मामले की सुनवाई में याचिकाकर्ता के वकील अंजन भट्टाचार्य ने कहा था कि पिता की मौत पर नौकरी मिलने का अधिकार बेटे का है तो बेटी का भी समान अधिकार है. बेटे-बेटी का अधिकार यदि समान होता है तो जैसे विवाहित बेटे को जो अधिकार है वह विवाहित बेटी को क्यों नहीं है? राज्य सरकार की इस मामले में हार हो गयी. न्यायाधीश विश्वनाथ समाद्दार ने विवाहित बेटी को नौकरी देने का निर्देश दिया. इस निर्देश को चुनौती देते हुए वर्ष 2014 में राज्य सरकार ने डिवीजन बेंच में याचिका दायर की.
तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश मंजुला चेल्लूर ने मामले की सुनवाई के लिए तीन न्यायाधीशों की लार्जर बेंच में मामले को भेज दिया था. लंबी सुनवाई के बाद बुधवार को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश निशिथा म्हात्रे, न्यायाधीश तपोव्रत चक्रवर्ती और न्यायाधीश दीपंकर दत्त की खंडपीठ ने सरकार की याचिका को खारिज कर स्पष्ट कर दिया कि पिता की मौत के बाद नौकरी में विवाहित बेटे के समान अधिकार विवाहित बेटी का भी होगा.