सदान मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि झारखंड सदान बाहुल्य राज्य है. सदान यहीं के मूल निवासी हैं. हमारी भाषा रहन–सहन आदि सभी एक जैसी ही है, फिर भी हम उपेक्षित हैं. वह शुक्रवार को ग्रैंड ऑकेजन बैंक्वेट हॉल में सदान मोर्चा झारखंड प्रदेश के तत्वावधान में आयोजित राज्य स्तरीय विचार गोष्ठी में बोल रहे थे.
उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य की बात है कि 112 प्रखंडों में सदान मुखिया, प्रमुख, जिला परिषद अध्यक्ष, विधायक, सांसद नहीं बन सकते हैं. सामान्य विधानसभा और लोकसभा की सीटों में बाहर के लोगों को प्रत्याशी बनाया जाता है. राज्यसभा में भी बाहर के लोगों को प्रत्याशी बनाया जाता रहा है. नीति निर्धारण आयोग से लेकर शैक्षणिक संस्थान के अध्यक्ष, सचिव व सदस्य बाहरी को ही बनाया जाता है. जयपाल सिंह मुंडा ने भी माना था कि सदानों के सहयोग के बिना अलग राज्य का निर्माण नहीं हो सकता है, लेकिन अलग राज्य बनने के बाद सरकारों ने सदानों को दरकिनार कर दिया.
अध्यक्ष मनोज वर्मा ने कहा कि 7 जिलों में पिछड़ी जाति का आरक्षण शून्य करना संविधान के खिलाफ है. केंद्रीय सचिव अजीत विश्वकर्मा ने सदानों की उपेक्षा बंद कर सदान मोर्चा से लोकसभा और विधानसभा में प्रत्याशी देने की मांग की. डॉ जर्नादन प्रसाद ने कहा जब तक हम अपने अधिकार को नहीं समझेंगे, तब तक हम शोषित और पीड़ित ही रहेंगे. डॉ रामप्रसाद ने कहा कि शिक्षा पर ध्यान देते हुए छात्रों को भी अपने अधिकार के प्रति सचेत रहना होगा.
प्रमोद शर्मा ने कहा कि पिछड़ी जाति की आरक्षण को 27 प्रतिशत से घटाकर 14 प्रतिशत कर दिया गया है जबकि राज्य में करीब 55 प्रतिशत पिछड़ी जाति की आबादी है. गोष्ठी में प्रदीप कुमार, किशोर गंझू, राधेनाथ सिंह,चंद्रबाबु,रामेश्वर मिश्रा,रमेश दयाल सिंह,अमित साहू, सयूम अंसारी, डॉ सुदेश कुमार, अरुण शाह, अरुण कश्यप आदि ने विचार रखा. गोष्ठी में एक दर्जन से ज्यादा जिलों के सदान मोर्चा के बुद्धिजीवी उपस्थित थे.