मातृ मृत्यु दर कम करने के लिए जरूरी है प्रसव पहले चार जांच
60 प्रतिशत से कम हीमोग्लोबिन है खतरे का संकेतक
मोहनिया सदर : महिलाओं में एनीमिया यानी खून की कमी होना इनके लिए सबसे बड़ा खतरा है. यदि हम बिहार की बात करें तो यहां की वर्तमान स्थिति यह है कि गर्भधारण करने से प्रसव के 42 दिनों के अंदर एक लाख महिलाओं में से 200 की मौत सिर्फ ब्लड की कमी की वजह से होती है.
यह आंकड़ा वर्ष 2005 के पहले 360 से ऊपर था. वर्ष 2007 में सरकार ने नेशनल रूरल हेल्थ मिशन की शुरुआत की, जिसका मुख्य उद्देश्य इस मृत्यु दर के लक्ष्य को घटा कर 100 से कम करना है, हालांकि ऐसी महिलाओं की मृत्यु के और भी कारण हो सकते हैं, लेकिन अब तक ऐसी स्थिति में होनेवाली मृत्यु का मुख्य कारण ब्लड की कमी ही रही है. अधिकतर मामलों में ब्लड की कमी होने से प्रसव के समय रोगी में जटिलताएं अधिक होती हैं, जिससे रोगी के मृत्यु की संभावना बढ़ जाती है.
गर्भवती महिला में कितना हो हीमोग्लोबिन की मात्रा: बताया जाता है कि वैसे तो एक गर्भवती महिला में 10 ग्राम यानी 60 प्रतिशत से कम ब्लड नहीं होना चाहिए. एक स्वास्थ्य गर्भवती महिला में 12 से 14 ग्राम ब्लड होता है.
कभी भी इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि गर्भवती महिला में ब्लड की कमी न हो. महिलाओं की मौत का सबसे बड़ा कारण ब्लड की कमी है, जो प्राय: देखने को मिलता है. खासतौर से ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं का मानना होता है कि गर्भधारण के दौरान महिला को कम भोजन व पौष्टिक आहार लेना चाहिए, जिससे गर्भ में पल रहे शिशु का वजन अधिक न हो, अन्यथा प्रसव के समय महिला को परेशानी होती है. जबकि, यही अज्ञानता प्रसव के दौरान ऐसी महिलाओं की मौत का सबसे बड़ा कारण होता है. ग्रामीण क्षेत्र से ऐसी भी गर्भवती महिलाएं प्रसव के लिए आती है, जिनमें पांच से सात ग्राम के बीच ही हिमोग्लोबिन पाया जाता है.
ऐसी स्थिति में चिकित्सक को ऐसी महिलाओं को उन अस्पतालों में रेफर करना विवशता होती है, जहां ब्लड की उपलब्धता के साथ अन्य सुविधाएं उपलब्ध हो. यदि हम अनुमंडलीय अस्पताल की बात करें तो यहां आनेवाली 70 प्रतिशत महिलाओं में ही 60 से 65 प्रतिशत हिमोग्लोबिन की मात्रा पायी जाती है. शेष 30 प्रतिशत ऐसी गर्भवती महिलाएं आती हैं, जिनका हिमोग्लोबिन पांच से 10 प्रतिशत के बीच रहता है.
क्या है कारण
इस रोग से ग्रसित गर्भवती महिला का ब्लडप्रेशर हाई हो सकता है, जिससे ब्रेन हेमरेज व पैरालॉसिस का खतरा बढ़ जाता है. इसके साथ ही पेशाब में एल्बुमिन का आना शुरू हो जाता है. पैर में सूजन के साथ शरीर में कंपन होने लगता है. यह अधिकतर पहला प्रसव के दौरान महिलाओं में पाया जाता है. इन सभी लक्षणों के साथ प्रसव के समय शरीर में कंपन हो जाता है तथा प्रसव के बाद कभी कभी दौरा भी पड़ने लगता है.
इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण भी ब्लड की कमी का होना है. ऐसी स्थिति में प्रसव के बाद गर्भाशय के सिकुड़ने की क्षमता कम हो जाती है और रक्त स्राव का होना जारी रहता है. ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि उक्त महिला को जितनी जल्दी हो सके, ब्लड चढ़ाया जाये, जिससे शरीर से निकल रहे ब्लड की कमी को वह पूरा करता रहे और दवा के माध्यम से धीरे-धीरे रक्त स्राव को रोका जाता है.
