणालय स्थित विभिन्न विभागों ने डेढ़ से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित बैंक को फंड जमा करने के लिए चुना, मगर किसी की नजर पड़ोस में स्थित केनरा बैंक पर नहीं गयी. नजारत शाखा, कल्याण विभाग ने भी केनरा बैंक में अपना मुख्य खाता नहीं खुलवाया. अगर ऐसा होता तो फंड की देखरेख करने में समय नहीं लगता.

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