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सरकारी कर्मी की मौत पर विवाहित बेटी को भी नौकरी

कोलकाता: राज्य सरकार के कार्यरत कर्मचारी की मौत पर उसकी विवाहित बेटी को नौकरी देने का निर्देश कलकत्ता हाइकोर्ट ने दिया है. साथ ही अन्य मामलों में भी इस निर्देश को उदाहरण के तौर पर दाखिल किये जाने का निर्देश कलकत्ता हाइकोर्ट की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश निशिथा म्हात्रे और न्यायाधीश तपोव्रत चक्रवर्ती की खंडपीठ ने […]

कोलकाता: राज्य सरकार के कार्यरत कर्मचारी की मौत पर उसकी विवाहित बेटी को नौकरी देने का निर्देश कलकत्ता हाइकोर्ट ने दिया है. साथ ही अन्य मामलों में भी इस निर्देश को उदाहरण के तौर पर दाखिल किये जाने का निर्देश कलकत्ता हाइकोर्ट की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश निशिथा म्हात्रे और न्यायाधीश तपोव्रत चक्रवर्ती की खंडपीठ ने दिया.
क्या है मामला: गौरतलब है कि वर्ष 2011 के मार्च महीने में बीरभूम के नलहाटी के एक गांव में पंचायत में कार्यरत स्थिति में हारू दास की मौत हो गयी थी. कानूनन उनकी पत्नी सरस्वती दास को नौकरी मिलने की बात थी, पर योग्यता न होने पर उन्होंने अपनी छोटी बेटी के नाम की सिफारिश की थी. लेकिन पंचायत ने बताया कि कानून विवाहित बेटी को ऐसी स्थिति में नौकरी मिलने का अधिकार नहीं देता है. पंचायत के इस निर्देश को चुनौती देते हुए हारू दास के घरवालों ने हाइकोर्ट में याचिका दायर की थी.

मामले की सुनवाई में याचिकाकर्ता के वकील अंजन भट्टाचार्य ने कहा था कि पिता की मौत पर नौकरी मिलने का अधिकार बेटे का है तो बेटी का भी समान अधिकार है. बेटे-बेटी का अधिकार यदि समान होता है तो जैसे विवाहित बेटे को जो अधिकार है वह विवाहित बेटी को क्यों नहीं है? राज्य सरकार की इस मामले में हार हो गयी. न्यायाधीश विश्वनाथ समाद्दार ने विवाहित बेटी को नौकरी देने का निर्देश दिया. इस निर्देश को चुनौती देते हुए वर्ष 2014 में राज्य सरकार ने डिवीजन बेंच में याचिका दायर की.

तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश मंजुला चेल्लूर ने मामले की सुनवाई के लिए तीन न्यायाधीशों की लार्जर बेंच में मामले को भेज दिया था. लंबी सुनवाई के बाद बुधवार को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश निशिथा म्हात्रे, न्यायाधीश तपोव्रत चक्रवर्ती और न्यायाधीश दीपंकर दत्त की खंडपीठ ने सरकार की याचिका को खारिज कर स्पष्ट कर दिया कि पिता की मौत के बाद नौकरी में विवाहित बेटे के समान अधिकार विवाहित बेटी का भी होगा.

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