यह समय उस महिला के लिए काफी खतरनाक होता है, यदि चार घंटा के भीतर उक्त महिला को ब्लड नहीं चढ़ाया गया, तो उसकी मृत्यु की संभावना अधिक हो जाती है. इसकी रोकथाम के लिए स्लाइन के साथ एंटीबॉयटिक दवाओं के साथ लक्षण के आधार पर इलाज किया जाता है. इलाज की व्यवस्था के साथ उसको ऐसे अस्पताल के लिए रेफर किया जाता है, जहां तुरंत ब्लड की उपलब्धता के साथ सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध हो. पता चला है कि इसी तरह ब्लड की कमी की वजह से अगस्त में प्रसव के बाद एसडीएच में एक महिला की मौत हो गयी थी. प्रत्येक माह की नौ तारीख को गर्भवती महिलाओं के प्रसव पहले जांच की जाती है.
एनीमिया की रोकथाम व इलाज
एनिमिया का अर्थ है शरीर में ब्लड की कमी का होना. इसको दूर करने के लिए सामान्य गर्भवती महिलाओं को आयरन की कम से कम 100 गोलियां लेनी होती है, जिन गर्भवती महिलाओं में 60 प्रतिशत से कम हिमोग्लोबिन की मात्रा पायी जाती है. उनको आयरन की 200 गोलियां लेना आवश्यक हैं.
वहीं, जिन ऐसी महिलाओं में 50 प्रतिशत से कम ब्लड यानी सात ग्राम से भी कम है. उनको डेक्सटारन इंजेक्शन की तीन खुराक एक दिन के अंतराल पर स्लाइन के माध्यम से गर्भवती को चढ़ाया जाता है. यह दवा हिमोग्लोबिन को बढ़ाने में सबसे अधिक कारगर है, जो तीन खुराक में गर्भवती महिला के हिमोग्लोबिन को बढ़ा कर लगभग नौ ग्राम तक कर देती है.
इसके बाद आयरन की टेबलेट व सिरप के साथ पौष्टिक भोजन के सेवन से हिमोग्लोबिन को और बढ़ा लिया जाता है. इसके अलावे भोजन में दूध, दही, हरी सब्जियां, फल, अंडा, मांस व मछली सहित पौष्टिक आहार पर्याप्त मात्रा में लेना चाहिए. गर्भवती महिला को आराम के साथ भारी सामान आदि नहीं उठाना चाहिए.
कौन-कौन जांच हैं महत्वपूर्ण
जानकारी के अनुसार, गर्भधारण की जानकारी होते ही यानी दूसरे माह से लेकर अंतिम समय यानी प्रसव पहले तक चार जांचों का होना अत्यंत आवश्यक होता है, जिसमें हिमोग्लोबिन, यूरिन, एचआइवी, ब्लड सुगर, ब्लड प्रेशर, ब्लड ग्रुप, लंबाई व वजन के साथ कम से कम दो बार अल्ट्रासाउंड जांच आवश्यक है. पहला अल्ट्रासाउंड जांच गर्भधारण के तीन माह पर और अंतिम अल्ट्रासाउंड जांच प्रसव के पहले.
अंतिम दौर में गर्भवती महिला का अल्ट्रासाउंड कराने से यह स्पष्ट हो जाता है कि गर्भ में पल रहे नवजात की स्थिति क्या है, कभी-कभी कुछ गर्भवती महिलाओं का बच्चा उल्टा, तो कुछ का बेड़ा भी हो जाता है. ऐसी स्थिति में सर्जरी की भी आवश्यकता पड़ जाती है. इसकी जानकारी प्रसव पहले होने से चिकित्सक उसकी तैयारी पहले से करते हैं. प्रसव के पहले ये जांचें इसलिए बेहद महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि गर्भवती महिला से संबंधित पूरी जानकारी चिकित्सक के पास होती है और वह हर समस्या का पहले से विकल्प खोज लेते हैं, जिससे की सुरक्षित प्रसव सुनिश्चित किया जा सके. जैसे हिमोग्लोबिन की जांच, इसके जांच से स्पष्ट हो जाता है कि गर्भवती महिला में वर्तमान में ब्लड की मात्रा कितनी है और प्रसव होने तक इसे कितना होना आवश्यक है.
बोले चिकित्सा पदाधिकारी
इस पूरे मामले की जानकारी देते हुए अनुमंडलीय अस्पताल के वरीय चिकित्सा पदाधिकारी डॉ चंदेश्वरी रजक ने बताया कि गर्भवती महिलाओं में ब्लड की कमी उनकी मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है. अभी सात व आठ सितंबर को यहां प्रसव के लिए दो ऐसी महिलाएं आयी थी, जिनमें एक में सात और दूसरी में छह ग्राम हिमोग्लोबिन था, जिनको प्राथमिक इलाज के बाद रेफर कर दिया गया. सबसे जरूरी है प्रसव पूर्व सभी जांच कराना व डॉक्टर की सलाह से इलाज कराना. जांच रिपोर्ट कोई भी चिकित्सक देख सकते हैं.