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रोटेशन पर चल रहे जिले के 15 पशु अस्पताल
समस्तीपुर : जिले के 15 अस्पतालों में डॉक्टर नहीं हैं. इन अस्पतालों में सप्ताह में एक या दो दिन नजदीकी पीएचसी से आकर रोटेशन पर डॉक्टर अपनी ड्यूटी देते हैं. पशुपालकों को मवेशी के अचानक बीमार पड़ने की स्थिति में प्राइवेट डॉक्टरों से इलाज कराना पड़ता है. प्राइवेट डॉक्टर पशुपालकों से मनमाने पैसे वसूलते हैं. […]
समस्तीपुर : जिले के 15 अस्पतालों में डॉक्टर नहीं हैं. इन अस्पतालों में सप्ताह में एक या दो दिन नजदीकी पीएचसी से आकर रोटेशन पर डॉक्टर अपनी ड्यूटी देते हैं.
पशुपालकों को मवेशी के अचानक बीमार पड़ने की स्थिति में प्राइवेट डॉक्टरों से इलाज कराना पड़ता है. प्राइवेट डॉक्टर पशुपालकों से मनमाने पैसे वसूलते हैं. लेकिन, सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर के नहीं होने के कारण पशुपालकों के पास दूसरा विकल्प भी नहीं है. मुख्यालय स्थित अस्पताल को मिलाकर जिले में कुल 45 मवेशी अस्पताल हैं. लेकिन, डॉक्टरों की बहाली नहीं होने के कारण 15 पीएचसी में पद रिक्त पड़े हैं. रोसड़ा अनुमंडल पशु अस्पताल में भी डॉक्टर का पद रिक्त है. लगभग दो वर्षाें से जिले में पशु चिकित्सकों की बहाली नहीं की गयी है. डॉक्टरों के पद रिक्त होने के कारण इन इलाकों में टीकाकरण व वैक्सीनेशन कैंप के दौरान काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. जिला मुख्यालय से डॉक्टरों की टीम को भेजा जाता है. इस स्थिति में ओपीडी का कार्य प्रभावित होने लगता है. हालांकि, विभाग की ओर से डॉक्टरों के रिक्त पद को शीघ्र ही फुलफील करने की कवायद चल रही है.
सहायक के पद भी हैं रिक्त : मुख्यालय पशु अस्पताल व कार्यालय में सहायक के पद भी रिक्त हैं. इससे आलम यह है कि जिला पशुपालन पदाधिकारी स्वयं कार्यालय खोलते हैं. उन्होंने बताया कि सहायक कर्मियों के काफी पद रिक्त हैं. इस कारण कार्यालयी कार्यों में भी काफी कठिनाई उठानी पड़ती है. पिछले कई वर्षों से सहायकों के पद पर विभाग की ओर से बहाली नहीं की गयी है. उन्होंने बताया कि इस संबंध में विभाग को लिखा गया है.
समस्तीपुर. जिले में शुरू हो रहे डिवर्मिंग कैंपेन ने डॉक्टरों की उलझन बढ़ा दी है. इस कैंपेन में विभाग का निर्देश का अनुपालन करते हुए मापदंडधारी पशुपालकों के पशुओं को ही डिवर्मिंग का लाभ देना है. लेकिन, पसोपेश की स्थिति तो तब उत्पन्न हो जाती है जब उसके पास के ही पशुपालक जो विभाग की ओर से निर्देश के दायरे में नहीं आते हैं.
वे दवा की मांग करते हैं, तो डॉक्टर दुविधा में फंस जाते हैं. एक ओर विभागीय निर्देश तो दूसरी ओर ग्रामीणों का दबाव. ऐसी स्थिति में डॉक्टर दायरे के बाहर के पशुपालकों को अस्पताल से दवा ले लेने को कहते हैं. लेकिन, उलझन बढ़ता देख वे अस्पताल की कुछ दवाएं जो साथ रखते हैं उन्हें देकर मुश्किलों से छुटकारा पाते हैं. जानकारी के अनुसार, डॉक्टरों को अनुसूचित जाति के पशुपालकों को चिह्नित करने में भी परेशानी का सामना करना पड़ता है.
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