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अवार्ड में देरी से नुकसान : हाजीपुर-मुजफ्फरपुर खंड के एनएच-77 का मामला, 99 करोड़ का एस्टिमेट,1200 करोड़ पहुंचा

मुजफ्फरपुर: एनएच-77 हाजीपुर-मुजफ्फरपुर खंड परियोजना की शुरुआत वर्ष 2009-10 में हुई. मधौल-सदातपुर के बीच बाइपास निर्माण की योजना को छोड़ दिया जाये, तो यह करीब पूरी भी हो चुकी है. लेकिन, अर्जित जमीन के मुआवजा को लेकर विवाद अब भी फंसा है. हाल यह है कि शुरुआत में जिस 123.76 एकड़ जमीन के लिए करीब […]

मुजफ्फरपुर: एनएच-77 हाजीपुर-मुजफ्फरपुर खंड परियोजना की शुरुआत वर्ष 2009-10 में हुई. मधौल-सदातपुर के बीच बाइपास निर्माण की योजना को छोड़ दिया जाये, तो यह करीब पूरी भी हो चुकी है. लेकिन, अर्जित जमीन के मुआवजा को लेकर विवाद अब भी फंसा है. हाल यह है कि शुरुआत में जिस 123.76 एकड़ जमीन के लिए करीब 99.62 करोड़ का एस्टिमेट भेजा गया था, उसी जमीन का एस्टिमेट एक समय 1200 करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया. एनएचएआइ के विरोध व राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के निर्देश के बाद जिला प्रशासन अब उसी जमीन के लिए करीब 177.28 करोड़ का डिमांड कर रहा है. हालांकि, इस पर भी जिच फंसा है.

दरअसल, जिन 36 गांवों में जमीन का अर्जन हुआ है, उनमें से 26 गांवों के लिए पुराने अर्जन नीति के तहत एस्टिमेट भेजा गया है, जबकि शेष 10 गांव के लिए नयी अर्जन नीति के तहत. एनएचएआइ इसे स्वीकार नहीं कर रहा है.

जिला भू-अर्जन कार्यालय ने वर्ष 2010 में जब करीब 99.62 करोड़ रुपये का बजट भेजा, तो एनएचएआइ ने उसी साल उसे करीब 81.44 करोड़ आवंटित कर दिये. जिला भू-अर्जन ने उस राशि से किसानों के 80 प्रतिशत (प्रस्तावित एस्टिमेट का) मुआवजा राशि का भुगतान भी शुरू कर दिया. पिछले साल ही विभाग के डिमांड पर एनएचएआइ ने करीब 18.39 करोड़ रुपये और आवंटित किये. यानी अब तक एक अरब तीन लाख 81 हजार 778 जिला भू-अर्जन कार्यालय को उपलब्ध करा चुका है.

एस्टिमेट की नयी दर का विरोध, अब 177 कराेड़ की डिमांड
परियोजना भले ही लगभग पूरी हो चुकी है, किसान जमीन के किस्म के निर्धारण से संतुष्ट नहीं हैं. करीब तीन दर्जन से अधिक मामले ऑर्बिट्रेटर के कोर्ट में दायर हैं. विवाद सुलझाने के लिए जिला प्रशासन ने बिना सरकार की सलाह लिये जमीन की दोबारा जांच करायी. फोरलेन बन जाने के कारण नयी किस्म में अधिकांश जमीन व्यावसायिक व आवासीय श्रेणी की मानी गयी. इस आधार पर जो एस्टिमेट तैयार हुआ, वह 1200 करोड़ रुपये से अधिक हो गया. इस पर एनएचएआइ ने आपत्ति जतायी. प्रशासन व उसके बीच कई दौर की वार्ता भी हुई, पर बात नहीं बनी. आखिर में डीएम ने भी स्वीकार किया कि फोरलेन बनने से पहले जमीन की किस्म क्या थी, उसका निर्धारण अब करना सही नहीं है. मामले में सरकार से भी राय मांगी गयी. पर, सरकार ने भी साफ कर दिया कि सिक्स मैन कमेटी ने जब एक बार किस्म का निर्धारण कर दिया, तो दोबारा किस्म का निर्धारण उचित नहीं है. इसके बाद डीएम ने नयी सिक्स मैन कमेटी की रिपोर्ट खारिज कर दी.

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